पॉक्सो कोर्ट में विक्टिम की सुविधाओं में बदलाव की जरूरत है-रिटायर्ड जज
रिटायर्ड जज ओम प्रकाश ने बताया कि सिवान में एक महिला के साथ दुष्कर्म हुआ था. उसमें उन्होंने लगभग तीन महीने में जजमेंट दिया था.
पटना: बिहार के कई जिलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट से लेकर जिला जज का पद संभाल चुके ओम प्रकाश फिलहाल राज्य सूचना आयोग के सदस्य हैं. रिटायर्ड डिस्ट्रिक जज ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने दो दुष्कर्म पीड़ित को तीन महीने में न्याय दिया था. साथ ही उन्होंने पॉक्सो कोर्ट में सुविधाओं के बारे में भी बात कही.
रिटायर्ड जज ओम प्रकाश ने बताया कि सिवान में एक महिला के साथ दुष्कर्म हुआ था. उसमें उन्होंने लगभग तीन महीने में जजमेंट दिया था. वहीं एक तीन या चार साल की बच्ची के साथ उसके मामा ने दुष्कर्म किया था. उस केस में भी उन्होंने तीन-चार महीने के अंदर जजमेंट सुना दिया था. जिसके बाद दुष्कर्म के आरोपी को आजीवन कारावास की सजा हुई.
उन्होंने बताया कि अक्सर दुष्कर्म के मामलों में अभियुक्त की तरफ से स्ट्रैटेजी होती है. उनकी स्ट्रैटेजी होती है कि ट्रायल को जितना ज्यादा विलंबित किया जाए उतना ही अभियुक्त के हित में होगा. ताकि इस समय में गवाहों का मुंह बंद किया जा सके. साथ ही जो विक्टिम है उनके परिवार वालों को ब्लैकमेल किया जा सके और दवाब बनाया जा सके. सबसे ज्यादा अभियुक्त जो हैं केस के ट्रायल बढ़ाने के लिये तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. बेल को लेकर, विभिन्न ऑर्डर्स को लेकर और चार्जशीट को लेकर ऊपरी कोर्ट में चले जाते हैं. जिससे वहां से स्टे लेकर ट्रायल को विलंबित किया जा सके.
उन्होंने बताया कि लखीसराय में एक सामूहिक दुष्कर्म का केस था. जिसमें एक महिला शादी के बाद मायके आई थी और उसके साथ दुष्कर्म हुआ था. साथ ही उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म भी हुआ था. होली के दिन उसके साथ गांव के ही तीन लड़कों ने दुष्कर्म किया था. केस के ट्रायल में ऑलमोस्ट सुन कर जजमेंट दिया था. पहले से सेंसिटिविटी तो बढ़ी है .लोगों को सवेदनशील होना पड़ेगा. लड़कियों के प्रति, महिलाओं के प्रति आदर का भाव होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि किसी बड़ी घटना में लोग तटस्थ हो जाते हैं. गवाह गवाही नहीं देना चाहते हैं. आगे नहीं आना चाहते हैं. लोगों को दुष्कर्म सामाजिक और मानसिक अपराध के रुप में लेना होगा. ये समाज के लिए कलंक की चीज है. उन्होंने कहा कि दुष्कर्म मामले के लिए एक स्पेशल कोर्ट बने. लेकिन स्पेशल कोर्ट स्पीड ट्रायल का असिस्टेंस मिलना बहुत जरूरी है. पॉक्सो कोर्ट बना है. जिसमें कोर्ट को बहुत सारी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए. ट्रायल टाइम टेकिंग चीज है. बीच-बीच मे विक्टिम को गैप देना ब्रेक देना सब टाइम टेकिंग है. पॉक्सो एक्ट कहता है कि विक्टिम को बीच-बीच मे ब्रेक दीजिये. उससे छोटे-छोटे क्वेश्चन पूछिए. क्रॉस एग्जामिनेशन का क्वेश्चन हो.
पॉक्सो कोर्ट अलग पॉक्सो इंफ्रास्ट्रक्टर डॉग रूल्स प्रोवाइड करता है. उसकी प्रक्रिया अभी चल रही है. पॉक्सो कोर्ट में विक्टिम और उसके परिवार वाले जो आते हैं उनके लिए अलग बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए. कोर्ट का वातावरण इस तरह का ना हो जो विक्टिम पर साइकोलॉजिकल असर डाले. एक छोटी बच्ची सामान्य वातावरण में बिना किसी डर के किसी दवाब पर अपना गवाही दे. ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए प्रक्रिया चल रही है. सरकार की ओर से और हाई कोर्ट की ओर से निर्देश जारी हैं. पॉक्सो कोर्ट में ट्रांसलेटर की व्यवस्था होनी चाहिए. साइकोलोजिस्ट की व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे छोटी बच्चियों को कोई परेशानी नहीं हो.
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