38 साल पहले अकेले कुख्यात डकैत को मार गिराने वाले यूपी के पुलिसकर्मी को आखिरकार मिला सम्मान, सुप्रीम कोर्ट ने 5 लाख रुपए की राशि भी दिलवाई
राम औतार ने ड्यूटी पर न होते हुए भी जो बहादुरी दिखाई, उसके लिए उन्हें तारीफ तो बहुत मिली, लेकिन कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला.
84 साल के वृद्ध ने अपने सम्मान की लड़ाई लड़ी और आखिरकार देश की सबसे बड़ी अदालत से अपना अधिकार पाया. अकेले कुख्यात डकैतों से भिड़ कर लोगों की जानमाल की रक्षा करने वाले इस बहादुर शख्स को इस सम्मान के लिए 38 साल इंतज़ार करना पड़ा. इस कहानी के नायक हैं उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिसकर्मी राम औतार सिंह यादव. उनके सम्मान की इस लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के जजों और वरिष्ठ वकील राना मुखर्जी की भी अहम भूमिका रही.
घटना 10 मार्च 1986 की है. बांदा ज़िले के बिसंडा थाने के थाना अधिकारी राम औतार सिंह यादव पुलिस हेडक्वार्टर से बस के ज़रिए अपने थाने लौट रहे थे. यात्रियों से भरी बस अचानक गदरा नाला के पास रुक गई क्योंकि आगे डाकुओं ने पत्थरों से रास्ता बंद कर दिया था. डकैतों ने लूटपाट के इरादे से फायरिंग शुरू कर दी. राम औतार के पास उनका सर्विस हथियार मौजूद था. उन्होंने यात्रियों की रक्षा के लिए डकैतों से मुकाबला शुरू कर दिया. उनकी एक गोली एक डाकू को लगी और वह मारा गया. बाद में उसकी पहचान कुख्यात हिस्ट्रीशीटर डकैत छिदवा उर्फ सिधवा के तौर पर हुई.
राम औतार ने ड्यूटी पर न होते हुए भी जो बहादुरी दिखाई, उसके लिए उन्हें तारीफ तो बहुत मिली, लेकिन कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला. 1989 में झांसी रेंज के डीआईजी ने उनके नाम की सिफारिश राष्ट्रपति पुलिस मेडल के लिए की. इसके बाद राम औतार ने डीजीपी समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखे, लेकिन मामला सरकारी लालफीताशाही में उलझा रहा. उन्हें बताया गया कि घटना की जांच जारी है.
1999 में राम औतार सिंह यादव रिटायर हो गए. इसके बाद भी उन्होंने अपने सम्मान की लड़ाई नहीं छोड़ी. वह ज़िले और राज्य के बड़े अधिकारियों को चिट्ठी लिखते रहे. उन्होंने RTI आवेदन भी दाखिल किए. 2011 में सर्विस ट्रिब्यूनल में में याचिका दाखिल की, जो 2013 में खारिज हो गई. 2017 में उन्होंने राष्ट्रपति भवन भी चिट्ठी भेजी. चीफ सेक्रेट्री कार्यालय से भी संपर्क साधा. उन्हें बताया गया कि मामला 3 दशक पुराना है, उसका रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं.
केंद्रीय सूचना आयोग से भी अपील खारिज होने के बाद राम औतार ने 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. हाई कोर्ट ने इसे 34 साल की देरी से दाखिल बता कर खारिज कर दिया. इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. फरवरी 2024 में जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया. याचिकाकर्ता की सहायता के लिए वरिष्ठ वकील राना मुखर्जी को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया.
देश की सबसे बड़ी अदालत के नोटिस के बाद यूपी सरकार हरकत में आई. जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच के सामने हुई सुनवाई में यूपी सरकार की तरफ से बताया गया कि 18 अक्टूबर 2024 को राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) की तरफ से राम औतार के योगदान की सराहना करते हुए उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया गया है. राज्य सरकार 1 लाख रुपए की सम्मान राशि भी उन्हें देने जा रही है. इस पर जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि राज्य ने पुलिसकर्मी को सम्मानित किया, यह अच्छी बात है. लेकिन सम्मान राशि को बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया जाए.