नई दिल्ली: रूस से तीन दिवसीय यात्रा से लौटने पर आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे से पूर्वी लद्दाख में सटी चीन सीमा पर चल रहे हालात की एक बार फिर पूरी जानकारी ली. माना जा रहा है कि इस मीटिंग के दौरान थलसेना प्रमुख ने रक्षा मंत्री को जानकारी दी कि चीन के साथ एक लंबे समय तक फेसऑफ के लिए सेना पूरी तरह से तैयार है,  क्योंकि डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया में अभी एक लंबा वक्त लग सकता है. जानकारी के मुताबिक, डिसइंगेजमेंट यानि एलएसी पर सैनिकों की तैनाती घटाने से पहले, सीमा पर डीएस्केलेट यानि तनाव कम करने की जरूरत है. तनाव कम होने के बाद ही डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया पूरी हो पाएगी.


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीती रात तीन दिन के अपने रूस के दौरे से लौटे हैं. साथ ही थल सेनाध्यक्ष भी लेह-लद्दाख से गुरूवार को ही लौटे हैं. इस दौरान जनरल नरवणे ने लेह स्थित 14वीं कोर के मुख्यालय में लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह से डिसइंगेजमेंट को लेकर हुई चीन के कोर कमांडर से बातचीत का पूरा ब्यौरा लिया था. क्योंकि 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने 6 और 22 जून को हुई कोर कमांडर स्तर की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. साथ ही पूर्वी लद्दाख के फॉरवर्ड इलाकों का दौरा किया‌ था और गलवान के यौद्धाओं से मुलाकात की थी.


सूत्रों के मुताबिक, थलसेना प्रमुख ने साउथ ब्लॉक में रक्षा मंत्री को जानकारी दी कि चीनी सेना से इस वक्त गलवान घाटी और फिंगर-एरिया सहित गोगरा पोस्ट सहित दौलब बेग ओल्डी यानि डीबीओ के करीब डेपसांग प्लेंस में फेसऑफ की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में भले ही दोनों देश के कोर कमांडर्स डिसइंगेजमेंट के लिए भले ही तैयार हो गए हों लेकिन ये एक लंबी प्रक्रिया है.


माना जा रहा है कि पूर्वी लद्दाख में डिसइंगेजमेंट में अभी कुछ महीने लग सकते हैं. यानि सर्दियों तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हालात ऐसे ही बनें रह सकते हैं. लेकिन सूत्रों की मानें तो भारतीय सेना इसके लिए पूरी तरह से तैयार है.


बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 22 जून को रूस की यात्रा पर गए थे. वे वहां पर द्वितीय विश्वयुद्ध में रूस की विजय की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित विक्ट्री डे परेड में हिस्सा लेने गए थे. साथ ही उन्होंने अपने दौरे के दौरान रूस के साथ डिफेंस और स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर भी बातचीत की.


इस दौरान उन्होनें रूस से जल्द से जल्द एस-400 मिसाइल प्रणाली की डिलवरी देने का अनुरोध किया. भारत ने वर्ष 2018 में रूस से इस‌ मिसाइल सिस्टम का सौदा 39 हजार करोड़ में किया था. इस सिस्टम से दुश्मन के फाइटर जेट्स, हेलीकॉप्टर और ड्रोन्स को 400 किलोमीटर की दायरे में ही मार गिराया जा सकता है. हालांकि, चीन के पास पहले से ही रूस द्वारा दी गई एस-300 प्रणाली है. एस-400 के अलावा भी रक्षा मंत्री ने कुछ और मिसाइल और जरूरी सैन्य साजो सामान का आग्रह किया है जो रूस सहज मुहैया कराने के लिए तैयार हो गया है.


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