पांच दिसंबर को उत्तर प्रदेश के रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव के मद्दे नजर इन दिनों रामपुर में खूब हलचल देखने को मिल रही है.इस साल की शुरुआत में हुए उपचुनावों में रामपुर और आजमगढ़ दोनों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी को उम्मीद है कि वह इस चुनाव में भी अपनी जीत दर्ज कर लेगी. बीजेपी इस सीट को अपने नाम करने के लिए मुसलमानों के बीच अपनी छवि सुधारने की पुरजोर कोशिश में लग गई है, लेकिन उनका ये सफर इतना आसान नहीं होने वाला है. 


यह सीट समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान का गढ़ रहा है. रामपुर की राजनीति में ऐसा 45 साल बाद हो रहा है जब आजम खान के परिवार से कोई भी सदस्य रामपुर के चुनावी दंगल में नहीं है. इस सीट पर आजम खान ने पहली बार साल 1977 से चुनाव लड़ा था.उस वक्त वह चुनाव हार गए थे, लेकिन इसके बाद साल 1980 से लेकर अब तक 10 चुनाव जीत चुके हैं. भड़काऊ भाषण को लेकर आजम खान को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद यहां उपचुनाव हो रहे हैं. रामपुर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करना बीजेपी की लिए चुनौती इसलिए भी है क्योंकि यहां 10 बार सपा नेता ने चुनाव जीता है. इसके अलावा इस सीट पर सबसे ज्यादा वोटर्स मुस्लिम हैं. 


रामपुर में करीब 80 हजार की संख्या में मुस्लिम वोटर्स हैं. इसके बाद वैश्य और लोधी समाज के वोटर्स की संख्या लगभग बराबर है.रामपुर में वैश्य और लोधी समाज के करीब 35-35 हजार वोटर्स हैं. वहीं इस सीट पर करीब 15 हजार एससी वोटर्स हैं. बीजेपी इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स के अलावा लोधी और वैश्य वोटों पर भी फोकस कर रही है. 


पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बड़े नेता मुस्लिम समुदाय के नेताओं से मिल रहे हैं. इस पार्टी पर अक्सर ये आरोप लगता रहा है कि वह मुस्लिमों को टिकट नहीं देती है. लेकिन अब पार्टी अपने को लेकर बनी इस धारणा को बदलने की कोशिश में दिख रही है.


इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि पसमांदा मुसलमान बीजेपी के जीत की राह आसान कर रहे हैं. बीजेपी ने दावा किया था कि रामपुर लोकसभा उपचुनाव में बंजारा मुसलमानों यानी पसमांदा मुसलमान ने उन्हें जमकर वोट दिया था जिसकी वजह से पार्टी जीतने में कामयाब हुई थी. 


कौन हैं पसमांदा मुसलमान?


देशभर की बात करें तो भारत में कुल आबादी का करीब 15 फीसदी मुसलमान हैं और इसमें से पसमांदा मुसलमानों की आबादी 80 फीसदी है. पसमांदा मुसलमान का मतलब है वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इस श्रेणी में दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं. पसमांदा मुसलमान मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं.अब उनके कई आंदोलन हो चुके हैं.पसमांदा शब्द उर्दू-फारसी का है और इसका मतलब होता है पीछे छूटे या नीचे धकेल दिए गए लोग.


भारत के मुसलमान समुदाय के 15 फीसदी लोग उच्च वर्ग या सवर्ण माने जाते हैं. इन्हें अशरफ कहा जाता है, इसके अलावा बचे अन्य 85 फीसदी दलित और बैकवर्ड ही माने जाते हैं. इन लोगों की हालत मुस्लिम समाज में अच्छी नहीं है. इस समाज का स्वर्ण तबका उन्हें हेय दृष्टि से देखता है. वह सामाजिक से लेकर आर्थिक और शैक्षणिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए हैं. इस तबके को भारत में पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है.


रामपुर में बीजेपी पसमांदा मुसलमानों के बीच कैसे काम कर रही है


इस सवाल के जवाब में पसमांदा मुसलमानों के लिए काम कर रहे बीजेपी के नेता आतिफ रसीद ने एबीपी से बातचीत के दौरान कहा, 'भारतीय जनता पार्टी चुनाव ओरिएंटेड काम नहीं करती बल्कि हमारी पार्टी जब से यूपी में है तब से ही जनता के हित के लिए काम करती है. लेकिन अब हम पिछले कुछ दिनों से इस बात पर फोकस कर रहे हैं कि प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों को पीएम के जिस स्किम से मदद मिली है या वो जिस स्कीम का लाभ ले पा रहे हैं उसे उन बताया जाए कि ये काम भारतीय जनता पार्टी की योजना.


उन्होंने कहा कि अगर आप प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का जिला स्तर पर डाटा उठाए तो पाएंगे कि उसपर अधिकांश लाभार्थी  मुस्लिम समाज के होंगे और मुस्लिम समाज में भी पसमांदा मुसलमान होंगे. प्रधानमंत्री किसान निधी योजना है, प्रधानमंत्री शौचालय योजना है और ऐसे ही राज्य सरकार की जो योजनाएं है, हम उस तबके तक पहुंचाते हैं जो इन सब लाभ से वंचित थे.  


आतिफ राशिद ने कहा कि हमने लगभग तीन सालों तक मुफ्त राशन योजना चलाया था. इस स्कीम का लाभ उठाने वाले उत्तर प्रदेश की बड़ी तादाद थी. अब जब हमने उनपर एनालिसिस किया तो पाया वो लोग समाज के गरीब लोग थे. हमने बस इन सालों में काम किया है, लेकिन अब पसमांदा समुदाय के बीच जाकर हम यह बात रहे हैं कि बता रहे हैं कि आपके घर में शौचालय, राशन या जो पक्के घर है वो हमारी योजना है.


 राशिद ने दावा किया, 'हम जितना पसमांदा समुदाय को जागरुक कर रहे हैं उतना सफल भी हो रहे हैं. आज लाखों पसंमादा मुसलमान हमारे साथ हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण इसी साल हुआ रामपुर लोकसभा उपचुनाव है. जहां पसमांदा मुसलमानों ने हमें वोट दिया और उनकी मदद से ही हम इस सीट तो जीतने में कामयाब रहें. हमारे पास पसमांदा मुसलमानों का दिल जीतने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है. हमारे पास उनके दिल को जीतने और उन्हें बीजेपी से मिलाने के लिए मोदी जी की नीतियां हैं और पीएम की सरकारी योजनाएं है. वहीं हमारे लिए  एक ऐसा हथियार है जो ब्रह्मास्त्र का काम कर रहा है'.


आतिफ रशीद कहते हैं कि योगी सरकार ने तमाम बोर्ड और निगम में पसमांदा मुस्लिमों को सदस्य और अध्यक्ष  बना रखा है. इतना ही नहीं इस समुदाय के दानिश आजाद को कैबिनेट में भी मंत्री बनाया गया है. हमने हर कदम पर उनका साथ दिया है इसीलिए मुझे यकीन है कि मुस्लिमों को बड़ा तबका बीजेपी के साथ आगामी चुनाव में खड़ा नजर आएगा.


बीजेपी की निगाहें क्यों है पसमांदा मुस्लिमों पर 


रामपुर विधानसभा उपचुनाव एक मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र है.यहां लगभग 3.80 लाख मतदाताओं में से 55 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय से है.ज़ाहिर है इसमें सबसे ज्यादा पसमांदा मुसलमान हैं. इन समीकरणों को देखते हुए बीजेपी की नजर अब मुस्लिमों की इसी बड़ी आबादी पर है.


नवंबर, 2022 में ही रामपुर में बीजेपी की तरफ से अल्पसंख्यक लाभार्थी सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इस आयोजन के फोकस में पसमांदा मुसलमान को रखा गया था. इसके अलावा इसी साल बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी.


इसमें तमाम ऐसे मीडिया रिपोर्ट्स सामने आए जिसमें दावा किया गया कि हैदराबाद में हुई इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय के ऐसे लोग जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं उन पर फोकस करने पर जोर दिया था. ऐसा माना जा रहा है कि आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में भी बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों पर पूरा जोर लगाया था और नतीजा बीजेपी के पक्ष में रहा और अब बारी है आजम खान के गढ़ रामपुर की सीट की. 


आख़िर पसमांदा मुसलमान क्या चाहते हैं?


दरअसल 45 फीसदी पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण मिलता है. पूरे देश में कहीं-कहीं मुसलमानों की कुछ जातियों को ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है. वहीं कुछ जातियों की मांग है कि उन्हें ओबीसी  से अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल किया जाए. उनका कहना है कि वह ओबीसी में शामिल तो है लेकिन एससी में शामिल होने से उन्हें दूसरे राजनीतिक लाभ भी मिलेंगे. उदाहरण के तौर पर विधायक और सांसद चुनाव में एससी सीटों के आरक्षण का लाभ होती हैं. एससी में आने के बाद ओबीसी में आने वाली एडवांस जातियों से उनको कोई राजनीतिक लाभ लेने के लिए मुक़ाबला नहीं करना होता है."


सपा के सामने बड़ी चुनौती 


एक तरफ जहां बीजेपी इस सीट पर अपनी जीत दर्ज करने की पूरी कोशिश में लगी है. वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के सामने अपना एक बड़ा गढ़ बचाने की बड़ी चुनौती है. हालांकि प्रचार को देखें तो समाजवादी पार्टी का कोई बड़ा नेता इस सीट को लेकर बेहद संजीदा नहीं है. सपा ने रामपुर सदर के लिए आजम खां के परिवार के किसी भी सदस्य को प्रत्याशी ना बनाकर उनके करीबी आसिम राजा को टिकट दिया है. ये वही रजा है जो एक बार लोकसभा उपचुनाव हार चुके हैं. वहीं कुछ दिनों में यहां वोटिंग होने वाली है लेकिन सपा की तरफ से कोई  बड़ा नेता रामपुर नहीं आ रहा है. इस मुद्दे पर सपा जब समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं हो पाई है.


बीजेपी की कवायद का कितना असर
रामपुर में बीजेपी भले ही मुसलमानों को लुभाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही हो लेकिन उसके सामने कई वैचारिक चुनौतियां भी हैं. हाल ही में मदरसों को लेकर कराए गए सर्वे अभियान पर मुसलमानों के मन में कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं. वहीं बीजेपी नेताओं की ओर से कॉमन सिविल कोड की भी बातें की जा रही हैं. इसको लेकर भी चर्चा जारी है. इन सब के बीच मुसलमान बीजेपी के साथ कितना जाएंगे ये आपने आप में ही बड़ा सवाल है.


 


रामपुर सदर पर किसका किससे मुकाबला 


भाजपा ने इस सीट से आकाश सक्सेना को उतारा है. आकाश इसी साल मार्च महीने में हुए विधानसभा चुनाव में आजम खान से हारे थे. वहीं सपा ने आजम खान के वफादार मोहम्मद असीम खान को मैदान में उतारा है. इस चुनाव में दोनों के बीच टक्कर का मुकाबला होने वाला है. असीम राज लोकसभा चुनाव में घनश्याम सिंह से 42, 192 वोट से हार गए थे.