नई दिल्लीः रिज़र्व बैंक ने 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज़ पर ब्याज की माफी की मांग को गलत बताया है. एक पीआईएल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आरबीआई ने कहा है कि अगर ऐसा किया गया तो बैंकों को 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.


सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. उन्हें 6 महीने तक बैंक से लिए गए कर्ज की किश्त न देने की राहत दी गई है. लेकिन बैंक इस अवधि के लिए ब्याज वसूल रहे हैं. यह गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर रिजर्व बैंक से जवाब मांगा था.


अब रिजर्व बैंक ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि लोगों को 6 महीने का EMI अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है. लेकिन अगर इस अवधि के लिए ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों की वित्तीय सेहत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा. सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को को ही लगभग दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा. आरबीआई ने बताया है कि निजी क्षेत्र के बैंक और गैर बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को इससे होने वाले नुकसान का अभी आकलन नहीं किया गया है.


कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आरबीआई ने बताया है कि बैंकों की खस्ता स्थिति का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. बैंकों के लिए अपने पास पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों को ब्याज देना भी मुश्किल हो जाएगा. इसलिए, बैंकों को अपने कर्ज़दारों से इस अवधि का ब्याज न लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. आरबीाई ने कोर्ट से दरख्वास्त की है कि वह 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज माफ करने का आदेश न दे.


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