अभी तीन मरे हैं दिल्ली में. किसी दिन 30 भी मरेंगे. फिर 300 भी मरेंगे. लोग मरते जाएंगे और सियासी पार्टियां एक दूसरे पर तोहमत लगाते हुए थोड़ी देर हंगामा करेंगी. फिर ऐसी चुप्पी साध लेंगी मानो कुछ हुआ ही नहीं है. ये है एक आम इंसान के जान की कीमत, जिसका मुआवजा कुछ रुपये और थोड़ा सा हंगामा है. वरना जो सियासी पार्टियां एक सत्संग में 121 लोगों की मौत पर चुप्पी साध लेती हैं, वो सियासी पार्टियां महज 3 लोगों के पानी में डूबने भर से क्यों ही हंगामा करेंगी और करेंगी भी तो कितनी देर करेंगी क्योंकि हंगामे के बाद जो होगा, उसमें उनके दामन पर भी छीटें पड़ेंगे. ये तो कोई भी दल चाहे वो सत्ता पक्ष हो या विपक्ष चाहता तो नहीं ही है. 



राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भर जाता है. तीन बच्चे डूब जाते हैं. मर जाते हैं और गिरफ्तार कौन होता है, वो जिसकी बिल्डिंग है, जो कोचिंग का मालिक है, जो कोचिंग का कोऑर्डिनेटर है, जिसकी कार की वजह से पानी की रफ्तार इतनी बढ़ गई कि कोचिंग का गेट टूट गया. कुल मिलाकर सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है वो जेल में रहेंगे कितने दिन. अधिक से अधिक कुछ महीने, क्योंकि मामला गैर इरादतन हत्या का है. ठीक-ठीक बात करें तो भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या), 106 (1) (लापरवाही से किया गया काम जिसकी वजह से किसी की मौत हो जाए) 115 (2), (जानबूझकर चोट पहुंचाना) और 290 (इमारतों को बनाने या गिराने के वक्त जानबूझकर की गई लापरवाही) के तहत पूरा मुकदमा दर्ज हुआ है. अगर इसमें दोषी पाए गए तो इन लोगों को सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

असल सवाल ये है कि हादसा हुआ ही क्यों और अगर इस क्यों का जवाब खोज लिया जाए, तो ईमानदारी का ढोल पीटने वाले बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों की पोल खुल जाएगी और वो कहीं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे. ये हादसा किसी गांव का नहीं है कि एक पुलिया टूटी और गांव में पानी आ गया. ये हादसा असम का नहीं है कि ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आई तो गांव के गांव बहा ले गई. ये हादसा बिहार का भी नहीं है कि नेपाल ने अपने बांध के सारे गेट एक साथ खोल दिए और पूरा बिहार पानी-पानी हो गया.

ये हादसा बीच दिल्ली का है, जहां पर देश की संसद है, देश का राष्ट्रपति भवन है, देश का सुप्रीम कोर्ट है, देश ही हर एक जांच एजेंसी है. दुनिया के हर देश का दूतावास है. वो ऐतिहासिक लाल किला है. वो सब है, जो इस देश की शिनाख्त है और जिसके जरिए पूरी दुनिया में हमारी अलग पहचान है. इस पहचान के बीच महज तीन मिनट में एक बिल्डिंग में ऐसा पानी भरता है कि तीन लोग डूबकर मर जाते हैं. तो फिर जवाबदेह कौन है. क्या आम आदमी पार्टी, जिसके जिम्मे एमसीडी है. अब बीजेपी उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रही है. या फिर बीजेपी जिसके जिम्मे एमसीडी रही है. और आम आदमी पार्टी इस पूरे हादसे को बीजेपी के मत्थे मढ़ने की कोशिश कर रही है.


या फिर ये दोनों जिन्होंने बारी-बारी एमसीडी पर अपनी दावेदारी दिखाई है क्योंकि फरवरी 2023 से पहले दिल्ली एमसीडी पर बीजेपी का कब्जा था. जब 2021 में इस कोचिंग को एमसीडी ने सर्टिफिकेट जारी किया था तो कहा था कि बेसमेंट में सिर्फ स्टोरेज और पार्किंग होगी, और कुछ भी नहीं. तो क्या एमसीडी का काम सिर्फ सर्टिफिकेट जारी करना था. क्या इस बात की जांच कभी एमसीडी ने जरूरी समझी ही नहीं कि जिसका सर्टिफिकेट दिया गया है, वहां काम वही हो रहा है या कुछ और. अगर ये जांच नहीं हुई तो जवाबदेह कौन है.

एमसीडी के वो अधिकारी, जिन्होंने सर्टिफिकेट जारी किया था. एमसीडी के कमिश्नर और एमसीडी के मेयर. इसकी सीधी जिम्मेदारी बीजेपी की है, जो आज आम आदमी पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है, लेकिन इस जिम्मेदारी से आम आदमी पार्टी भी नहीं बच सकती है क्योंकि अगर बीजेपी के मेयर और उनके अधिकारियों की देखरेख में एमसीडी ने जिम्मेदारी नहीं निभाई तो आम आदमी पार्टी की मेयर शैली ओबराय ने ही आखिर क्या किया. क्या इस हादसे से पहले उन्हें इस बात की जांच नहीं करवानी चाहिए थी कि एमसीडी की ओर से जिस काम के लिए सर्टिफिकेट जारी हुआ है, काम वही हो रहा है या कुछ और. अगर वो जांच करवातीं और वक्त से पहले हादसा टल जाता तो फिर राजनीति कैसे होती.

तो इंसान की जान राजनीति के काम आती है. अब भी इन तीन बच्चों की जान राजनीतिक पार्टियों के ही काम आ रही है क्योंकि न तो बीजेपी के नेता ये कहने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं कि उनके वक्त में भी कोचिंग सेंटर्स की जांच हुई, जो उनकी जिम्मेदारी थी. न ही आम आदमी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि हमारे वक्त में भी इन कोचिंग सेंटर्स की जांच नहीं हुई और जांच के लिए हम बड़ा हादसा होने का इंतजार करते रहे, लेकिन इस बड़े हादसे से पहले भी छोटे-छोटे हादसे हो चुके हैं. अभी इसी साल कोचिंग सेंटर्स में आग लगी तो फायर की एनओसी चेक करने की बात हुई. अगर इसी एनओसी को कायदे से चेक किया गया होता, तो इसी चेकिंग के दौरान पता चल गया होता कि इस कोचिंग के बेसमेंट में स्टोर रूम या पार्किंग नहीं बल्कि लाइब्रेरी है, लेकिन ये जांच हुई ही नहीं. तो इसके लिए जवाबदेह शैली ओबरॉय को भी होना ही पड़ेगा. बीजेपी का प्रदर्शन उसी बात के लिए है.

बीजेपी भी ये प्रदर्शन कुछ घंटों तक करेगी. ज्यादा से ज्यादा कुछ दिनों तक. फिर कोई और मुद्दा मिल जाएगा. फिर कहीं और किसी की मौत हो जाएगी.  फिर पुराने मुद्दे छोड़ नए मुद्दे पर प्रदर्शन होगा. सिलसिला चलता रहेगा क्योंकि अगर सिलसिला ऐसे ही नहीं चलता तो अभी हाल ही में तो कोचिंग सेंटर में आग लगी थी. क्या हुआ उस आग के जिम्मेदारों का. कुछ भी नहीं. पिछले 10 दिन में दिल्ली की सड़कों पर करंट लगने की वजह से तीन लोगों की मौत हो गई. इन तीन में एक यूपीएससी का भी छात्र था जिसकी मौत हुई. इन तीनों की मौतों का जिम्मेदार कौन था, उनके ऊपर क्या एक्शन हुआ. जवाब कुछ भी नहीं.


दिल्ली शहर में पानी में डूबकर लोगों की मौत हो जाती है. सिरसापुर अंडरपास में दो बच्चे डूब जाते हैं. ओखला में बुजुर्ग डूब जाते हैं. जिम्मेदार कौन, पता है लेकिन एक्शन कुछ भी नहीं.  इससे पहले 25 जनवरी 2020 को दिल्ली के भजनपुरा इलाके में कोचिंग सेंटर की दो छतें गिर गईं. चार छात्र मर गए. 15 घायल हुए. जवाबदेह कौन है, सबको पता है, लेकिन एक्शन कुछ भी नहीं. अभी हाल ही में हाथरस में 121 लोगों की मौत हुई. क्या उन मौतों के लिए कोई जवाबदेह साबित हुआ. क्या किसी अधिकारी को, किसी बड़े नेता को, उस बाबा को जवाबदेह माना गया. जवाब है नहीं...क्योंकि जो जवाबदेह होता, वो जेल में होता और जेल में अभी कौन है, वो सबको पता है.

तो बस आम आदमी जान गंवाने के लिए है और नेता उन लाशों पर राजनीति करने के लिए. बाकी टमाटर भले ही 100 रुपये हैं, लेकिन वो आम इंसान की जान से महंगा है. उसपर चर्चा जरूरी है. आइए टमाटर पर चर्चा करते हैं. क्योंकि टमाटर की महंगाई पर बात करने से कोई नेता आहत नहीं होगा, किसी सियासी दल पर कोई कीचड़ नहीं उछलेगा और ड्राइंग रूम में आराम से बैठकर इसपर चर्चा भी हो जाएगी.


यह भी पढ़ें:-
द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और शकुनि... राहुल गांधी ने संसद में किससे की इन 6 नामों की तुलना