दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र पर है यह मंदिरः माथा टेकता है हर जवान, जानिए कौन हैं वह बाबा जिनके 'कांधों पर सरहद की कमान'
O P Baba Temple Story In Siachen: सियाचिन दुनिया की सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है. ऐसा कहते हैं कि वहां कड़ाके की ठंड और सीमा की तमाम चुनौतियों से ओपी बाबा जवानों की रक्षा करते हैं.
Indian Army Story of OP Baba: सियाचिन दुनिया की सबसे ऊंची बैटलफील्ड (रणक्षेत्र) होने के लिए जाना जाता है. जितना खास सियाचिन है, उतना ही स्पेशल वहां बना एक मंदिर भी है. इस मंदिर को आज ओपी बाबा के मंदिर के तौर पर जाना जाता है. ऐसा कहते हैं कि कड़ाके की ठंड में ये बाबा मां भारती के जवानों की रक्षा करते हैं. आइए, इस गणतंत्र दिवस पर जानते हैं ओपी बाबा के मंदिर की कहानीः
ओपी बाबा को सियाचिन का सबसे बड़ा कमांडर माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि सियाचिन में पोस्टिंग के बाद हर जवान उनके मंदिर में माथा जरूर टेकता है. फौजी सही-सलामत लौटने से भी वहां दर्शन को जाते हैं. जिन ओपी बाबा का वहां पर मंदिर है, उनका पूरा नाम- ओम प्रकाश था. वह 1980 में भारतीय सेना में थे. ऐसा कहते हैं कि 1980 के दशक में उन्होंने अकेले मालौन चौकी पर पाकिस्तानी फौज के हमले को नाकाम कर दिया था. उन्हें उसी दशक में फॉरवर्ड पोस्ट पर तैनात किया गया था और इसी पोस्टिंग के समय उनकी रहस्यमयी ढंग से जान चली गई थी. माना जाता है कि वह पाकिस्तानी हमले को नाकाम करने के बाद शहीद हुए थे.
...तो ऐसे करते हैं जवानों की मदद
ओपी बाबा के नाम से मशहूर ओम प्रकाश को लेकर कहा जाता है कि वह (उनकी आत्मा) आज भी ग्लेशियर में तैनात भारतीय जवानों की मदद करते हैं. उन्हें लेकर सिपाही भी कई दावे कर चुके हैं जिनके अनुसार अगर कोई जवान ग्लेशियर में रास्ता भटक जाता है तो ओपी बाबा उसकी मदद करते हैं. इतना ही नहीं, अगर कोई बर्फीला तूफान आने वाला हो तो वे किसी न किसी सिपाही के सपने में आकर उन्हें आगाह कर देते हैं. सीमा पर हर तरह के खतरे के बारे में वह जवानों को सपने में आकर बताते रहते हैं जिससे सरहद सुरक्षित रहती है.
भारत-पाकिस्तान समझौते के बाद बना स्थाई मंदिर
ओपी बाबा का मंदिर सियाचीन में इंडियन आर्मी बेस के पास है. पहले एक कुटिया में सैनिक उनके नाम पर माथा टेका करते थे. 2003 के भारत-पाकिस्तान समझौते के बाद इसे मंदिर बनाकर स्थाई रूप दिया गया. वहां ग्लेशियर तीन तरफ से पाकिस्तान और चीन से घिरा है और दिन में भी तापमान माइनस 30 से 55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. फिर भी सेना के जवान वहां पहरेदारी करते हैं.