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गणतंत्र के 73 साल: क्या है भारत के संविधान का राजनीतिक दर्शन?

Republic Day 2023: भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय इसके हर पहलू को छूने का प्रयास किया. इसने भारत के संविधान को समय के साथ बेहद प्रासंगिक बना दिया.

73 Years Of Indian Constitution: दुनिया के पटल पर उभरते और निखरते भारत की असली बुनियाद 26 जनवरी 1950 को पड़ी, जब संविधान सभा के तैयार किए गए संविधान को अपने ऊपर लागू किया. इस फैसले के साथ ही भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान बन गया. 

इस संविधान की खास बात ये है कि इसकी शुरुआत हम लोग से होती है, जहां देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, वैचारिक, धार्मिक आजादी होगी. सभी नागरिकों से संविधान ने वादा किया कि वह प्रतिष्ठा और अवसर की समानता भी प्रदान करेगा. इसके साथ ही ये किताब, सिर्फ संविधान नहीं रही, बल्कि भारत की तकदीर बन गई, जिससे समाज के सभी वर्गों को रौशनी मिलती है.

भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय इसके हर पहलू को छूने का प्रयास किया. इसने भारत के संविधान को समय के साथ बेहद प्रासंगिक बना दिया. संविधान के दर्शन से हम भारत के संविधान में लिखित अवधारणाओं और उनके आदर्शों के बारे में देश को बताना चाहते हैं, इसलिए इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है.  

क्या है संविधान का राजनीतिक दर्शन?  
जैसे कि भारत के संविधान की प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों को गारंटी देती है कि वह अपने आखिरी नागरिक को भी स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इस शर्त के साथ कि इन अधिकारों पर शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाए.

इसी तरह भारतीय संविधान, भारत के सभी अल्पसंख्यकों, और उनके धार्मिक अधिकारों का सम्मान करता है जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में लिखा हुआ है. भारत के संविधान और उसकी प्रस्तावना में लिखित संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणतंत्र, न्याय ही इसके दर्शन हैं. 

भारत के संविधान का समाजवादी दर्शन?
उदारवाद का मतलब सामाजिक न्याय से है, उदारवाद की परिभाषा के अनुसार, समाज के सभी वर्गों को स्वतंत्र, सृजनशील और सक्रिय जीवन जीने का अधिकार और माहौल मिलना चाहिए, जिससे समाज के हर वर्ग के लोग सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से आगे बढ़ सकें. भारतीय संविधान में वर्णित आर्टिकल 12 से लेकर आर्टिकल 32 तक दिए गए मूल अधिकार इसी उदारवाद की बात करते नजर आते हैं. 

भारत के संविधान का धार्मिक दर्शन
भारत के संविधान में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट दूरी और सीमा रेखा खींची गई है. क्योंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है, जहां पर अलग-अलग धर्मों के लोग सद्भाव से रहते हैं, वह सद्भाव से रह सकें इसके पीछे संविधान निर्माताओं ने काफी काम किया है और इसको लेकर संविधान और कानून में सभी संभावित स्थितियों के बारे में विस्तार से लिखा गया है. 

सभी धर्मों को एक साथ सद्भाव से रखने के लिए, संविधान में व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी के अधिकार आर्टिकल 25-28 के बीच दिए गए हैं, तो वहीं धर्म और राज्य के बीच की दूरी को भी बताया गया है. 

भारत के संविधान का 'लोकतांत्रिक' दर्शन
भारत के संविधान के राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy) में लोकतांत्रिक शब्द बहुत ही महत्व का शब्द है. जो इस बात को इंगित करता है कि सरकार की शक्ति का स्रोत उसके लोगों में है. यह जनता की जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार है. इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राजनारायण केस में भी यह कहा गया कि लोकतंत्र भारतीय संविधान की एक बुनियादी विशेषता और जरूरत है. लोकतंत्र लोगों की शक्ति है और राज्य की शक्ति लोगों में निहित है, जिसका अर्थ है कि लोकतंत्र भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण दर्शन में से एक है.

भारत के संविधान का न्यायिक दर्शन
भारत के संविधान में न्याय शब्द से आशय व्यक्तियों और समाज के बीच हितों का सामंजस्य स्थापित करना है, इसलिए भारत की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की अन्य अवधारणाओं पर न्याय को प्राथमिकता दी गई है. जिसमें न्याय के तीन पहलूओं को स्पष्ट ढंग से बताया गया है. इस पहलू में सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय की बात की गई है. 

क्या है भारत का सामाजिक न्याय?
संविधान में सामाजिक न्याय को आर्थिक और राजनीतिक न्याय से ऊपर की प्राथमिकता दी गई है, जबकि प्रस्तावना में आर्थिक न्याय को राजनीतिक न्याय से पहले रखा गया है. सामाजिक न्याय से संविधान इस बात को बताने की कोशिश करता है कि  नागरिकों के साथ उनकी सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना उनके साथ समान व्यवहार किया जाएगा, जिसके बारे में विस्तार से आर्टिकल 14, 15 और 38 में बताया गया है. 

क्या है भारत का आर्थिक न्याय?
आर्थिक न्याय में अमीर और गरीब के बीच खाई को पाटने की कोशिश की गई है, संविधान के अनुच्छेद (अनुच्छेद 36-51) के सभी प्रावधान आर्थिक और सामाजिक न्याय के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. 

क्या है भारत का राजनीतिक न्याय?
भारत के संविधान में राजनीतिक न्याय के मुताबिक हर नागरिक को राजनीतिक प्रक्रिया में बराबर की भागीदारी देने की बात कही गई है. संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 सभी नागरिकों (वयस्कों) को चुनाव में भाग लेने और चुनाव में मतदान करने का समान अधिकार प्रदान करते हैं.

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