आरक्षण का विवाद: पीएम से मिल सकते हैं दलित सांसद, आरक्षण को नौवीं अनुसूची में रखने की मांग
दलित सांसदों का मानना है कि सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि आरक्षण की व्यवस्था यथावत लागू रह सके. प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर सांसदों की ज्ञापन देने की योजना है जिसमें उनकी मांगें शामिल रहेंगी.
नई दिल्लीः सरकारी नौकरियों की नियुक्ति और प्रोमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के बाद दलित सांसदों में रोष और नाराज़गी है. वो चाहते हैं कि सरकार को इसका कुछ स्थाई समाधान निकलना चाहिए. आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो नई व्याख्या की है उसका भारी विरोध हो रहा है. सोमवार को लोकसभा में इस मामले पर ज़बर्दश्त हंगामा भी हुआ.
इस मसले पर कोर्ट के रुख़ से सभी दलों के दलित सांसद नाराज़ हैं. सभी दलित सांसद मसले के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं.
इन दलित सांसदों का मानना है कि सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि आरक्षण की व्यवस्था यथावत लागू रह सके. प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर सांसदों की ज्ञापन देने की योजना है जिसमें उनकी मांगें शामिल रहेंगी.
रामविलास पासवान के घर हुई बैठक
सोमवार रात केंद्रीय मंत्री और कद्दावर दलित नेता रामविलास पासवान के घर सभी दलों के दलित सांसदों की एक बैठक हुई. बैठक में करीब 50 दलित और आदिवासी सांसदों ने शिरकत की. इनमें पासवान के अलावा थावरचन्द गहलोत, रामदास आठवले , अर्जुन राम मेघवाल , ए राजा , चिराग पासवान और प्रदीप टम्टा जैसे नेता शामिल थे. सभी नेताओं ने एक स्वर से सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश की निंदा करते हुए अपनी नाराजगी ज़ाहिर की.
9वीं अनुसूची में रखने की मांग
बैठक में मौजूद एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने आरक्षण का विषय संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की. पासवान ने कहा कि 9वीं अनुसूची में शामिल करने से ये मामला कोर्ट की समीक्षा के दायरे से बाहर आ जाएगा जिससे बार बार इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. बैठक में मौजूद सभी सांसदों ने चिराग पासवान की इस मांग पर सहमति जताई. सांसदों ने इसके लिए सरकार से संविधान में संशोधन करने की मांग की.
भारतीय न्यायिक सेवा का हो गठन
सांसदों ने देश में आईएएस और आईपीएस की तर्ज़ पर ही भारतीय न्यायिक सेवा यानि इंडियन ज्यूडिशियल सर्विस के गठन की भी मांग की. सांसदों का कहना था कि न्यायिक सेवा के गठन से न्यायिक व्यवस्था में दलित लोगों का प्रतिनिधत्व बढ़ सकेगा क्योंकि इसमें आरक्षण का प्रावधान हो सकेगा. सम्भावना है कि इन सभी मांगों का एक ज्ञापन तैयार करके जल्द ही इन सांसदों का शिष्टमंडल प्रधानमंत्री से मुलाक़ात करेगा.