नई दिल्ली: आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने मंडी हाउस से जंतर मंतर तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उदित राज के नेतृत्व में मार्च निकाला. उदित राज ने कहा कि 7 फरवरी को सर्वोच्च न्ययालय ने जो फैसला लिया कि संविधान के मुताबिक आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और दूसरा की सरकारी सेवाओं में प्रमोशन्स के संदर्भ में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं, इसको वापस लिया जाय.उदित राज का कहना है कि यह साफ तौर से आरक्षण विरोधी फैसला है.


उदित राज ने कहा कि हमारी मांग है जो 7 फरवरी के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का निरस्तीकरण होना चाहिए. समय आ गया है कि हाई कोर्ट/सुप्रीम कोर्ट में भी आरक्षण होना चाहिए कि ऐसे दलित समाज विरोधी कदम न उठाए जाएं. उन्होंने कहा कि न्यायलय के सामने लीगल टीम खड़ी की गई ताकि किसी तरीके से आरक्षण बचे. उनका कहना है कि न्यायलय का इंटरप्रिटेशन ही गलत है.


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि राहुल गांधी ने पहले ही दिन कह दिया था कि कांग्रेस ने आरक्षण दिया है, छीनने नहीं देंगे, हालांकि आज मैं आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से यहां आया हूं.आरक्षण फंडामेंटल राइट है जिसे इन्होंने नॉन फंडामेंटल राइट बता दिया है. यह दलित समाज के खिलाफ है.


आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक ओम सुधा से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमारी तीन प्रमुख मांगे हैं...


तीन प्रमुख मांगे




  • सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड सरकार की पैरवी से जो आरक्षण विरोधी फैसला लिया है कि राज्य सरकारों पर निर्भर है की वह आरक्षण लागू करे या न करें, यह फैसला मनुवाद से ग्रस्त है, बहुजन विरोधी है, इसको वापिस लेना चाहिए.

  • न्याय पालिका में आरक्षण लागू होना चाहिए क्योंकि देश के संसाधनों पर SC/ST को भी अधिकार है.

  • आरक्षण को संविधान की 9वी सूची में शामिल किया जाए.


ओम सुधा ने कहा कि हम लोगों को देश की न्याय पालिका पर विश्वास नहीं है, क्योंकि न्याय पालिका पर एक खास तबके का, एक खास जाती समूह का कब्ज़ा बना हुआ है, और न्याय पालिका का फैसला बताता है कि यह साफ तौर से दलित समाज के विरोध है. लड़ाई जारी रहेगी जब तक सरकार हमारी मांगे न मान लेती. उन्होंने कहा कि यह फैसला सत्ता में बैठी हुई सरकार से बिल्कुल परे नहीं है, यह फैसला उत्तराखण्ड सरकार की पैरवी से आया है.


बीजेपी न्याय पालिका का इस्तेमाल करती है और ऐसा ही करती रही है. यह सरकार दलित विरोधी है और अब न्यायालय के साथ मिलके पिछड़ों और आदिवासियों के साथ यह खेल खेल रही है.


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