नई दिल्लीः भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की स्टडी के मुताबिक मरीजों के बीमार होने के शुरुआती पांच दिनों में कोविड-19 का पता लगाने के लिए रैपिड एंटीजन जांच की जा सकती है. ताकि जल्दी उनकी पहचान की जा सके और अलग करके इलाज शुरू किया जा सके. इस स्टडी को इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित किया गया है.


यह स्टडी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) की ओर से 31 मई से 24 जुलाई के बीच मरीजों की कोविड-19 जांच पर आधारित है. इस अध्ययन में 330 मरीज शामिल हुए. अध्ययन के मुताबिक जिन मरीजों में रैपिड एंटीजन जांच से संक्रमण की पुष्टि हुई, उन्हें अलग कर इलाज करना चाहिए जबकि जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आई है उनकी जांच आरटी-पीसीआर पद्धति से कर संक्रमण की पुष्टि की जानी चाहिए.


एम्स में जिन मरीजों की जांच की गई उनमें 31.5 प्रतिशत मरीजों को बुखार, 25.4 प्रतिशत मरीजों को खांसी, 11.8 प्रतिशत मरीजों को थकान और बेचैन, 3.3 प्रतिशत मरीजों को सिर दर्द, 3.3 प्रतिशत मरीजों को नाक बहने की शिकायत थी. वहीं, 57 मरीजों ने गले में छाले होने की शिकायत की लेकिन इनमें से केवल दो मरीजों (3.5 प्रतिशत) के ही कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई.



95.4 फीसदी सटीक रहा रैपिड एंटीजन टेस्ट
स्टडी के मुताबिक, रैपिड एंटीजन जांच में 64 लोगों की रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि हुई. इनमें से 63 वास्तव में संक्रमित थे जबकि एक की गलत रिपोर्ट आई थी. इसी प्रकार जिन लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई उनमें से 252 लोग (76.3 प्रतिशत) वास्तव में संक्रमण मुक्त थे जबकि 14 (4.2 प्रतिशत) संक्रमित थे. इस प्रकार रैपिड एंटीजन जांच की सटीकता 95.4 प्रतिशत रही।


स्टडी  में कहा गया कि ‘‘ यह निष्कर्ष निकलता है कि बीमारी के शुरुआती पांच दिनों और मध्यम दर्जे के लक्षण वाले मरीजों में कोविड-19 का पता लगाने में रैपिड एंटीजन जांच की सटीकता बेहतर है.’’


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