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बेटी का है क्रिकेटर बनने का सपना, चौंकिए मत; पंजाब के इस गांव की कहानी पढ़िए

मैदान में प्रैक्टिस करने आने वाली लड़कियों की टीशर्ट पर उनका नाम और खिलाड़ी नंबर छपा हुआ है. खेल के दौरान ये लड़कियां बालों में चोटियां बनाई नजर आती हैं.

सपने देखना जितना आसान है उतना ही मुश्किल है इसे पूरा करना. इसे हकीकत में बदलने के लिए लोगों को धूप में जलना पड़ता है. रेत में झुलसना पड़ता हैं और अपनी कमजोरियों को भी अपना हथियार बनाना पड़ता हैं.  

इसी सपने को पूरा करने की ललक दिखी पंजाब के धारो की गांव की कुछ लड़कियों में, जिनकी उम्र तो छोटी है लेकिन लक्ष्य आसमान जितने ऊंचे. ये लड़कियां पंजाब के हरे भरे खेतों के बीच हर शाम साइकल चलाकर एक अस्थायी क्रिकेट मैदान में पहुंचती हैं. वहां हर रोज घंटो प्रैक्टिस करती हैं ताकि आने वाले समय में वह टीम इंडिया की तरफ से खेल सके और दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर सके.

मैदान में प्रैक्टिस करने आने वाली लड़कियों की टीशर्ट पर इनका नाम और खिलाड़ी नंबर छपा हुआ है. खेल के दौरान ये लड़कियां बालों में चोटियां बनाई नजर आती हैं. इस टीम में सबसे छोटी प्लेयर 9 साल की है और सबसे बड़ी प्लेयर 14 साल की. 

पूरा परिवार दे रहा है लड़कियों के सपनों को बढ़ावा

इन लड़कियों को क्रिकेट सिखाने वाले कोच का नाम है गुलाब सिंह शेरगिल. गुलाब दिन में पुलिस ऑफिसर का काम करते हैं, लेकिन शाम में वह इन नन्हें क्रिकेटरों के कोच भी हैं, मेंटॉर और मैनेजर भी हैं. शेरगिल हर रोज शाम में इन नन्हें क्रिकेटरों को प्रैक्टिस करवाते हैं. इस टीम में उनकी अपनी बेटी भी शामिल है. ये सभी लड़कियां शेरगिल को 'वीरा' कहकर बुलाती हैं, पंजाब में 'वीरा' बड़े भाई को कहा जाता है.  

शेरगिल की मां हरजीत कौर प्रैक्टिस के दौरान उन लड़कियों के पास ही रहती हैं. मैदान में उन्हें अगर किसी तरह की चोट लग गई तो शेरगिल की मां उन लड़कियों की मदद करती हैं ताकि उन्हें जल्द ही चोट से राहत मिल पाए और वह पिच पर वापस लौट पाएं.  

वहीं शेरगिल की पत्नी, कमलदीप कौर टीम व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े लगभग 20 खिलाड़ियों के 20 परिवारों के साथ समन्वय स्थापित करने में मदद करती हैं. शेरगिल की बहन, जसवीर कौर एक तरह से टीम की फिजिकल थेरेपिस्ट के रूप में काम करती हैं.  

क्यों कर रहे हैं शेरगिल इन लड़कियों की मदद?

न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए शेरगिल कहते हैं, 'पंजाब के गांव में एक आम लड़की की जिंदगी क्या है? वह सुबह 5 बजे उठती हैं, रोटी सेंकती हैं और परिवार वालों के लिए खाना-चाय बनाती हैं- हमारे यहां घर संभालने का सारा काम लड़कियों के जिम्मे थोप दिया जाता है. 

ऐसे में अगर इन लड़कियों का कोई लक्ष्य न हो या फिर अगर प्रैक्टिस कर रही ये लड़कियां खिलाड़ी नहीं बन पाती है तो जिंदगी भर उन्हें वही काम करना होगा. अभी ये अपने माता-पिता के लिए काम कर रही हैं, इसके बाद वह पति के लिए करेंगी और फिर अपने बच्चों के लिए. लेकिन अगर वे एक पेशेवर खिलाड़ी बनती हैं तो एक फोन कॉल पर उनके पास चाय आएगा.  

कुछ लोगों को शेरगिल का इन लड़कियों को सपना दिखाना खोखले वादे जैसा जरूर लग सकता है लेकिन हाल ही में महिलाओं के लिए एक नई प्रोफेशनल लीग का आयोजन होना, इस बात का गवाह है कि आने वाले समय में महिला क्रिकेटरों की लोकप्रियता और अच्छे प्लेयर की मांग भी बढ़ जाएगी. 

मार्च में हुए आईपीएल के महिला संस्करण के लिए जब टीमों को नीलामी हुई को 5 टीमों के लिए कुल 17 कंपनियों ने बोली लगाई, जिनमें 7 आईपीएल फ्रेंचाइजी भी थी. बीसीसीआई ने महिला प्रीमियर लीग के लिए 10 वेन्यू निर्धारित किए थे. इनमें सबसे बड़ी बोली अडानी ग्रुप की कंपनी ने अहमदाबाद के लिए लगाई थी. अहमदाबाद के लिए महिला प्रीमियर लीग की फ्रेंचाइजी को 1289 करोड़ में खरीदा गया.

पहली बार शुरू हुआ विमेंस प्रीमियर लीग

इस साल के मार्च महीने में बीसीसीआई ने पुरुषों के आईपीएल से पहले पहली बार वुमंस प्रीमियर लीग का आयोजन किया. मुंबई इंडियंस की खिताबी जीत के बाद विमेंस प्रीमियर लीग 2023 टूर्नामेंट मार्च के आखिरी महीने में समाप्त हो गया. यह महिला आईपीएल का पहला सीजन था जिसमें 5 टीमों ने भाग लिया था. इन सभी टीमों के बीच ओवर ऑल 20 लीग मैच खेले गए. इस दौरान कई रोमांचक मुकाबले देखने को मिले. विमेंस प्रीमियर लीग 2023 का पहला सीजन कई मायनों में खास रहा. 

दुनियाभर की खिलाड़ी शामिल हुईं

इस लीग की सबसे बड़ी खास बात ये रही कि इसमें दुनियाभर से अलग अलग देशों के खिलाड़ी शामिल हुए. ऐसा बहुत कम देखने में आया है कि पहले लीग में ही पूरी दुनिया की खिलाड़ी उसमें खेलने के लिए बेताब हों. लेकिन विमेंस प्रीमियर लीग का आकर्षण कुछ ऐसा ही था जिसके चलते स्टार्स खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. 

लीग की लोकप्रियता का आलम यह था कि मैच के दौरान स्टैंड्स फुल नजर आए. विमेंस प्रीमियर लीग के मैचों में अंतरराष्ट्रीय टीमों के बीच खेले जाने वाले मुकाबलों से ज्यादा भीड़ दिखी. विमेंस प्रीमियर लीग में उन सभी चीजों को शामिल किया गया जिन्हें पुरुष आईपीएल में किया जाता है. 

कैसे हुई थी महिला क्रिकेट की शुरुआत

महिला क्रिकेट टीम या क्रिकेटर अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. लेकिन महिला क्रिकेट का इस मुकाम तक पहुंचना इतना आसान नहीं रहा है. इसके लिए क्रिकेर्स को काफी संघर्ष करना पड़ा है. हालांकि सालों के संघर्ष के बाद भी आज महिला क्रिकेट को पुरुषों की तुलना में कम तव्ज्जो ही मिलती है. 

कब खेला गया पहला मैच

क्रिकेट के इतिहास में महिलाओं का पहला मैच 26 जुलाई 1745 को खेला गया था. हालांकि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार साल 1887 में यॉर्कशायर में पहला क्रिकेट क्लब बना था. जिसके 3 साल बाद पहली महिला क्रिकेटरों की टीम बनी थी. 

महिलाओं की पहली क्रिकेट टीम का नाम इंग्लैं ‘लेडी क्रिकेटर’ रखा गया था. और इसके साथ ही दुनिया में शुरुआत हुई महिला क्रिकेट की. धीरे धीरे अन्य देशों में भी क्रिकेट का ये गेम महिलाओं के बीच मशहूर होने लगा और वहां भी टीम बनाई गई. 

कब खेला गया महिलाओं का पहला टेस्ट

पहला  महिला टेस्ट मैच साल 1934 में खेला गया था. यह मैच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमों के बीच हुआ था. इस मैच में ऑस्ट्रेलिया को  इंग्लैंड की टीम से मात खानी पड़ी थी. यहीं से महिलाओं के टेस्ट मैच की शुरुआत हुई. 

वहीं साल 1973 में टेस्ट के बाद महिला क्रिकेट का पहला वनडे मैच भी हुआ. इसके बाद से महिला क्रिकेट लगातार खेला जाने लगा और महिलाओं ने अपने कौशल और दमदार प्रदर्शन से अपनी छाप पूरी दुनिया पर छोड़ी. आज के समय में महिला क्रिकेट काफी ऊंचे मुकाम पर है. 

महिलाओं के मुकाबले को भी अब पुरुष के मैच इतना ही प्यार मिलता है. वहीं महिला प्लेयर्स के फैंस भी लाखों में पहुंच गए हैं. अगर भारत की बात करें तो मिताली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर जैसे एक से बढ़कर एक स्टार महिला खिलाड़ियों ने देश का प्रतिनिधित्व किया है और कर रही हैं.

भारत में अब भी करना पड़ रहा है संघर्ष 

भले ही भारत की युवा महिला क्रिकेटरों ने आईसीसी अंडर-19 टी-20 वर्ल्ड कप जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े टूर्नामेंट में देश को पहली कामयाबी दिला दी हो. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इन महिला क्रिकेटरों को  हिस्से की एक-एक इंच जमीन को हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था. 

भारत में महिला क्रिकेट 1970 के दशक में शुरू हुआ था. लेकिन 1970 और 1980 के दशक के अंत तक महिला टीमों को ट्रेन में सेकंड क्लास में सफर करना पड़ता था. महिला क्रिकेटरों के संघर्षों की कई कहानियां मशहूर हैं. 

क्रिकेट खेलने के लिए कही जाने वाली क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को अपने किट बैग के साथ ट्रेन में सफ़र करना पड़ता था और कई बार सभी टिकट आरक्षित भी नहीं होते थे. इन खिलाड़ियों को कितनी सुविधा दी जाती थी इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि दो टीमों को एक बड़े स्कूल के प्रेयर हॉल में फर्श पर गद्दे बिछाकर ठहराया जाता था और रस्सी खींच कर दीवार बनाई जाती थी.

बीसीसीआई के पास आया देखरेख का जिम्मा 

जब बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट की देखरेख का जिम्मा संभाला, तब भी इनकी स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया. उस वक्त महिला टीम के खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के स्पांसर के बनाए गए कपड़ो में जो कपड़े बच जाते थे उसे पहनकर खेलना पड़ता था.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय क्रिकेट बोर्ड के एक चुने हुए अध्यक्ष ने भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुलजी को कहा था, "अगर मेरा बस चलता तो मैं महिला क्रिकेट होने ही नहीं देता."

हालांकि समय के साथ भारत की महिला क्रिकेटरों ने अपने दमदार प्रदर्शन से खुद को साबित करके दिखा दिया है. मौजूदा समय में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज ने भी महिला क्रिकेटर और क्रिकेट को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है.

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