देसराज मुंबई में खार के पास ऑटो चलाते हैं.  उन्होंने बताया कि 6 साल पहले उनका बड़ा बेटा घर से गायब हो गया था.  वह रोज की तरह काम के लिए घर से निकला और कभी वापस नहीं आया. उनके बेटे का शव एक हफ्ते बाद मिला था.  40 वर्ष की आयु में उसकी मौत हो गई, लेकिन उन्हें शोक करने का समय भी नहीं मिला. देसराज ने कहा कि उनके जीवन का एक हिस्सा उसके साथ ही चला गया, लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ के कारण उनके पास शोक करने का समय भी नहीं था. अगले दिन वह सड़क पर वापस आकर अपना ऑटो चला रहे थे. दो साल बाद उनके दूसरे बेटे ने भी आत्महत्या कर ली.


देसराज ने कहा कि उनके पास बहु और चार बच्चों की जिम्मेदारी है, जिसकी वजह से वह काम कर रहे हैं. उनकी पोती जब 9 वर्ष की थी तो उसने स्कूल छोड़ने की बात कही थी. तब उन्होंने पोती को आश्वासन दिया था कि वह जितना चाहे, उतना पढ़ाई कर सकती है. परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्होंने लंबे समय तक काम करना शुरू कर दिया. वह सुबह 6 बजे घर छोड़ते हैं और आधी रात तक ऑटो चलाते हैं. इस करह वे महीने में करीब दस हजार रुपए तक कमाते हैं. इसमें से 6 हजार रुपये वह अपने पोते-पोतियों के पढ़ाई पर खर्च करते हैं और 4 हजार रुपया 7 लोगों के परिवार के खाने-पीने पर खर्च करते हैं.


वे कहते हैं, जब उनकी पोती ने 12वीं कक्षा के बोर्ड परीक्षा में 80 प्रतिशत अंक हासिल किए तो उन्होंने इसका जश्न मनाते हुए पूरे दिन ग्राहकों को मुफ्त यात्रा करवाई. जब उनकी पोती ने कहा कि वह बीएड कोर्स के लिए दिल्ली जाना चाहती है, तो देसराज को लगा कि वह इसे वहन नहीं कर पाएंगे. लेकिन, उन्हें किसी भी कीमत पर पोती के सपने पूरे करने थे. इसलिए, उन्होंने अपना घर बेच दिया और उसकी फीस चुका दी. देसराज ने अपनी पत्नी, पुत्रवधू और अन्य पोते को गांव में एक रिश्तेदार के घर भेज दिया और खुद मुंबई में अपना ऑटो चलाते हैं. वे कहते हैं कि अब एक साल हो गया है और ईमानदारी से कहूं तो जीवन बुरा नहीं है. वह अपने ऑटो में ही सोते हैं और दिन में यात्रियों को बिठाते हैं.


इंटरव्यू खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि जब उनकी पोती कहती है कि वह क्लास में फर्स्ट आई, तो उनका सारा दर्द गायब हो जाता है. देसराज कहते हैं कि वह उसके शिक्षक बनने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते, ताकि वह उसे गले लगाकर कह सकें कि उसने कितना गौरवान्वित किया है. उन्होंने बताया कि वह उनके परिवार की पहली ग्रेजुएट होगी. उन्होंने कहा कि जिस दिन उनकी पोती टीचर बनेंगी, वह सभी यात्रियों को फ्री राइड देंगे.


देसराज की कहानी ने सोशल मीडिया यूजर्स के दिलों को छू लिया है. कई लोगों ने उनकी मदद करने की पेशकश की है. एक व्यक्ति ने लिखा, "यह पढ़कर मैं काफी इमोशनल हो गया हूं. इस उम्र में अपने परिवार के प्रति इस तरह की जिम्मेदारी और इस तरह की भारी उदारता." दूसरे ने लिखा, "मैं उनको आर्थिक रूप से मदद करने के लिए दान करना पसंद करूंगा." गुंजन रत्ती नाम के एक फेसबुक यूजर ने देसराज के लिए एक फंडराइजर शुरू किया, जिसने 276 डोनर्स से 5.3 लाख से अधिक रुपए जुटाए.


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