नई दिल्ली: बदलाव की राजनीति के नारों के साथ दिल्ली की सियासत में एंट्री करने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) अपनों के सवालों के घेरे में है. वो नेता जो कल तक आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के करीबी माने जाते थे आज बागी हो चुके हैं. कुछ खुलकर तो कुछ सीधा सीएम केजरीवाल को निशाने पर ले रहे हैं. आज ही कवि और आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापक सदस्य कुमार विश्वास ने इशारों-इशारों में केजरीवाल को 'चंदा गुप्ता' तक कह दिया. उन्होंने आशीष खेतान के कथित इस्तीफे की खबर पर कहा कि यह एक और 'आत्मसमर्पित क़ुरबानी है.' पिछले दिनों पूर्व पत्रकार आशुतोष ने आप को अलविदा कह दिया था.


कुमार विश्वास ने आज एक के बाद एक कई ट्वीट और री ट्वीट किये. उन्होंने कहा, ''सब साथ चले, सब उत्सुक थे, तुमको आसन तक लाने में! कुछ सफल हुए ‘निर्वीर्य’ तुम्हें यह राजनीति समझाने में! इन आत्मप्रवंचित बौनों का दरबार बनाकर क्या पाया? जो शिलालेख बनता उसको अख़बार बनाकर क्या पाया ????????? (एक और आत्मसमर्पित क़ुरबानी)'' कवि विश्वास ने एक और ट्वीट में कहा, ''हम तो “चँद्र गुप्त” बनाने निकले थे हमें क्या पता था “चंदा गुप्ता” बन जाएगा.''





कुमार विश्वास अन्ना आंदोलन से लेकर कुछ महीने पहले हुए राज्यसभा चुनाव तक केजरीवाल के साथ रहे. 2013 में जब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सियासत में धमाकेदार एंट्री मारी तो कुमार विश्वास की इसमें अहम भूमिका थी. प्रखर वक्ता होने का फायदा पार्टी को खूब मिला. लेकिन राज्यसभा नहीं भेजे जाने, सर्जिकल स्ट्राइक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले को लेकर कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर सवाल उठाए. केजरीवाल ने भी विश्वास से नाता तोड़ लिया.


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आज जब एक के बाद एक नेता आप को अलविदा कह रहे हैं तो उन्हें विश्वास का साथ मिल रहा है और निशाने पर केजरीवाल रह रहे हैं. उन्होंने आप से आशुतोष के इस्तीफे पर कहा था, 'हर प्रतिभासम्पन्न साथी की षड्यंत्रपूर्वक निर्मम राजनैतिक हत्या के बाद एक आत्ममुग्ध असुरक्षित बौने और उसके सत्ता-पालित, 2G धन लाभित चिंटुओं को एक और “आत्मसमर्पित-क़ुरबानी” मुबारक हो! इतिहास शिशुपाल की गालियां गिन रहा है. आज़ादी मुबारक.'' बताया जाता है कि आशुतोष राज्यसभा नहीं भेजे जाने से नाराज थे. आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को राज्यसभा में भेजा था.


पंजाब में अलग-थलग आप
पंजाब में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़कर बीजेपी-अकाली दल गठबंधन को पीछे छोड़ने वाली आप अलग-थलग पड़ी है. पिछले दिनों आप के बागी नेता सुखपाल सिंह खैरा के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी के विधायकों के एक समूह ने पार्टी की पंजाब इकाई को ‘‘स्वायत्त’’ घोषित कर दिया था. पंजाब में आप के 20 विधायक हैं जिसमें से आठ विधायक बागी गुट के साथ हैं. कई दौर की बातचीत के बावजूद विधायकों की नाराजगी कम नहीं हो रही है.


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इससे पहले राजनीतिक विश्लेषक और पार्टी के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, अंजलि दमानिया, मयंक गांधी, शाजिया इल्मी जैसे नेताओं ने आम आदमी पार्टी छोड़ दी थी.


क्यों आप को अलविदा कह रहे हैं नेता
सत्ता का केंद्रीकरण- आम आदमी पार्टी से नाता तोड़ने वाले नेताओं का कहना है कि पार्टी में कुछ चापलूसों से घिरे केजरीवाल 'तानाशाह' की तरह काम करते हैं. पार्टी के संविधान और सबसे बड़ी राजनीतिक इकाई सिर्फ कागजों तक सीमित है. केजरीवाल का आदेश ही अंतिम फैसला होता है.


बागी नेता पार्टी के कुछ नेताओं पर लगे आरोपों पर केजरीवाल की चुप्पी और नजदीकियों को अहमित देने पर सवाल उठाते रहे हैं. पार्टी को मिलने वाले चंदा को लेकर बागी नेताओं का कहना है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. जबकि पार्टी की स्थापना का आधार ही भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस था. नाराज नेताओं का कहना है कि बदलाव की राजनीति के नाम पर आप तो आई लेकिन बीजेपी-कांग्रेस और अन्य दलों के राजनीतिक पैटर्न में बदल गई.


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