Ram MandirPran Pratishtha: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार (11 जनवरी) को कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर राम मंदिर ट्रस्ट और हिंदू संतों (खासकर चार शंकराचार्यों) के बीच कोई मतभेद नहीं है. विहिप ने आमंत्रण भेजने में भी पक्षपात के आरोप खारिज किए हैं.
विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, “जैसे हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया, वैसे ही लोकसभा में कांग्रेस नेता सहित विपक्षी नेताओं को भी आमंत्रित किया. हमने भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं को आमंत्रित किया, इसलिए हमने अन्य सभी दलों के अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया.”
राजनीति के आरोपों से इनकार
आलोक कुमार ने कहा, “विपक्ष के इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि इस आयोजन का राजनीतिकरण किया गया है. इस बात में भी कोई सच्चाई नहीं है कि आरएसएस और बीजेपी ने इसे अपने कब्जे में ले लिया है.” उन्होंने कहा कि इस मामले पर गैर जरूरी तरीके से विवाद खड़ा किया जा रहा है.
क्या है विपक्ष का आरोप?
विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने पूरे आयोजन के राजनीतिकरण का आरोप लगाया है. बुधवार 10 जनवरी को एक बयान में कांग्रेस ने कहा था कि उसके अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी समारोह में शामिल नहीं होंगे. अपने बयान में पार्टी ने कहा, “धर्म एक व्यक्तिगत मामला है लेकिन आरएसएस/बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर का राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया गया है.”
"वोट बैंक के लिए लिया निर्णय"
कांग्रेस नेताओं के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने पर प्रतिक्रिया देते हुए विहिप नेता ने कहा, ‘' पहले ऐसी खबरें थीं कि सोनिया गांधी इस कार्यक्रम में शामिल होंगी, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय और हिंदुओं की प्रतिक्रिया के आधार पर निर्णय लिया होगा.
" संतों में कोई मतभेद नहीं"
आलोक कुमार ने चार शंकराचार्यों और अयोध्या में मंदिर के निर्माण की देखरेख करने वाले ट्रस्ट, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के बीच मतभेद के दावों को भी खारिज कर दिया.
श्रृंगेरी और द्वारका मठों के शंकराचार्यों द्वारा जारी बयानों का हवाला देते हुए, जिन्होंने मंदिर के अभिषेक का स्वागत किया है, कुमार ने कहा कि वे बाद की तारीख में आएंगे. अन्य दो शंकराचार्यों ने 22 जनवरी के कार्यक्रम का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया है.
शंकराचार्यों ने क्या कहा है?
पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि वह इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे क्योंकि यह “शास्त्रों के विरुद्ध” है. ज्योतिर्पीठ (उत्तराखंड) के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी यह कहते हुए इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है कि वह मंदिर का काम अधूरा होने के बावजूद मूर्ति की प्रतिष्ठा के खिलाफ हैं.
"यह कोई युद्ध नहीं है"
आलोक कुमार ने कहा कि, “यह कोई युद्ध नहीं है, इसमें कोई हार-जीत (हार या जीत) नहीं है, यह 24 पीढ़ियों से अधिक का संघर्ष है. हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है कि मंदिर बनकर तैयार है. इस भावना को व्यक्त करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं, लेकिन यह भारत के स्वाभिमान का पुनर्स्थापन है जो हमें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर लाएगा.