रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के एक पैनल ने प्राइवेट बैंकों में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी को बढ़ाने का सुझाव दिया है. इसके साथ ही उन पर निगरानी के लिए भी मजबूत व्यवस्था बनाए जाने का प्रस्ताव दिया गया है. आरबीआई के एक इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने ये सुझाव दिए हैं.
इंटरनल वर्किंग ग्रुप की ओर से दिए गए सुझावों के मुताबिक प्राइवेट बैंकों में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी की सीमा 15 साल में मौजूदा 15% से बढ़ाकर 26% करनी चाहिए. इसके साथ ही सुझाव दिया गया है कि बड़ी कंपनियों या इंडस्ट्रियल हाउसेस को बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन के बाद बैंकों में प्रमोटर के तौर पर शामिल होने की इजाजत दी जा सकती है. इसके अलावा उन पर नजर रखने की व्यवस्था को भी मजबूत किया जाना चाहिए.
बता दें कि इस साल 12 जून को आरबीआई ने इस पैनल का गठन किया था. इस इंटरनल वर्किंग ग्रुप को प्राइवेट क्षेत्र के बैंकों के कॉरपोरेट स्ट्रक्चर और ऑनरशिप गाइडलाइंस की समीक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वहीं इस ग्रुप ने सुझाव दिया है कि 50 हजार करोड़ रुपये और इससे अधिक एसेट साइज वाली बड़ी एनबीएफसी को बैंक में बदलने पर विचार किया जाए. हालांकि इसमें एक शर्त भी रखी गई है कि उन्होंने 10 साल पूरे कर लिए हों.
लाइसेंस के लिए पूंजी
इसके अलावा बैंकों को लाइसेंस देने के लिए न्यूनतम शुरुआती पूंजी को लेकर भी ग्रुप ने सुझाव दिए हैं. ग्रुप ने सुझाव दिया है कि बैंकों को लाइसेंस देने के लिए न्यूनतम शुरुआती पूंजी को यूनिवर्सल बैंकों के लिए 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर एक हजार करोड़ रुपये करने और स्मॉल फाइनेंस बैंकों के लिए 200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये किया जाए. इसके साथ ही प्राइवेट बैंकों के कामकाज में सुधार के लिए भी कई सिफारिशें की गई हैं.