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अमित शाह का बयान, 2019 के चुनाव से पहले शुरू होगा राम मंदिर निर्माण- IANS
आईएएनएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी कार्यकारिणी सदस्य पी शेखरजी ने अमित शाह के हवाले से यही बयान मीडिया को दिया है. हालांकि बीजेपी की तरफ से शाह के इस बयान का खंडन किया गया है.
नई दिल्ली: राम मंदिर को लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बड़ा बयान आया है. न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, अमित शाह ने कहा है कि 2019 के चुनाव से पहले राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा. आईएएनएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी कार्यकारिणी सदस्य पी शेखरजी ने अमित शाह के हवाले से यही बयान मीडिया को दिया है. हालांकि बीजेपी की तरफ से शाह के इस बयान का खंडन किया गया है.
पराला शेखर ने क्या कहा है?
दरअसल तेलंगाना के बीजेपी प्रभारी पराला शेखर ने कहा, ''अमित शाह ने कहा है कि जो हो रहा है उसे देखते हुए लगता है कि 2019 के पहले राम मंदिर का काम शुरू हो जाएगा.'' इसके बाद पराला ने एबीपी न्यूज़ से यह भी कहा , ''जो कहना था कह दिया. अब जो कहना है वो केंद्रीय नेतृत्व कहेगा.''
बीजेपी ने किया बयान का खंडन
वहीं, पराला शेखर के इस बयान का तेलंगाना के बीजेपी विधायक रामचंद्र राव ने खंडन करते हुए एबीपी न्यूज़ से कहा है, ''अमित शाह ने राम मंदिर निर्माण को लेकर कुछ नहीं कहा था. दरअसल कार्यकर्ता ने राम मंदिर को लेकर उनसे एक सवाल किया था, जिसके बाद अमित शाह की तरफ से साफ किया गया था कि जो मामला है वह अदालत में है. अदालत के फैसले का इंतजार किया जाएगा.'' रामचंद्र राव ने आगे बताया कि शाह की व्यक्तिगत राय थी कि लोकसभा चुनाव से पहले जल्द-जल्द राम मंदिर का काम शुरु हो.''
क्या है राम मंदिर विवाद?
बता दें कि राम मंदिर का मुद्दा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. साल 1989 में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद का ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था. 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया. फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से यथास्थिति बरकरार है.
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