नई दिल्ली: मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए हामी भरने से पहले महाराष्ट्र के पालघर जिले के ग्रामीणों ने तालाब, एंबुलेंस सेवाएं, सौर उर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट और चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की है. अधिकारियों ने ये जानकारी दी है. गांववालों के विरोध को खत्म करने की उम्मीद में इस परियोजना को लागू करने वाली केंद्रीय एजेंसी नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचआरसीएल) अपनी रणनीति में सुधार करते हुए ज्यादातर शर्तों को मानने पर राजी हो गया है. 2022 तक बुलेट ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा गया है.


जनसंपर्क कार्यक्रमों के जरिए ज्यादा प्रगति नहीं कर पाने की स्थिति में एनएचआरसीएल ने अपने रुख में बड़ा बदलाव किया है और वे प्रत्येक जमींदार के पास जाकर उनकी मांग सुनने के साथ ही उनको उचित मुआवजा देने की बात कर रहे हैं. एनएचआरसीएल को 23 गांवों में बहुत ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ रहा है.


एनएचआरसीएल के प्रवक्ता धनंजय कुमार ने बताया , “हमने अपने रुख में बदलाव किया है. पहले हम गांवों के चौक पर गांववालों को इकठ्ठा कर उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे थे. पर यह काम नहीं आया, इसलिए हमने तय किया है कि अब हम सिर्फ जमींदारों के पास जाएंगे और गांव के मुखिया से लिखित में देने को कहेंगे कि वह जमीन के एवज में मुआवजे के अलावा और क्या चाहते हैं.’’


बता दें कि इस 508 किलोमीटर लंबे ट्रेन गलियारे का करीब 110 किलोमीटर पालघर जिले से गुजरता है. इस परियोजना के लिए 73 गांवों की 300 हेक्टेयर जमीन की जरूरत पड़ेगी जो इस मार्ग पर पड़ने वाले करीब 3,000 लोगों को प्रभावित करेगा. पालघर जिले के आदिवासी और फल उत्पादक इस परियोजना का जमकर विरोध कर रहे हैं.


हालांकि एनएचआरसीएल अब धीरे-धीरे गांव वालों की कुछ मांगों को लक्ष्य बनाकर चीजें अपने पक्ष में कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर मांगे उनकी निजी जरूरतों की नहीं बल्कि पूरे समुदाय के लिए मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी हुई है जैसे एंबुलेंस और स्ट्रीट लाइट. गुजरात में भी इसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है हालांकि यहां बहुत बड़ा विरोध नहीं है. महाराष्ट्र और गुजरात के अलावा हाई स्पीड रेल कॉरिडोर केंद्र शासित प्रदेश दादरा नागर हवेली से भी गुजरेगा.