नई दिल्ली: हार्डवेयर का सामान चाहिए या टेंट हाउस का? दर्जी से कपड़े सिलवाने हैं या दुकान से नए कपड़े खरीदने हैं? ढाबे पर खाना खाना है या ढाबे का खाना पसंद नहीं तो सरदार जी के मशहूर छोले भटूरे खाने हैं? आप कहेंगे कि लॉकडाउन है या मजाक हो रहा है? मुझे भी करोल बाग के ईस्ट पार्क रोड इलाके में ऐसा ही लगा. दिल्ली के इस इलाके में मैंने क्या देखा, यह बताने से पहले कहीं और की बात. दिल्ली का करोल बाग मेरा आज का दूसरा पड़ाव था. दिन की शुरुआत हुई नोएडा के सेक्टर 18 से.
लॉकडाउन के दौरान एक बार में एबीपी न्यूज़ में रिपोर्टरों की कुल संख्या के आधे काम पर बुलाए जाते हैं, तो रिपोर्टरों की थोड़ी कमी रहती है. आज बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर सुप्रीम कोर्ट बंद भी था. तो मैं नोएडा की सबसे व्यस्त जगह सेक्टर 18 मार्केट में पहुंच गया.
देश के दूसरे तमाम शहरों की तरह नोएडा में भी सड़कें पूरी तरह से खाली थीं. ऐसे में अपने घर इंदिरापुरम से करीब 10 किलोमीटर दूर सेक्टर 18 मार्केट तक पहुंचने में मुझे मुश्किल से 10 मिनट लगे. लॉकडाउन के दौरान इस मार्केट का मेरा पहला दौरा था. अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था कि जहां चलना फिरना भी मुश्किल हो, वह जगह इस कदर खाली होगी.
नोएडा में लॉकडाउन के तीसरे चरण में जो रियायतें दी गई हैं, उनमें से एक है निजी दफ्तरों का एक तिहाई स्टाफ के साथ खुलना. सेक्टर 18 में मुझे एयरटेल स्टोर, वोडाफोन स्टोर, एप्पल का दफ्तर जैसी कुछ जगहें खुली मिलीं. लेकिन उनमें नाम भर का स्टाफ था. एक स्टोर के मैनेजर से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रशासन से मिली इजाजत के बाद कम स्टाफ के साथ हमने ऑफिस खोलना शुरू कर दिया है. इतने बड़े सेक्टर 18 मार्केट में मुझे चंद निजी ऑफिस के अलावा कुछ भी खुला नहीं दिखा. पुलिस के दो जवान खुले हुए दफ्तरों में झांक कर नियम का पालन हो रहा है या नहीं, यह सुनिश्चित करते ज़रूर नजर आए.
मैंने इन बातों को दिखाते हुए एक वीडियो रिपोर्ट फाइल कर दी. मेरी नई मंजिल थी दिल्ली यूनिवर्सिटी का मिरांडा हाउस कॉलेज. वहां के टीचर्स क्वार्टर्स में भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष समिति के सह संयोजक एन डी जयप्रकाश से मुझे मिलना था. उनसे विशाखापत्तनम में हुए हादसे पर प्रतिक्रिया लेनी थी.
मेरे साथ आज जो कैमरा सहयोगी थे, उनका नाम रंजीत कुमार है. दिल्ली के करोल बाग इलाके में अपना बचपन गुजार चुके रंजीत ने वहां एक मेडिकल स्टोर से कुछ दवा का अनुरोध किया. वैसे तो करोल बाग की तरफ कार लेकर जाना मुसीबत मोल लेने से कम नहीं, लेकिन आज कल खाली सड़कों के चलते मुझे वहां से होते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी के तरफ बढ़ जाने में कोई मुश्किल नहीं लगी. तो हमने गाड़ी पहले करोल बाग की तरफ मोड़ ली.
जैसा कि अब तक देखता आया हूं, मुझे उम्मीद थी कि जिस इलाके में हम जा रहे हैं, वहां मेडिकल स्टोर के साथ किराने की कुछ दुकानें खुली होंगी. लेकिन वहां तो पूरा इलाका ही खुला था. वहां दाखिल होते ही मेरे मुंह से पहला वाक्य निकला, “भाई यह लॉकडाउन है या मजाक हो रहा है?” रंजीत ने बताया, “इधर एक-दो दिन से लोग थोड़े इजी हो गए हैं. दिल्ली के सीएम भी कह रहे हैं कि कोरोना के साथ से जीने की आदत डाल लो. तो लगता है कि लोगों ने अब आदत डालनी शुरू कर दी है."
इसके बाद मेरे सहयोगी मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गए और मैंने अपने ड्राइवर से गली में धीरे धीरे गाड़ी चलाते रहने को कहा. इस रिपोर्ट के साथ जो तस्वीरें हैं, वह सब मैंने कार में बैठकर ही ली हैं. मैंने वहां मिठाई की दुकान, हार्डवेयर की दुकान, ढाबा, छोले भटूरे की दुकान, टेंट हाउस वगैरह सब कुछ खुला देखा. लोग सड़कों पर बिंदास घूम रहे थे. मजे की बात यह है कि जिस गली में यह नजारा था उसमें शीदीपुरा नाम की पुलिस चौकी भी है. बल्कि पुलिस चौकी के सामने ही एक टेंट हाउस वाले की दुकान खुली हुई थी. न कोई कुछ देखने वाला था, न कुछ कहने वाला था.
हमारी गाड़ी में चूंकि एबीपी न्यूज़ का स्टीकर लगा हुआ है और गाड़ी काफी धीमी रफ्तार से भी चल रही थी. ऐसे में, एक सरदार जी ने हाथ देकर गाड़ी को रोका. मुझसे पूछा, “आप जी क्या यहां की रिपोर्ट बनाने आए हो." मैंने उनसे कहा कि अभी तो मैं सिर्फ देख ही रहा हूं. सरदार जी ने कहा, “देख लो जी यहां का हाल. लगता है, एक मैं ही हूं, जिसने दुकान नहीं खोली. मेरी भी हार्डवेयर की दुकान है. सोच रहा हूं घर जाकर दुकान की चाबी ले आऊं."
मैंने सरदार जी को हाथ जोड़कर, “अच्छा जी. सत श्री अकाल“ बोला और आगे बढ़ गया. रंजीत जी अपनी दवाई ले चुके थे. उन्हें गाड़ी में बिठाया और निकल गया अगली खबर के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरफ.
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