कृष्णन को संगीत की शुरुआती शिक्षा उन्हें अपने पिता ए नारायण अय्यर से मिली. उन्होंने तिरुवनंतपुरम में 11 साल की उम्र में 1939 अपना पहला कॉन्सर्ट में दिया था. बाद में अल्लेप्पी के पार्थसारथी उनके मेंटर बने और कृष्णन ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में उनके दिए गए सपोर्ट को हमेशा स्वीकार किया था. साल 1942 में चेन्नई जाने के दौरान वे सेमंगुड़ी श्रीनिवास अय्यर से जुड़ गए. इसके बाद उनके केरियर को नई ऊंचाई मिली.
कृष्णन ने अरियाकुड़ी रामानुज अयंगर, मुसिरी सुब्रमनिया अय्यर, अलाथुर ब्रदर्स, जीएन बालासुब्रमण्यम, मदुरै मणि अय्यर, वैद्यनाथ भगवान, एमडी रामनाथन और महाराजपुरम विश्वनाथ अय्यर जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया था.
पद्म विभूषण से सम्मानित
कृष्णन ने एक शिक्षक के रूप में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. वह म्यूजिक कॉलेज, चेन्नई में म्यूजिक के प्रोफेसर रहे. इसके बाद वो दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स के डीन बने. उन्हें संगीत की दुनिया में प्रोफेसर कृष्णन के रूप में जाना जाता था. उन्हें संगीत अकादमी का संगीत कलानिधि और पद्म भूषण और पद्म विभूषण सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया.
श्रीनिवास अय्यर के शिष्य रहे गायक और लेखक टी.एम. कृष्णा ने उन्हें याद करते हुये कहा कि उन्हें रागों की गहरी समझ थी. अच्छे संगीत के बारे उनकी स्पष्टता थी और उन्होंने इसका अटूट पालन किया.
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