नई दिल्ली: देश में राम मंदिर निर्माण पर जारी बहस के बीच आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दिया है. आज मामला जैसे ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच के सामने आया, चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले को जनवरी में उपयुक्त बेंच के सामने लाया जाए. जनवरी में यही बेंच सुनवाई करेगी या नहीं ये अभी तय नहीं है. यह चीफ जस्टिस पर निर्भर करता है कि वो नई बेंच बनाते हैं या नहीं. आज की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद साफ हो गया कि रोजाना सुनवाई की तारीख आने में अभी और समय लगेगा.
इस पूरे मामले पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''हम राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव से नहीं जोड़ते. हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है और हम कोर्ट का सम्मान करते हैं. बहुत लोगों की अपेक्षा है कि सुनवाई जल्द से जल्द हो. इलाहबाद में मैं रामलला का वकील था. वहां हम जीते और फैसला हमारे हक में आया. रामलला विराजमान की जगह हिंदुओं को मिली. अब जिन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना था था वो गए. कानून मंत्री होने के नाते इस मसले पर मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता.''
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले ओवैसी
सुनवाई टलने पर ओवैसी ने कहा, ''चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि जनवरी में उपयुक्त बेंच के पास मामला जाएगा वो तय करेगी. कोर्ट का फैसला जिसे मानना ही पड़ेगा. देश संविधान से ही चलेगा.''
ओवैसी ने कहा, ''जनवरी में जब इस मामले की सुनवाई हो तो प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वो अपने अटॉर्नी जनरल को बदल दें और उनकी जगह गिरिराज सिंह को भेजें. वो बताएंगे कि महोदय हिंदुओं के सब्र टूट रहा है. गिरिराज सिंह बहुत काबिल आदमी हैं, उन्हें पूरा कानून पता है. ऐसा लगता है कि अरस्तु के बाद कोई काबिल आदमी पैदा हुआ है तो यही हैं.''
ओवैसी ने कहा, "सरकार अध्यादेश लाकर दिखाए, ऐसी बातों से कब तक डराएंगे. संविधान से देश चलेगा कि मनमर्जी से हो चलेगा. 56 इंच का सीना है तो लाकर दिखाएं अध्यादेश.''
क्या है अयोध्या विवाद?
अयोध्या में जमीन विवाद सत्तर सालों से चला आ रहा है, अयोध्या विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है. मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई.
दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था. अयोध्या में विवादित जमीन पर अभी राम लला की मूर्ति विराजमान है.
अयोध्या विवाद में हाईकोर्ट का फैसला क्या था?
अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद आपराधिक केस के साथ साथ जमीन के मालिकाना हक को लेकर भी मुकदमा चला. आठ साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एतिहासिक फैसला दिय़ा. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बराबर बांटने का फैसला दिया.
राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को मिला. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला. जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया. हाईकोर्ट के फैसले को हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. तीनों ही पक्षों ने पूरी विवादित जमीन पर अपना अपना दावा ठोंका.