बायोरेक्सिव पर अपलोड की गई रिसर्च के मुताबिक भारत में मौजूद डबल म्यूटेंट की प्रतिरक्षा E484K वाले वेरिएंट से कम है. भारतीय SARS-CoV-2 ने ब्रिटेन के साथ मिल कर रिसर्च की है, जिसमें भारतीय वेरिएंट B.1.617 वैक्सीन लगने के बाद शरीर में बनने वाली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी को कम असरदार बना देता है, लेकिन इसके दो उत्परिवर्तनों का शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. जानकारी के मुताबिक भारत में मौजूद वेरिएंट को 'डबल म्यूटेंट' इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें म्यूटेशन E484Q और L452R है. वहीं रिसर्च में कहा गया है कि इस संस्करण को बेअसर करने के लिए एंटीबॉडी की क्षमता में कमी देखी गई थी, लेकिन वो पूरी तरह से अप्रभावी नहीं थे. वैक्सीन लगने के बाद भी लोगों को संक्रमण हो सकता है, लेकिन वैक्सीन गंभीर रूप से बीमार पड़ने से बचाएगी. शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि वैरिएंट प्रयोगशाला के अंदर पारगम्य था, वहीं दिल्ली के एक अस्पताल के 33 स्वास्थ्य कर्मियों में वैक्सीन लगने के बाद B.1.617 वेरिएंट पाया गया था.
P681R वेरिएंट वायरस को बनाता है खतरनाक
जानकारी के मुताबिक उत्परिवर्तन P681R भी वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर पाया जाता है, जो किसी व्यक्ति को संक्रमित करने के लिए मानव रिसेप्टर्स के साथ जुड़ता है, ये वायरस को और ज्यादा आक्रामक बनाता है. फिर भी रिसर्च में पाया गया है कि वैक्सीनेशन लगने के बाद व्यक्ति का शरीर वेरिएंट से लड़ सकता है.
परीक्षण में शामिल रहीं ये कंपनियां
रिसर्च में पाया गया है कि P681R उत्परिवर्तन से सिन्थाइटियम का गठन होता है, जिससे वायरस मानव कोशिका में आसानी से प्रवेश कर लेता है. वहीं शोधकर्ताओं ने फाइजर, बायोएनटेक कंपनी के साथ मिलकर परीक्षण किया है. ये वहीं कंपनियां हैं जिन्होंने वैक्सीन बनाई है.
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