Shankaracharya Avimukteshwaranand: अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाली रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्यों से जुड़ा विवाद थमता नहीं दिख रहा है. इस बीच एबीपी न्यूज से खात बातचीत के दौरान शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मामले पर खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि राम मंदिर में रामलला प्राण प्रतिष्ठा में क्या अशास्त्रीय कार्य हो रहा है?


शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद कहा, "हमने किसी कार्यक्रम का विरोध नहीं किया है. हमने ये कहा है कि जो कार्य किया जाना है, वो नहीं हो सकता, क्योंकि मंदिर अभी अधूरा है. मंदिर पूरा बन जाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा होना प्रशस्त होता है. यह धर्म शास्त्र की बातें हैं और हम जिस जगह पर बैठे हैं, हमारा ये दायित्व बनता है कि अगर धर्म के मामले में कहीं कोई कमी हो रही हो, उसे रेखांकित करें. हम वहीं कर रहे हैं, विरोध नहीं कर रहे हैं."


निमंत्रण मिलने पर जाने से इनकार पर कही ये बात


रामलला प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं जाने पर उन्होंने कहा, "कहीं निमंत्रित होने पर चले जाना अलग बात है. वहां उपस्थित होकर अपनी आंखों के सामने अशास्त्रीय विधि होता देखना अलग बात है. हमलोग अपने हिंदू समाज के प्रति जवाबदेह होते हैं. अगर हमारे सामने कोई अविधि हो रही है तो जनता हमसे पूछती है कि आपके रहते ये हो गया. आपने क्यों नहीं बात उठाई? इसलिए हमें हमारा काम करना पड़ता है."



क्या गलत हो रहा है?


शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, "मंदिर में अगर प्रतिष्ठा हो रही तो मंदिर पूरा बना हुआ होना चाहिए. अगर चबूतरे पर प्रतिष्ठा हो रही है तो चबूतरा पूरा बना होना चाहिए. कुछ लोगों को समझ नहीं आती बात क्योंकि उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं है. ऐसे लोग कहते हैं कि गर्भगृह तो बन गया है बाकी भले नहीं बना. अधिकतर लोग समझते हैं कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होनी है जबकि ऐसा नहीं है. मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है."


उन्होंने कहा, "मंदिर भगवान का शरीर होता है, उसके अंदर की मूर्ति आत्मा होती है. मंदिर का शिखर भगवान की आंखें हैं, कलश भगवान का सिर है और मंदिर में लगा झंडा भगवान के बाल हैं. बिना सिर या आंखों के शरीर में प्राण-प्रतिष्ठा करना सही नहीं है. यह हमारे शास्त्रों के खिलाफ है."


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