(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, 'गरीब की मदद करने का मकसद उसका धर्म परिवर्तन करवाना नहीं होना चाहिए'
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने अवैध धर्मांतरण को लेकर कहा कि कोई भी राज्य खुद अपनी बात रखना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है. कोर्ट सारे राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब नहीं मांगेगा.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने अवैध धर्मांतरण पर एक बार फिर सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने रुपये, भोजन या दवाई का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने वालों को गलत बताते हुए कहा, जो गरीब और ज़रूरतमंद की मदद करना चाहता है, ज़रूर करे. लेकिन इसका मकसद धर्म परिवर्तन करवाना नहीं हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम आर शाह की अध्यक्षता वाली 2 जजों की बेंच दबाव, धोखे या लालच से धर्म परिवर्तन के खिलाफ कड़ा कानून बनाने की मांग पर सुनवाई कर रही है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस तरह से धर्म परिवर्तन को देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक बताया था. केंद्र ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा था कि 9 राज्यों ने इसके खिलाफ कानून बनाया है. केंद्र भी ज़रूरी कदम उठाएगा.
धर्म परिवर्तन के मामलों के लिए कमेटी हो
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "धर्म परिवर्तन के मामलों को देखने के लिए एक कमेटी होनी चाहिए, जो तय करे कि वाकई हृदय परिवर्तन हुआ है या लालच और दबाव में धर्म बदलने की कोशिश की है रही है." कोर्ट ने केंद्र सरकार से बाकी राज्यों के बारे में भी जानकारी जुटा कर हलफनामा देने के लिए कहा था. आज सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसके लिए कुछ और समय की मांग की. इस पर कोर्ट ने सोमवार 12 दिसंबर को सुनवाई की बात कही.
राज्य अपनी बात रख सकता है
कोर्ट ने साफ किया कि वह सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब नहीं मांगेगा, क्योंकि इसके चलते बेवजह मामला लंबा खिंचेगा. अगर कोई राज्य खुद अपनी बात रखना चाहता है, तो वह ऐसा कर सकता है.
सुनवाई के दौरान ईसाई संस्थाओं के लिए पेश वरिष्ठ वकीलों संजय हेगड़े और राजू रामचंद्रन ने कहा, "याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर पहले सुनवाई से कोर्ट मना कर चुका है. अब सुनवाई नहीं होनी चाहिए."
ईसाई संस्था के वकील की दलील पर चुटकी लेते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "एक पादरी को इस सुनवाई से क्या दिक्कत हो सकती है. अगर वह लालच या धोखे से धर्म परिवर्तन नहीं करवाते, तो उन्हें परेशान नहीं होना चाहिए." कोर्ट ने कहा कि अब इस दलील पर विचार नहीं होगा कि याचिका सुनने लायक नहीं है. लोग केस पर अपना जवाब दाखिल करें.
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