नई दिल्ली: राम मंदिर से जुड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह एक संवेदनशील और भावनात्मक मामला है. कोर्ट ने कहा कि 'संवेदनशील मसलों का आपसी सहमति से हल निकालना बेहतर है.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विवाद का हल तलाश करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को नये सिरे से प्रयास करने चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है और उन्होंने सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता करने की पेशकश भी की.
बेंच में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस के कौल भी शामिल हैं. पीठ ने कहा, ‘‘ये धर्म और भावनाओं से जुड़े मुद्दे हैं. ये ऐसे मुद्दे है जहां विवाद को खत्म करने के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठना चाहिए और सर्वसम्मति से कोई निर्णय लेना चाहिए. आप सभी साथ बैठ सकते हैं और सौहाद्र्रपूर्ण बैठक कर सकते हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले पर जल्द सुनवायी की मांग की.
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दोनों पक्ष बातचीत के लिए तैयार हों तो किसी जज को मध्यस्थता का ज़िम्मा
चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा, 'अगर दोनों पक्ष बातचीत के लिए तैयार हों तो किसी जज को मध्यस्थता का ज़िम्मा दे सकते हैं. मैं खुद भी इस काम के लिए तैयार हूँ.'
कोर्ट में क्या हुआ :-
सुबह साढ़े 10 बजे बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने पेश हुए. स्वामी अयोध्या विवाद में अर्ज़ी दायर कर चुके हैं और उन्हें पक्ष रखने की इजाज़त मिली हुई है. उन्होंने मसले पर जल्द सुनवाई की मांग की.
स्वामी ने दलील दी कि हाई कोर्ट का फैसला आए 6 साल बीत चुके हैं. इसके बावजूद अभी तक मंदिर का निर्माण नहीं हुआ है. भगवान राम के करोड़ों श्रद्धालु सही तरीके से पूजा-अर्चना करने के अधिकार से वंचित हैं. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट को सभी अपीलों का जल्द निपटारा करना चाहिए.
3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा, "इसके लिए विशेष बेंच का गठन करना होगा. ऐसा गर्मी की छुट्टी से पहले संभव नहीं है. अगर जल्द हल चाहते हैं तो सभी पक्ष आपस में बात क्यों नहीं करते?"
चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "इस तरह के संवेदनशील मसले का हल आपसी सहमति से निकलना सबसे अच्छा है. हमारा सुझाव है कि सभी पक्ष साथ बैठें. हम किसी जज को मध्यस्थता के लिए नियुक्त कर सकते हैं. मैं खुद इस काम में मध्यस्थता करने के लिए तैयार हूँ."
सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट को बताया, "इस तरह की कोशिश पहले की जा चुकी है. लेकिन सभी पक्षों में समाधान को लेकर सहमति नहीं बनी. यही वजह है कि हाई कोर्ट को विस्तार से सुनवाई कर फैसला देना पड़ा."
कोर्ट ने स्वामी से कहा कि वो 31 मार्च को फिर ये मसला उसके सामने रखें. उस दिन ये तय करने की कोशिश की जाएगी कि मसले का हल आपसी सहमति से निकल सकता है या इस पर अदालत में सुनवाई की ज़रूरत है.
राम मंदिर मामला एक नजर में :
- हिंदुओं की मान्यता है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था
- हिंदू पक्षों का आरोप है कि 16वीं शताब्दी में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर तोड़ने की दलील नहीं मानी है
- 1949 से ये विवाद चल रहा, जब मस्जिद में रात में भगवान राम की मूर्ति रखी गई
- 80 के आखिरी और 90 के शरुआती दशक में बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और राजनीतिक तौर पर उसे बड़ा फायदा हुआ
- 1992 में विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया
जानिए, 2010 में क्या था हाईकोर्ट का फैसला
- इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में माना था कि अयोध्या का विवादित स्थल राम जन्मभूमि है
- अदालत के दो जजों ने अपने फ़ैसला में ये कहा था कि ज़मीन का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए, क्योंकि वो भी ज़मीन के कुछ हिस्सों पर इबादत करते आए हैं
- अपने फैसले में जजों ने माना है कि मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां 22/23 दिसंबर 1949 की रात में रखी गई
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मस्जिद की जगह खुदाई की की थी वहाँ एक विशाल प्राचीन मदिर के अवशेष मिले, इसे अदालत ने स्वीकार किया
- ये केस बीते 65 साल से अदालत में है, जोकि सबसे लंबा कानूनी विवाद है, इसके चलते देश में कई बार राजनीतिक और सामाजिक उथल- पुथल देखने को मिली हैं