चुनाव से पहले ममता के इलेक्शन एजेंट को राहत, SC ने रोकी गिरफ्तारी
5 मार्च को कलकत्ता हाई कोर्ट ने वकील और बीजेपी नेता नीलांजन अधिकारी की तरफ से दाखिल जनहित याचिका को सुनते हुए निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें सूपियान के खिलाफ चल रहा केस खत्म किया गया था.
नई दिल्ली: ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट एस के सूपियान को सुप्रीम कोर्ट से आज बड़ी राहत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के नंदीग्राम हिंसा मामले में सूपियान की गिरफ्तारी पर आज 2 हफ्ते की अंतरिम रोक लगा दी. तृणमूल नेता की याचिका में कहा गया था कि 14 साल पुराना केस अचानक दोबारा खोल दिए जाने से उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. वह इलेक्शन एजेंट का अपना काम भी नहीं कर पा रहे.
5 मार्च को कलकत्ता हाई कोर्ट ने वकील और बीजेपी नेता नीलांजन अधिकारी की तरफ से दाखिल जनहित याचिका को सुनते हुए निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें सूपियान के खिलाफ चल रहा केस खत्म किया गया था. अधिकारी ने हाई कोर्ट को बताया था कि हत्या, अपहरण जैसे संगीन आरोप के केस सिर्फ इस आधार पर राज्य सरकार ने वापस ले लिए थे कि इससे नंदीग्राम में शांति रहेगी. 13 साल तक सूपियान निचली अदालत में पेश नहीं हुए, राज्य सरकार ने फिर भी गुपचुप तरीके से केस वापस लेने की अर्ज़ी कोर्ट में दे दी.
कलकत्ता हाई कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए इसे फिर से खोलने का आदेश दे दिया. आज सूपियान के वकीलों विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से मामले पर तुरंत सुनवाई की दरख्वास्त की. उन्होंने कहा कि 1 अप्रैल को नंदीग्राम में चुनाव है. उससे पहले राजनीतिक कारणों से यह मामला खोला गया है. सीएम ममता बनर्जी के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है. चीफ जस्टिस के निर्देश पर जस्टिस इंदिरा बनर्जी और कृष्ण मुरारी की बेंच ने आज ही मामले को सुना.
2 जजों की बेंच के सामने विकास सिंह के अलावा पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और और सिद्धार्थ लूथरा भी पेश हुए. तीनों ने हाई कोर्ट के आदेश पर तत्काल रोक की मांग की. उन्होंने कहा कि 2020 की फरवरी और जून में आए निचली अदालत के फैसलों को जान बूझकर चुनाव से पहले उठाया गया. हाई कोर्ट ने सूपियान को सुने बिना केस दोबारा खोलने का आदेश दे दिया.
हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल करने वाले नीलांजन अधिकारी की तरफ से पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि सभी वकील कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं. हत्या जैसे गंभीर अपराध के मुकदमे को भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का मामला बताया जा रहा है. कोर्ट को भारी जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज करनी चाहिए.
करीब 1 घंटा चली सुनवाई के बाद बेंच ने कहा कि मामला अभी भी कलकत्ता हाई कोर्ट में लंबित है. बेहतर होगा कि अपीलकर्ता वहां अपनी बात रखें. जजों ने कहा, “चूंकि इस मामले में अपीलकर्ता को सुने बिना हाई कोर्ट ने आदेश दिया. इसलिए, हम आदेश के अमल पर अंतरिम रोक लगा रहे हैं. वह हाई कोर्ट में अपनी बात रख सकें, इसका मौका देने के लिए हम उनकी गिरफ्तारी पर भी 2 हफ्ते की रोक लगा रहे हैं."