अंतिम यात्रा में सबसे आगे आए नजर, एक लेटर ने बदली जिंदगी! जानिए कौन हैं रतन टाटा के ‘युवा दोस्त’ शांतनु नायडू?
Ratan Tata Young Friend: आज जब रतन टाटा की अंतिम यात्रा निकल रही थी तो एक शख्स बाइक पर सबसे आगे नजर आया. ये रतन टाटा का सबसे युवा दोस्त है.
Who Is Shantanu Naidu: 9 अक्टूबर की रात 86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले कारोबारी रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त करने वालों में एक ऐसा युवक भी शामिल था, जो उनकी अंतिम यात्रा में सबसे आगे नजर आया. टाटा के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक और उनके भरोसेमंद सहायक शांतनु नायडू रतन टाटा की उम्र के आधे से भी कम थे, लेकिन दोनों के बीच एक अलग ही रिश्ता था.
जब रतन टाटा के निधन की खबर आई तो शांतनु ने अपनी दोस्ती को समर्पित एक भावपूर्ण नोट शेयर किया. उन्होंने कहा, "इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन छोड़ दिया है, मैं अपनी बाकी की जिंदगी उसे भरने की कोशिश में बिता दूंगा. दुख वह कीमत है जो हम प्यार के लिए चुकाते हैं. अलविदा, मेरे प्यारे लाइटहाउस."
कब हुई इन दोनों के बीच दोस्ती?
दोनों की मुलाकात 10 साल पहले 2014 में हुई थी, जब शांतनु ने टाटा समूह के साथ काम करना शुरू किया था. टाटा समूह के पांचवीं पीढ़ी के कर्मचारी शांतनु ने आवारा कुत्तों के लिए अंधेरे में चमकने वाले कॉलर डिजाइन करना शुरू किया था, ताकि वाहन चालकों को उन्हें पहचानने में आसानी हो और दुर्घटनाओं से बचा जा सके.
और एक चिट्ठी ने बदल दी जिंदगी
शांतनु को अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए फंड की जरूरत थी और उसने रतन टाटा को चिट्ठी लिखकर मदद मांगने का फैसला किया. शांतनु को हैरानी उसक वक्त हुई जब रतन टाटा ने दो महीने के भीतर ही जवाबी पत्र लिखकर शांतनु को मुंबई आने और उनके साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया.
दरअसल, जानवरों से रतन टाटा को भी बहुत प्यार था. आज उनके अंतिम संस्कार के दौरान एक प्यारा कुत्ता भी नजर आया था जो उनका पालतू कुत्ता था. जानवरों के प्रति अपने प्यार के कारण दोनों ने मिलकर शांतनु की कंपनी "मोटोपाव्स" को लॉन्च करने में मदद की.
शांतनु ने गुड फेलोज नाम का एक स्टार्टअप भी लॉन्च किया, जो बुजुर्गों को युवा साथियों से जोड़ता है. वेबसाइट पर उन्होंने लिखा, "मुझे नहीं पता कि इसकी शुरुआत कब हुई, लेकिन मेरे मन में हमेशा से बुजुर्गों के लिए स्नेह की भावना रही है. पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मेरे कई दोस्तों के बाल चांदी के हैं और दिल सोने के."
दिन गुजरते गए और ये दोस्ती गहरी होती गई
साथ काम करने के बाद शांतनु और रतन टाटा अच्छे दोस्त बन गए, लेकिन जल्द ही शांतनु को एमबीए करने के लिए अमेरिका जाना पड़ा. हालांकि, उन्होंने टाटा से वादा किया कि वे अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद भारत लौट आएंगे और उनके लिए काम करेंगे.
अपने वादे को निभाते हुए, शांतनु ने रतन टाटा का असिस्टेंट बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उन्हें टाटा ट्रस्ट का प्रबंधक भी नियुक्त किया गया, जो इस पद को संभालने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे. बदले में, टाटा उनके ग्रेजुएशन सेरेमनी में हिस्सा लेने अमेरिका पहुंचे.