ABP न्यूज पहल: पीएम मोदी के चीन दौरे से जुड़े पाठकों के सवाल के जवाब
हमारे पाठक अंशुल शाक्य, धर्मेंद्र सिंह, अब्दुर्हमान, गौरव पटनी, तपेश शर्मा, सर्वेश मनि मिश्रा, विकास कुमार, विजय कुमार, दिलीप कुमार, कोमल कश्यप, गंगा प्रसाद यादव, महाबीर द्विवेदी, सतीश चंद्र पाटिल, गौरव सोनी, हसन जैदी, उदय शुक्ला, लोकेश शर्मा, अर्चना, आसिफ मुस्तफा, शिव कुमार शर्मा, असरार अहमद सिद्दीकी के पूछे गए सवालों के आधार पर ये लेख लिखा गया है.
सवाल- पीएम के चीन दौरे पर किन मुद्दों पर समझौते हुए? इससे देश को क्या लाभ होगा? जवाब- पीएम नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दो दिनों की अनौपचारिक बातचीत के लिए चीन के वुहान गए थे. दौरे पर भारत और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय महत्व के द्विपक्षीय संबंधों पर कोई समझौता नहीं हुआ है, बस चर्चा हुई है. व्यापार, पर्यटन, संस्कृति, ग्लोबल वॉर्मिंग, द्विपक्षीय संबंधों, रणनीतिक और दीर्घकालिक साझेदारी को लेकर दोनों देशों के बीच चर्चा हुई.
सवाल- डोकलाम मुद्दे पर क्या समझौता हुआ? सरहद विवाद पर क्या बातचीत हुई? जवाब- पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग सीमा विवाद को लेकर डोकलाम जैसे सैन्य गतिरोध की स्थिति पैदा होने से रोकने के लिए अपनी-अपनी सेनाओं को रणनीतिक दिशानिर्देश जारी करेंगे.
बैठक के बाद विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया कि दोनों नेताओं ने सीमा तनाव के संदर्भ में दोनों नेताओं का मत था कि सरहद पर शांति बनाए रखना ज़रूरी है. इस कड़ी में दोनों नेता अपनी अपनी सेनाओं को रणनीतिक संदेश देंगे कि वो आपसी संवाद बेहतर रखें तथा विश्वास बढ़ोतरी के उपायों पर ध्यान दें. सीमा विवाद सुलझाने के लिए बने विशेष प्रतिनिधि स्तर वार्ता तंत्र में 2005 में तय राजनीतिक मानकों के आधार पर एक स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए भी आगे बढ़ेंगे.
भारत और चीन के बीच काफी समय से सीमा विवाद एक गंभीर मुद्दा रहा है, जिसे लेकर 1962 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और आपस में अविश्वास बना रहा है. पिछले साल 2017 में भारत-चीन सीमा क्षेत्र में सिक्किम के पास डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 73 दिनों तक गतिरोध बना रहा है. अगस्त में बातचीत के बाद गतिरोध दूर हुआ था.
सवाल- भारत और चीन के बीच पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को लेकर क्या बात हुई? जवाब- विदेश सचिव विजय गोखले ने इस बात की तस्दीक दी कि चर्चा की मेज पर आतंकवाद के खिलाफ साझेदारी का मुद्दा भी उठा. उन्होंने बताया कि दोनों मुल्कों ने आतंकवाद को अस्वीकार्य करार देते हुए इसके खिलाफ साझेदारी बढ़ाने पर सहमति जताई.
हालांकि यह सवाल बरकरार है कि मसूद अजहर जैसे आतंकवादी को यूएन प्रतिबंधित सूची में डाले जाने की मुहिम में अब तक अड़ंगा लगता रहा चीन क्या अगली बार भारत के प्रयासों का साथ देगा ? इस बारे में जब ABP न्यूज ने विदेश सचिव से पूछा तो उन्होंने कोई सीधा जवाब तो नहीं दिया लेकिन इतना ज़रूर कहा कि नेताओं के बीच बनी सहमति को अब दोनों पक्ष के अधिकारी मौजूदा संवाद तंत्र के जरिए आगे बढ़ाएंगे. भारत और चीन के बीच 20 संवाद तंत्र हैं जिनके जरिये विभिन्न मुद्दों पर बातचीत होती है.
सवाल- क्या पाकिस्तान पर सीधे-सीधे बात हुई? जवाब- मोदी और शी की मुलाकात ने पाकिस्तान को झटका दिया है. सूत्रों के मुताबिक बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी है कि भारत और चीन मिलकर अफ़ग़ानिस्तान में एक साझा आर्थिक परियोजना को आगे बढ़ाएंगे. उनकी यह पहल पाकिस्तान को परेशान कर सकती है. संकट से घिरे अफगानिस्तान में भारत और चीन की तरफ से शुरू की जाने वाली यह अपनी तरह की पहली परियोजना होगी. अब चीन अगर भारत के साथ संयुक्त निवेश परियोजना पर कम करता है तो यह अपने आप में एक बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव है. जाहिर है इससे चीन के ‘सदाबहार दोस्त’ पकिस्तान की परेशानी बढ़ेगी.
सवाल- ‘वन बेल्ट वन रोड’ पर दोनों देशों का क्या रुख रहा? जवाब- भारत चीन की महात्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा नहीं है. लेकिन इसके बाद भी दोनों देश व्यापारिक क्षेत्र में विस्तार की बड़ी संभावना देखते हैं. एक अहम बयान में चीन ने संकेत दिया कि ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) के मुद्दे को लेकर वह नयी दिल्ली पर अधिक दबाव नहीं डालेगा.
चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा है. यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय इलाके गिलगित-बाल्टिस्तान से गुजरेगा. भारत पीओके समेत पूरे जम्मू-कश्मीर पर अपना हक मानता है. ऐसे में भारत ने साफ कर दिया था कि वो ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनेगा, जिससे उसकी संप्रभुता से कोई समझौता हो.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में सत्ता में आने के बाद कई अरब डॉलर की इस योजना की शुरुआत की थी. इस प्रोजेक्ट से चीन दुनिया के तीन हिस्सों एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सीधे तौर पर जोड़ेगा. इसका मकसद रेलवे, पोर्ट, हाईवे और पाइपलाइंस के एक नेटवर्क के जरिए मध्य एशिया और यूरोप के व्यापार को बढ़ाना है.