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गणतंत्र दिवस हिंसाः उपद्रवियों की पहचान के लिए दिल्ली पुलिस अपना रही है ये रणनीति

राज की बात ये है कि दिल्ली पुलिस हंगामा करने और करवाने वालों की पहचान का मेगा अभियान छेड़ चुकी है. दिल्ली पुलिस ने इस पूरे मामले में इतनी बड़ी जांच शुरू कर दी है कि हिंसा में शामिल एक भी चेहरा बच नहीं पाएगा.

नई दिल्लीः देश के बहत्तरवें गणतंत्र दिवस पर जब दिल्ली के राजपथ पर परेड चल रही थी, दुनिया हिंदुस्तान के दम को देख रही थी. संस्कृति, शौर्य और देशभक्ति की झांकियों को देखकर इंडिया गेट का माथा ऊंचा हो रहा था उसी वक्त राजधानी में एक रार को छेड़ने के लिए ट्रैक्टरों कतार दिल्ली में दाखिल हो रही थी. उधर परेड खत्म हुई और इधर किसान आंदोलन के नाम पर ट्रैक्टर परेड ने बवाल के परवाज खोल दिए. चांदनी चौक में सदियों से सीना तान कर खड़े लाल किले की प्रचीर पर चढ़ कर देश के गौरव का चीरहरण कुछ बलवाइयों ने कर दिया. पूरी दिल्ली में बवाल मचा. कहीं बेरिकेडिंग को तोड़ा गया, कहीं सुरक्षाबलों को तलवार लेकर दोड़ाया गया, कहीं पत्थरबाजी हुई, कहीं गाड़ियां पलटाई गई. दूसरे शब्दों में कहिए तो दिल्ली बंधक बन गई, दहल उठी और ये सब हुआ किसान आंदोलन के नाम पर.

इस तस्वीर को पूरे देश ने देखा. कलंक की वो कहानी जिसकी चर्चा पूरे देश में चल रही है लेकिन अब इन्हीं तस्वीरों और कहानियों के पीछे से निकल कर आ रही राज की बात को हम आपसे साझा करने जा रहे हैं. राज की बात ये है कि किसान आंदोलन के नाम पर हुए बलवे के प्यादों और वजीरों को अभूतपूर्व सबक सिखाने की तैयारी शुरु हो गई है.

दिल्ली पुलिस का प्लान किसी को नहीं छोड़ा जाए

राज की बात ये है कि दिल्ली पुलिस हंगामा करने और करवाने वालों की पहचान का मेगा अभियान छेड़ चुकी है. दिल्ली पुलिस ने इस पूरे मामले में इतनी बड़ी जांच शुरू कर दी है कि हिंसा में शामिल एक भी चेहरा बच नहीं पाएगा. एक भी चेहरा ऐसा नहीं होगा जिसे इस बात का फायदा मिल पाए कि वो भीड़ में पहचाने जाने से बच गया. एक भी चेहरा ऐसा नहीं होगा जिसका ये मुगालता सही साबित हो जाए कि वो पर्दे के पीछे से खेल करके बच जाएगा.

अब ये कैसे होगा? कौन करेगा? यही राज की बात में हम आपको बताने जा रहे हैं. राज की बात ये है कि 26 जनवरी को हुई ट्रैक्टर परेड की हिंसा में हिंसक तत्वों को पहचानने के लिए दिल्ली पुलिस लगभग डेढ़ करोड़ कॉल डिटेल्स का विश्लेषण कर रही है. ये कॉल डिटेल्स सिंघु, टिकरी, गाजीपुर, बादली बॉर्डर से लेकर दिल्ली में होने वाले बवाल के क्षेत्रों के लगभग 350 मोबाइल टॉवर्स से संबंधित हैं.

कॉल डिटेल्स के जरिए पड़ताल

राज की बात ये है कि दिल्ली पुलिस डेढ़ करोड़ कॉल डिटेल्स में पड़ताल कर रही है कि कि इन बॉर्डर्स पर मौजूद मोबाइल सब्सक्राइबर्स की लोकेशन कैसे बदली, कहां बदली, किन-किन से बात हुई, कितनी देर बात हुई और जिनसे बात हुई उन लोगों की लोकेशन क्या थी. इनमें से 290 टावर का ब्यौरा दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल पता भी लगा चुकी है.

इस पड़ताल का मकसद साफ है. मकसद ये कि अलग अलग बॉडर्स से चले लोग कहां पहुंचे, उन्होंने किससे बात की. पड़ताल का ये प्वाइंट उन लोगों को आसानी चिन्हित कर लेगा जो सिंघु, टिकरी, गाजीपुर, बादली से चले और दिल्ली के हिंसा के क्षेत्रों में सक्रिय हो गए.

इस बड़ी जांच पड़ताल के पीछे भी एक राज की बात है. राज की बात ये है कि दिल्ली पुलिस हिंसा करने और करवाने वालों के खिलाफ केस को इतनी मजबूती के साथ कोर्ट में पेश करना चाहती है. जिससे आरोपियों को राहत न मिल सके. एक मैसेज दिया जा सके कि कानूनी प्रक्रिया में लूप होल्स तलाश कर बचने का आइडिया अब पुराना हो चुका है.

ट्रैक्टर का खरिदार कौन?

दिल्ली हिंसा के मामले में एक बिंदु तो हिंसा करने और करवाने की पहचान का हो गया लेकिन राज की बात ये है कि इस जांच में दूसरा पहलू भी है. दूसरा पहलू ये कि दिल्ली की हिंसा और किसान आंदोलन में क्या विदेशी फंडिंग है, अगर है तो कैसे इस बात की भी जांच दिल्ली पुलिस फोकस कर रही है. फंडिंग के सोर्स को तलाशने के लिए जिन प्वाइंटस पर दिल्ली पुलिस काम कर रही है उनमे से एक है बीते कुछ समय में ट्रैक्टर्स की खरीददारी. पुलिस इस बात की डिटेल्स निकाल रही है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीते दिनों में जो ट्रैक्टर खरीदे गए वो खरीददार कौन थे और फाइनेंसर कौन था.

पुलिस ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि देश में बड़ा ट्रैक्टर आंदोलन खड़ा करने के लिए ही विदेश फंडिंग के जरिए ट्रैक्टर्स मुहैया करवाए गए. खैर! जांच में और भी कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं और उन सभी पर काम हो रहा है. दिल्ली हिंसा के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आला अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई थी और हिंसा पर नाराजगी जाहिर की थी. इसके साथ ही साथ आरोपियों को कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी जारी किए गए हैं. मकसद साफ है कि इस बात इतनी मजबूत चार्जशीट आरोपियों के खिलाफ तैयार की जाए कि उनका जेल से बाहर निकलना मुश्किल हो जाए और आने वाले वक्त में किसी आंदोलन के नाम पर हिंसा करने या भड़काने की हिम्मत कोई और न कर सके.

तकनीक का सहारा

ट्रैक्टर रैली लेकर आईटीओ, दरियागंज और लाल किला पहुंचे उपद्रवी किसानों की तलाश के लिए दिल्ली पुलिस तकनीक का सहारा ले रही है. इसके लिए एक ओर पुलिस जहां चेहरा पहचानने वाले सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही है. वहीं दूसरी ओर, उसने उपद्रव वाले दिन हंगामे का गवाह बने स्थानों पर सक्रिय मोबाइल फोनों की कॉल डिटेल्स को खंगालना भी शुरू कर दिया है. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नागरिकता कानून के विरोध में जब पूर्वी दिल्ली में दंगा हुआ था. उसके बाद भी उपद्रवियों को पकड़ने के लिए इस तरह की ही तकनीक को उपयोग में लाया गया था. यह काफी कारगर रही है.

पुलिस इन तीनों सीमाओं पर सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों के आधार पर संबंधित लोगों के नाम और पता को संबंधित मोबाइल कंपनी से हासिल करेगी. इसके उपरांत दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के विभिन्न जिलों के आरटीओ/परिवहन विभाग से संबंधित लोगों के ड्राइविंग लाइसेंस बने होने को लेकर जानकारी हासिल की जाएगी. अगर वहां से यह पता चलता है कि संबंधित नाम और पते पर कोई लाइसेंस बना है तो उन लोगों के फोटो भी इन परिवहन कार्यालय से हासिल किए जाएंगे. इसके अलावा विभिन्न टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और पुलिस के वीडियोग्राफरो की ओर से तीनों सीमा और उपद्रव वाली जगह से हासिल फुटेज में सामने आए चेहरों को परिवहन विभाग से हासिल फोटो के साथ मिलाने का कार्य किया जाएगा. जिससे यह पता लग पाए की कितने चेहरे को सॉफ्टवेयर मैच कर रहा है. इसके उपरांत उन संबंधित लोगों को भी नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा. अगर पुलिस को यह पुख्ता आशंका होती है कि संबंधित व्यक्ति उपद्रव में शामिल था तो उसे फिर गिरफ्तार करने का कार्य किया जाएगा.

सरकार को ये भी मालूम है कि जिस तरह से गिरफ़्तारियां होनी हैं, उसके लिहाज़ से दिल्ली की जेलें छोटी पड़ जाएंगी. जगह कम पड़ जाएगी. इसके लिए दिल्ली पुलिस अदालत से अन्य राज्यों में भी कैदियों को रखे जाने की अपील करेगी. इसके लेकर भी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. राज की बात ये है कि दिल्ली से जुड़े हरियाणा में ही यहां से सबसे ज्यादा कैदी स्थानांतरित किए जाएंगे. इसको लेकर कागजी कार्यवाही पुख्ता की जा रही है.

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