भारत में डिजिटल करेंसी वास्तविकता बन सकती है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के डिप्टी गवर्नर टी रविशंकर ने संकेत दिया है कि भारत में आरबीआई खुद की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) लाने पर विचार कर रहा है. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रबिशंकर ने कहा कि आरबीआई भारत में डिजिटल मोनेट्री एसेट (डिजिटल मौद्रिक संपत्ति) को चरणबद्ध योजना के तहत लाने की रणनीति पर काम कर रहा है. सीबीडीसी को क्रिप्टोकरेंसी जैसी अन्य प्राइवेट डिजिटल संपत्तियों के बदले में पेश किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वास्तव में यह वर्चुअल क्वाइन का वैध स्वरूप होगा जो वास्तविक दुनिया के बराबर खड़ा हो सकेगा.  उन्होंने कहा कि हालांकि हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि सीडीबीसी क्या है और यह कैसे काम करता है और आरबीआई का इसपर क्या रुख है. 


क्या है सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि सीबीडीसी केंद्रीय बैंक से जारी अनिवार्य रूप से वैध टेंडर है. इसका काम साख आधारित करेंसी यानी वर्तमान रुपये की तरह ही होगा. अंतर सिर्फ इतना होगा कि यह भौतिक स्वरूप में नहीं होगा बल्कि यह सिर्फ डिजिटल स्वरूप में होगा. यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि यह वर्तमान में चल रहे क्रिप्टोकरेंसी बिटक्वाइन या इथरनम जैसी करेंसी से बहुत भिन्न होगी. यह भारत सरकार के केंद्रीय बैंक द्वारा वैध तरीके से जारी किए जाएंगे जबकि क्रिप्टोकरेंसी निजी क्षेत्रों की डिजिटल करेंसी है. क्रिप्टोकरेंसी वैध नहीं है. शंकर ने यह भी बताया कि बिटक्वाइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी आरबीआई की भाषा में कोई करेंसी नहीं है. यह किसी तरह से अनिवार्य साख आधारित करेंसी नहीं है. 
 
कई देशों के केंद्रीय बैंक सोच विचार कर रहे हैं 
डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह आरबीआई (RBI) भी काफी समय से सीबीडीसी की विभिन्न पहलुओं पर गौर कर रहा है. वर्तमान में दुनिया के 86 प्रतिशत बैंक सीडीबीसी पर रिसर्च कर रहा है. इनमें से 60 प्रतिशत बैंकों ने इसपर प्रयोग करना शुरू कर दिया है और 14 प्रतिशत बैंकों ने सीबीडीसी को पायलट परियोजना के तहत शुरू किया है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक सोच- विचार के स्तर से काफी आगे बढ़ चुका है. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि उपभोक्ताओं को उन डिजिटल करेंसी में अस्थिरता के भयावह स्तर से बचाने की जरूरत है, जिन्हें कोई सरकारी गारंटी प्राप्त नहीं है. कई देशों के केंद्रीय बैंक सीबीडीसी की संभावना तलाशने में लगे हैं  


कानूनी बदलाव की जरूरत
शंकर ने कहा, 'निकट भविष्य में इसे थोक और खुदरा क्षेत्रों में पायलट आधार पर लागू किया जा सकता है.' हालांकि इसके लिए कानूनी बदलाव की जरूरत होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत मौजूदा प्रावधान मुद्रा को भौतिक रूप से ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं. इसके परिणामस्वरूप सिक्का अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में भी संशोधन की आवश्यकता होगी. 


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