रसगुल्ला विवाद में हुई पश्चिम बंगाल की जीत, जानें रसगुल्ले की असली कहानी
रसगुल्ला विवाद में आखिरकार पश्चिम बंगाल की जीत हुई है. पश्चिम बंगाल को जीआई टैग यानि जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया है.
नई दिल्ली: रसगुल्ला विवाद में आखिरकार पश्चिम बंगाल की जीत हुई है. पश्चिम बंगाल को जीआई टैग यानि जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया है. आसान शब्दों में कहें तो अब ये माना जा चुका है कि रसगुल्ले की उत्पत्ति बंगाल में हुई थी. ओडिशा का दावा था कि रसगुल्ला बनाने की विधि वहां से पश्चिम बंगाल पहुंची थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस जीत पर खुशी जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि ये पूरे राज्य के लिए खुशी और गौरव की बात है. दरअसल, पिछले काफी वक्त से पश्चिम बंगाल और ओडिशा इस जीआई टैग के लिए आपस में भिड़े हुए थे.
ओडिशा का दावा
ओडिशा में माना जाता है कि रसगुल्ला सबसे पहली बार वहीं पर बना था. कहते हैं कि इस मिठाई का जन्म पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हुआ था. इस कहानी के मुताबिक रथयात्रा के बाद जब भगवान जगन्नाथ वापस लौटे तो दरवाजा बंद पाया क्योंकि देवी लक्ष्मी उनसे नाराज थीं. उनकी नाराजगी इस वजह से थी कि जगन्नाथ उन्हें अपने साथ नहीं ले गए थे. रूठी देवी को मनाने के लिए जगन्नाथ उन्हें रसगुल्ला पेश करते हैं और देवी मान जाती हैं.
भुवनेश्वर के पास एक गांव है पाहला. माना जाता है कि इसी गांव में खीरमोहन के नाम से इस मिठाई को बनाया जाता था और प्रसिद्धि फैलने पर ये मिठाई मंदिर तक पहुंची. 13वीं शताब्दी से रसगुल्ला ओडिशा में बन रहा है. अभी भी रथयात्रा के बाद जब भगवान वापस मंदिर पहुंचते हैं तो रसगुल्ले ही उन्हें देवी के क्रोध से बचाते हैं.
बंगाल का दावा
बंगाल के रसगुल्ले के बारे में तो आपने सुना ही होगा. और जब बात रसगुल्ले की हो तो केसी दास का जिक्र जरूर होगा. दावा है कि रसगुल्ले का अविष्कार नोबीन चंद्र दास ने 1868 में किया था. नोबीन चंद्र दास कोलकाता के बागबाजार इलाके में मिठाई की दूकान चलाते थे. सन्देश/सोन्देश की टक्कर में उन्होंने रसगुल्ले का अविष्कार किया था.
कहते हैं कि एक बार एक सेठ रायबहादुर भगवानदास बागला अपने परिवार के साथ कहीं जा रहे थे. उनके एक बेटे को प्यास लगी तो उन्होंने नोबीन दास की दूकान के पास बग्गी रुकवा ली. नोबीन ने प्यासे बच्चे को पानी तो दिया ही साथ में रोसोगोल्ला भी दिया जो उसे काफी अच्छा लगा. उसने अपने पिता से इसे खाने को कहा. सेठ को भी ये मिठाई बहुत पसंद आई और उसने अपने परिवार और दोस्तों के लिए इसे खरीद लिया. बस फिर तो ये मिठाई शहर भर में प्रसिद्ध हो गई.
क्या फर्क है दोनों के बीच
ओडिशा का रसगुल्ला थोड़ा साइज में बड़ा होता है और गहरे रंग पर होता है, पूरा सफेद नहीं होता. जबकि पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला पूरा सफेद होता है और साइज़ में भी ऐसा होता है कि हर कोई सुविधा से इसे खा पाए. दुनिया भर में फैले बंगाल के लोगों ने इसे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध बना दिया है और आज रसगुल्ला पूरी दुनिया का मुंह मीठा कर रहा है.