नई दिल्लीः रिजर्व बैंक और सरकार में कई दिनों से जारी तनातनी के बीच सोमवार को आरबीआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मैराथन बैठक हुई. इस बैठक में कई मुद्दों मसलन केंद्रीय बैंक को कितनी पूंजी की जरूरत है, लघु और मझोले उद्यमों को कर्ज देने और कमजोर बैंको के नियमों पर चर्चा हुई.


रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल और केन्द्रीय बैंक के सभी डिप्टी गवर्नरों की बोर्ड में सरकार द्वारा मनोनीत निदेशकों, आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार और स्वतंत्र निदेशक एस गुरुमूर्ति के साथ विवादित मुद्दों पर कोई बीच का रास्ता निकालने के लिये आमने सामने बातचीत हुई.

लगभग नौ घंटे तक चली बैठक के बाद आरबीआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने 9.69 करोड़ रुपये की कैपिटल सरप्लस से संबंधित मुद्दे की जांच परख के लिये एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है. साथ ही एमएसएमई क्षेत्र में फंसे ऐसेट के पुनर्गठन के लिये भी एक योजना पर विचार करने की भी सलाह दी है.

रिजर्व बैंक के मुताबिक, सोमवार को 9 घंटे चली आरबीआई निदेशक मंडल की बैठक में यह फैसला भी लिया गया है कि आरबीआई का वित्तीय निगरानी बोर्ड (बीएफएस) उन बैंकों से जुड़े मामलों की जांच करेगा, जिन्हें आरबीआई ने त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) की रूपरेखा के अंतर्गत रखा है. निदेशक मंडल ने रिजर्व बैंक को 25 करोड़ रुपये की कुल ऋण सुविधा के साथ छोटे और मझोले उद्योगों की दबाव वाली ऐसेट का पुनर्गठन करने की योजना पर विचार करने का सुझाव दिया

केंद्रीय बैंक ने कहा, "आरबीआई के निदेशक मंडल ने बैंक की आर्थिक पूंजी रूपरेखा ढांचे की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का फैसला किया है. जिसके सदस्यों और संदर्भ शर्तों को भारत सरकार और आरबीआई द्वारा संयुक्त रूप से तय किया जायेगा."

टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन सहित रिजर्व बैंक के 10 स्वतंत्र निदेशकों में से अधिकतम स्वतंत्र निदेशक बैठक में शामिल हुए. बैठक पर मीडिया और बाजार की कड़ी निगाह बनी रही.

केंद्रीय बैंक के साथ बढ़ते गतिरोध के बीच वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात के तहत विचार विमर्श शुरू किया था. इस धारा का इससे पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ है. इसके तहत सरकार को रिजर्व बैंक गवर्नर को निर्देश जारी करने का अधिकार होता है. रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले महीने केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था. वहीं एस गुरुमूर्ति ने पिछले सप्ताह कहा था कि केंद्र और केंद्रीय बैंक के बीच गतिरोध को किसी भी तरीके से अच्छी स्थिति नहीं कहा जा सकता.