राम मंदिर: सरकार की अर्जी का निर्मोही अखाड़े और रामलला ने किया विरोध, निर्माण का काम VHP के हाथ जाने की आशंका
निर्मोही अखाड़े और रामलला के पक्षकार को आशंका है कि राम मंदिर बनने की नौबत आई तो विश्व हिंदू परिषद को मंदिर बनाने का जिम्मा मिल सकता है. निर्मोही अखाड़े का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर आंदोलन के लिए जमा पैसे का घोटाला किया है.
नई दिल्ली: चुनाव से पहले राम मंदिर का मामला अटका हुआ है. सरकार घिरी हुई है कि मंदिर बनाने का वादा पूरा नहीं हुआ. चुनाव से पहले मोदी सरकार ने राम मंदिर पर बड़ा दांव खेला. सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है कि अयोध्या में विवादित जमीन के आसपास की गैर-विवादित जमीन उसके मालिकों को लौटा दी जाए. इस अर्जी के पीछे मंशा ये दिख रही है कि अयोध्या में उस जमीन पर निर्माण शुरू हो सके जिस पर विवाद नहीं है.
सरकार की इस अर्जी पर निर्मोही अखाड़ा और रामलला के पक्षकार महंत धर्मदास के कान खड़े हो गए हैं.निर्मोही अखाड़े ने सरकार से उसकी मंशा पूछी है, वरना कोर्ट जाने की धमकी दी है. निर्मोही अखाड़े और रामलला के विरोध की वजह राम मंदिर आंदोलन से बिल्कुल अलग है. निर्मोही अखाड़े और धर्मदास को आशंका है कि राम मंदिर बनने की नौबत आई तो विश्व हिंदू परिषद को मंदिर बनाने का जिम्मा मिल सकता है. निर्मोही अखाड़े का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर आंदोलन के लिए जमा पैसे का घोटाला किया है, घोटाले की रकम 1400 करोड़ तक हो सकती है.
निर्मोही अखाड़े को जमीन मिले नहीं तो कोर्ट जाएंगे: निर्मोही अखाड़ा निर्मोही अखाड़ के सरपंच सीताराम दास ने कहा, ''विश्व हिंदू परिषद को कब्जा दिलवाने के लिए सरकार प्रयासरत है. निर्मोही अखाड़े की भूमि को कब्जा करने के लिए याचिका लगाई है, इसके खिलाफ हम अतिशीध्र सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाएंगे. हम मांग करेंगे कि निर्मोही अखाड़े को वह जमीन दी जाए, ना कि वीएचपी या केंद्र सरकार को. निर्मोही अखाड़ा वहां मंदिर बनाएगा, वहां पर कोई मस्जिद बनाने वाला नहीं है. सरकार को चाहिए कि वो वीएचपी के मोह छोड़ दे और निर्मोही अखाड़े को जमीन दे.''
चुनावी फायदे के लिए सरकार ने उठाया है कदम: रामलला के पक्षकार अयोध्या राम मंदिर मामले के पक्षकार और हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत धर्मदास महाराज ने सरकार के कदम का विरोध किया है. महंत धर्मदास का कहना है कि सरकार के कदम से वीएचपी और राम जन्मभूमि न्यास की कमाई की कमाई होगी और ये चुनावी फायदे के लिए है. महंत धर्मदास महाराज ने कहा, ''केंद्र सरकार की इस याचिका का विरोध तो हम भी करेंगे. वहां पर जितनी भी जमीन है वो रामलला की है, रामलला ही मालिक हैं. मालिक की जमीन को किसी ट्रस्ट को नहीं दी जा सकती. सुप्री कोर्ट में सरकार की ये याचिका बिल्कुल गलत है. इस प्रकार से वीएचपी मामले को कोर्ट में लटकाना चाहती है, वह चाहते हैं कि किसी भी तरह ये कार्यकरे. केंद्र की याचिका को सुप्रीम कोर्ट कूड़ेदान में फेंक देगा.''
वीएचपी ने सरकार के कदम का स्वागत किया विश्व हिंदू परिषद सरकार के फैसले का स्वागत कर रहा है. विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, ''सरकार ने बड़ा और अच्छा कदम उठाया है, हम इसका स्वागत करते हैं. 67.703 एकड़ जमीन कब्जा की गई थी, जो विवादित भूमि है वो .313 एकड़ है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि मुकदमे का निर्णय हो जाए तो विवादित भूमि को वापस कर दिया जाएगा. मुकदमे का निर्णय दिख नहीं रहा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन मांगना और जो जमीन है राम जन्म भूमिन्यास की है वो वापस कर दी जाए. ये एक अच्छा कदम है. मैं इस कदम का स्वागत करता हूं.''
क्यों अहम है निर्मोही अखाड़े का ये पक्ष? निर्मोही अखाड़े का ये रुख बेहद अहम है क्योंकि वो अयोध्या में पक्षकार है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2.77 एकड़ जमीन जिन तीन पक्षों में बांटी थी उसमें एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को ही मिला है. हालांकि जमीन का बंटवारा सुप्रीम कोर्ट में लंबित केस के कारण नहीं हो पाया है.
सरकार की अर्जी से फंसा नया पेंच सरकार की अर्जी से एक नया पेंच भी पैदा हो गया है. केंद्र सरकार कह रही है कि विवादित जमीन केवल 0.313 एकड़ है. ये वो हिस्सा है जहां 6 दिसंबर 1992 से पहले विवादित ढांचा हुआ करता था। अभी तक विवादित जमीन 2.77 एकड़ मानी जाती रही है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसी 2.77 एकड़ जमीन को 3 हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था.