अयोध्या विवाद पर 5 दिसंबर को अगली सुनवाई, तब तक SC ने दस्तावेजों का अनुवाद करने को कहा
30 सितंबर 2010 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया था. हाई कोर्ट ने विवादित जगह पर मस्ज़िद से पहले हिन्दू मंदिर होने की बात मानी थी. लेकिन ज़मीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाडा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटने का आदेश दे दिया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
नई दिल्लीः रामजन्मभूमि विवाद की सुनवाई को अब और नहीं टाला जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आज ये साफ़ कर दिया. कोर्ट ने विवाद से जुड़े दस्तावेजों का अनुवाद 3 महीने में करने को कहा है. ताकि मामले की विस्तृत सुनवाई जल्द शुरू की जा सके. 5 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी.
30 सितंबर 2010 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया था. हाई कोर्ट ने विवादित जगह पर मस्ज़िद से पहले हिन्दू मंदिर होने की बात मानी थी. लेकिन ज़मीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाडा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटने का आदेश दे दिया था. इसके खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
इस बीच बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. उन्होंने अपने पूजा के अधिकार का हवाला दिया और कोर्ट से विवाद को जल्द हल करने की मांग की. कोर्ट ने उनकी मांग के मद्देनज़र सुनवाई के लिए 3 जजों की विशेष बेंच का गठन किया. आज बेंच के सामने सुन्नी वक्फ बोर्ड ने स्वामी की अर्ज़ी पर सुनवाई का विरोध किया. उनका कहना था कि ये एक सिविल विवाद है. इसमें मामले के मुख्य पक्षों को सुना जाना चाहिए. कोर्ट ने ये साफ़ किया कि वो पहले मुख्य विवाद पर ही सुनवाई करेगा. स्वामी समेत दूसरे लोगों की अर्ज़ी की सुनवाई पर बाद में फैसला लिया जाएगा.
कोर्ट ने ये जानना चाहा कि सबसे पहली अपील किसने दाखिल की थी. ताकि सुनवाई की शुरुआत उसी पक्ष से हो. रामलला विराजमान के वकील सी एस वैद्यनाथन ने बताया कि पहली अपील उनकी ओर से दाखिल हुई थी. इस बीच सुन्नी वक्फ बोर्ड और दूसरे मुस्लिम पक्षकारों ने दस्तावेजों का अनुवाद न हो पाने का मसला उठा दिया.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील अनूप जॉर्ज चौधरी के साथ ही मुस्लिम पक्षकारों के वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन का कहना था कि हाई कोर्ट में 7 भाषाओं में दस्तावेज रखे गए थे. ये पुराने दस्तावेज हिंदी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी, संस्कृत, पाली और पंजाबी में हैं. वकीलों का कहना था कि इनका अब तक अनुवाद नहीं हो पाया है. इसलिए सुनवाई नहीं हो सकती.
जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर की बेंच ने सुनवाई को लंबे समय तक टालने से मना कर दिया. बेंच ने कहा- ये सुनवाई पहले ही काफी टल चुकी है. जो पक्ष जिस दस्तावेज को कोर्ट में रखना चाहता है, उसका वो खुद ही अनुवाद कराए. हाई कोर्ट में हिंदी में रखी गई दलीलों का अनुवाद यूपी सरकार करवाए.
कोर्ट ने सभी पक्षों को अनुवाद के लिए 3 महीने का वक़्त दिया और सुनवाई की अगली तारीख 5 दिसंबर तय कर दी. मुस्लिम पक्षकारों ने सुनवाई जनवरी में करने की मांग की. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा- 5 दिसंबर को सुनवाई होने दीजिए. उस महीने हमारे पास सुनवाई के लिए 2 या 3 दिन ही हैं. विस्तृत सुनवाई तो वैसे भी जनवरी में ही हो सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद पर 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई