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EXCLUSIVE: संसद में सांसदों के खाने से सब्सिडी हटने और फिर भी बने रहने की पूरी कहानी

संसद में मिलने वाले खाने पर से सब्सिडी को हटा लिया गया है. सांसदों को मिलने वाली करोड़ों की सब्सिडी के पैसों की बचत होगी. पर पूरी तस्वीर कुछ और है.

नई दिल्ली: गुरुवार को संसद की बिज़नेस एडवाइज़री कमेटी ने संसद में मिलने वाले खाने पर से सब्सिडी को हटा लिया. माना जा रहा है कि इससे संसद में सांसदों को मिलने वाली करोड़ों की सब्सिडी के पैसों की बचत होगी. पर पूरी तस्वीर कुछ और है, जिसे इस रिपोर्ट में हम आपको समझाएंगे.

सब्सिडी हटाने से कितना पैसा बचेगा

हटाई गई सब्सिडी इस साल के अनुमानित 17 करोड़ के सब्सिडी बिल में से सिर्फ़ 70-80 लाख रुपयों की बचत करेगी.

सब्सिडी का गणित

साल 2018-19 की अनुमानित सब्सिडी 17 करोड़ रूपए है. लेकिन सब्सिडी के खेल को बीते साल के तय आंकड़ों से समझना आसान होगा. साल 2017-18 की सब्सिडी 15.60 करोड़ रुपए है. इसमें क़रीब 60 लाख रुपए खाने पर सब्सिडी के और शेष संसद के भीतर स्थापित केटरिंग यूनिट्स का ‘इस्टैब्लिश्मेंट चार्ज’ है. जिसमें कर्मचारियों की सैलरी और भाड़ा आदि शामिल है. लेकिन रेलवे अपनी ओर से क्लेम किए गए टोटल बिल को सब्सिडी के तौर पर ही क्लेम करता है. यानी सस्ता खाना बेचने से हुए घाटे की भरपाई मांगता है.

सब्सिडी हटाना महज़ आई वॉश है

संसद सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि गुरुवार को हटाई गई सब्सिडी महज़ ‘आई वॉश’ है. क्योंकि जब आप खाना खाने किसी होटल में जाते हैं तो आपके खाने के बिल में नहीं लिखा होता कि आपसे इस्टैब्लिश्मेंट चार्ज या कर्मचारियों की सैलरी भी वसूली जा रही है. जबकि हक़ीक़त में खाने के बिल में ही सब कॉस्ट शामिल होती है. फिर संसद में खाने पर करोड़ों की सब्सिडी के एक बहुत बड़े भाग को इस्टैब्लिश्मेंट चार्ज कह के बरगलाया क्यों जा रहा है. हक़ीक़त तो ये है कि 95% सब्सिडी अब भी लागू है लेकिन तकनीकी रूप से अब आप उसे सब्सिडी कह भी नहीं पाएँगे. अब सवाल ये है कि जनता के इन पैसों को ख़र्च करके ख़ुद जनता को ही भुलावे में क्यों रखा जा रहा है ? नॉर्दर्न रेलवे के सब्सिडी बिल के 95% हिस्से को सब्सिडी न मानने का तर्क समझ से परे है.

अंतिम फ़ैसले की औचारिकता है बाकि

सब्सिडी हटाने के बिज़नेस एडवाइज़री कमेटी के फ़ैसले के बाद अब इस पर अंतिम फ़ैसला लोकसभा सचिवालय और संसद की फ़ूड कमेटी को लेना है. लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि मैंने अभी सिर्फ़ सांसदों के लिए सब्सिडी ख़त्म करने के लिए कहा है. आग्रह किया है कि संसद के ऑफ़िस स्टाफ़, सिक्योरिटी और विज़िटर्ज़ की सब्सिडी न ख़त्म की जाय. वहीं बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि सब्सिडी हट जाने से अब सांसदों को सब्सिडी खाने के इल्ज़ाम से मुक्ति मिलेगी.

सब्सिडी का मुख्य आकर्षण

संसद में वेज थाली 35 रूपए की और नॉन वेज थाली 71 रूपए की है. संसद में सबसे महंगे खाने का नाम है ‘लंच थ्री कोर्स’ जिसमें सूप, मुख्य भोजन और स्वीट एंड डेज़र्ट शामिल है. लंच थ्री कोर्स का दाम है 106 रूपए. जो कि बाहर किसी रेस्टोरेंट में 700 से 1500 के बीच मिलेगा.

दोनों सदनों का ख़र्च अलग-अलग होता है

इस साल की 17 करोड़ की सब्सिडी दोनों सदनों को मिलाकर है. दोनों सदनों के अलग-अलग सचिवालय हैं और दोनों सदनों का अलग-अलग वित्त विभाग है. लिहाज़ा ख़र्च का हिसाब भी अलग-अलग ही होता है.

साल्वे कमेटी की व्यवस्था

1974 में बनी ‘कमेटी ऑन केटरिंग इस्टैब्लिश्मेंट इन पार्लियमेंट हाऊस’ (साल्वे कमेटी) के अनुसार चली आ रही परम्परा ही आज तक जारी है. इस कमेटी की व्यवस्था के तहत पूरी सब्सिडी के दो भाग का भुगतान लोकसभा सचिवालय करता है और एक भाग का राज्यसभा सचिवालय करता है. 2:1 का ये रेश्यो इसलिए कि लोकसभा में ज़्यादा सांसद हैं और ज़्यादा गतिविधियाँ/ पार्टियाँ होती हैं. यानी 2017-18 में कुल सब्सिडी के क़रीब दस करोड़ रूपए लोकसभा ने और पाँच करोड़ राज्यसभा ने दिए.

‘चीफ़ एडवाइज़र कॉस्ट’ करता है ऑडिट

संसद के अन्य ख़र्चों की तरह इस सब्सिडी बिल का ऑडिट भी वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ एक्सपेंडिचर के मुखिया ‘चीफ़ एडवाइज़र कॉस्ट’ के दफ़्तर से होता है. उसकी अनुमति के बाद ही ये पेमेंट संसद से की जाती है.

पिछले साल संसद भवन में कुल कितनी पार्टियाँ हुईं ?

साल 2017-18 में संसद भवन केटरिंग यूनिट में 27 स्पेशल पार्टियां हुईं. संसद भवन एनेक्सी केटरिंग यूनिट में 82 स्पेशल पार्टियां हुईं और संसद भवन की लाईब्रेरी बिल्डिंग केटरिंग यूनिट में 49 पार्टियां हुईं. तीनों केटरिंग यूनिट मिला कर संसद भवन में सांसदों और मंत्रियों के लिए बीते साल कुल 158 स्पेशल पार्टियां हुईं.

कितनी कैंटीन हैं संसद में ?

संसद के मुख्य भवन में दो बड़ी व अन्य छोटी कैंटीन हैं. संसद के एनेक्सी भवन में एक बड़ी कैंटीन है. संसद की लाइब्रेरी बिल्डिंग में भी दो बड़ी और अन्य छोटी कैंटीन हैं. रेट सब जगह सामान हैं. हाँ, सांसदों को परोसे जाने वाले खाने और अन्य लोगों को मिलने वाले खाने में ठीक वही अंतर होता है जो दूल्हे के ख़ास परिवार और अन्य बारातियों के खाने के बीच होता है. जिसमें किसी को कोई परेशानी भी नहीं है.

क्या है अभी संसद में खाने की रेट लिस्ट ?

चपाती- ₹2 पापड़- ₹3 चाय, कॉफ़ी, दाल, दही - ₹5 ब्रेड-बटर, वेज सैंडविच, सांभर- ₹6 वेज करी, ड्राई वेज, प्लेन राइस, आलू बोंडा प्रति पीस- ₹7 सलाद- ₹9 मटर पनीर, कढ़ी पकौड़ा, वडा, प्लेन दोसा, बॉइल्ड वेज़िटेबल-₹12 सूप, ब्रेड पकौड़ा, -₹14 मिनी थाली- ₹15 आमलेट, उपमा, पोहा, दोसा, ओनीयन दोसा, वेज कटलेट, फ़्रूट सलाद, इडली-सांभर- ₹18 केसरी भात, फ़्रेश जूस, चिकेन सैंडविच, स्पेशल पकोड़ा, पूड़ी-सब्ज़ी, टोमैटो भात- ₹24 वेज थाली- ₹35 चिकेन कटलेट, मटन कटलेट- ₹41 चिकन करी -₹50 चिकन तंदूरी - ₹60 फ़िश फ़्राई- ₹68 नॉन वेज थाली- ₹71 लंच थ्री कोर्स- ₹106

अगले सत्र में आ सकती है नई रेट लिस्ट

गुरुवार को हटाई गई सब्सिडी के अनुसार खाने के नए दाम अगले संसद-सत्र से लागू हों सकते हैं. संसद के सूत्रों के अनुसार संसद में खाने के दाम तो बढ़ेंगे लेकिन दामों के अधिक बढ़ने की संभावना नहीं है क्योंकि करोड़ों रूपए की सब्सिडी अब भी इस्टैब्लिश्मेंट चार्ज के नाम पर तो जा ही रही है.

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