नई दिल्लीः गुटबाजी से जूझ रही दिल्ली कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई चरम पर पहुंच गई है. प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित ने दो कार्यकारी अध्यक्षों के पर कतर दिए तो प्रभारी पीसी चाको ने शीला के खराब सेहत का हवाला देते हुए कार्यकारी अध्यक्षों को जिला और ब्लॉक कमिटियों की बैठक और उचित फैसले लेने के लिए अधिकृत कर दिया है.
बीस दिनों के अंदर चाको की चौथी चिट्ठी
बुधवार को प्रभारी पी सी चाको ने अध्यक्ष शीला दीक्षित को एक और 'कड़ा पत्र' लिख कर कहा है कि आपकी खराब सेहत के मद्देनजर तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को जिला एवं ब्लॉक कमिटियों के साथ बैठक करने और फैसले लेने के लिए अधिकृत किया जाता है. चाको ने शीला से कार्यकारी अध्यक्षों की बैठक बुलाने का भी निर्देश दिया है. चाको ने तीनों कार्यकारी अध्यक्षों को भी इस बारे में चिट्ठी लिख कर जनाकारी दी है. बीस दिनों के अंदर शीला को लिखी चौथी चिट्ठी में चाको ने शिकायती लहजे में कहा है कि इससे पहले लिखी चिट्ठियों का शीला दीक्षित की तरफ से जवाब नहीं दिया गया.
शीला ने दो कार्यकारी अध्यक्षों के पर कतरे
इससे पहले सोमवार को शीला दीक्षित ने कार्यकारी अध्यक्षों के बीच नए सिरे से काम का बंटवारा किया. शीला ने हारून यूसुफ और देवेन्द्र यादव का कद घटाया है जबकि अपने करीबी राजेश लिलोठिया को बड़ी जिम्मेदारी दी है . ताजा फैसले में हारून यूसुफ और देवेंद्र यादव को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव और एनएसयूआई के चुनाव की जिम्मेदारी दी गई है. वहीं, लिलोठिया को उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगमों के साथ यूथ कांग्रेस की जिम्मेदारी दी गई है. पहले तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के पास एक-एक निगम की जिम्मेदारी थी.
ब्लॉक अध्यक्षों से शुरु हुआ झगड़ा
आपको बता दें कि ये झगड़ा तब शुरू हुआ जब दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित ने पिछले दिनों सभी ब्लॉक कमिटियों को भंग कर दिया था लेकिन प्रभारी पी सी चाको इस निर्णय पर रोक लगा दी थी. इसके बाद एक बार शीला ने जिला एवं ब्लॉक स्तर पर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जिसे भी चाको ने रोक दिया. इसके पीछे चाको का तर्क है कि शीला दीक्षित ने इन फसलों से पहले प्रभारी की अनुमति नहीं ली. वहीं शीला कैम्प का दावा है कि प्रदेश अध्यक्ष को ऐसे फैसले लेने का अधिकार है. इन सब के बीच दिल्ली कांग्रेस के तीनों कार्यकारी अध्यक्ष ने शीला दीक्षित को चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया वो 'एकतरफा फैसले' ले रही हैं. दिल्ली कांग्रेस के कई नेताओं ने भी शीला दीक्षित पर मनमाने तरीके से काम करने का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी को चिट्ठी लिखी थी.
चाको की शीला को नसीहत
चाको ने शीला को मंगलवार को लिखी चिट्ठी में इस बात को लेकर अपनी 'नाराजगी' जताई है कि उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है और दिल्ली कांग्रेस में कुछ 'प्रवक्ता' प्रभारी के फैसलों को लेकर सवाल उठा रहे हैं. चाको ने शीला को आगाह किया है कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर 'अनुशासन' बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है. इन वजहों से पी सी चाको शीला दीक्षित को चार बार चिट्ठी लिख चुके हैं. लेकिन उनकी चिट्ठियों का नो तो कोई असर हो रहा है ना किसी भी तरह का जवाब दिया जा रहा है. दूसरी तरफ शीला कैम्प के नेता प्रदेश कार्यालय में लगातार नए नियुक्त पर्यवेक्षकों के साथ बैठक कर रहे हैं.
शीला दीक्षित की सेहत पर बयानबाजी
पी सी चाको ने अपनी चिट्ठी में शीला दीक्षित की खराब सेहत का जिक्र किया है. दरअसल पिछले दिनों शीला दीक्षित खराब सेहत की वजह से करीब एक हफ्ते तक अस्पताल में भर्ती थीं. इस दौरान उनकी कई अहम फैसले हो गए और इसको लेकर सवाल उठे कि शीला की गैरमौजूदगी में बड़े फैसले कैसे हो रहे हैं? हालांकि अब शीला दीक्षित घर लौट आई हैं लेकिन वो अभी मीडिया से बात नहीं कर रही हैं.
दिल्ली कांग्रेस के प्रवक्ता जितेंद्र कोचर ने एबीपी न्यूज से कहा कि शीला दीक्षित अब पूरी तरह स्वस्थ हैं. चाको पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि बीमार कोई भी भी हो सकता लेकिन किसी की बीमारी को वही लोग मुद्दा बनाते हैं जिनकी मानसिकता बीमार होती है. उन्होंने कहा कि शीला दीक्षित कांग्रेस को मजबूत बनाने का काम कर रही हैं. कार्यकारी अध्यक्षों में काम के बंटवारे पर कोचर ने कहा कि आने वाले दिनों में डूसू के चुनाव हैं. इसलिए चारों सीटें जीतने की जिम्मेदारी दो कार्यकारी अध्यक्षों को दी गई है.
शीला गुट ने राहुल से मिलने का समय मांगा
विवाद पर शीला कैम्प के नेता और कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया ने कहा कि 'मैं इस विवाद में पड़ना नहीं चाहता. शीला दीक्षित प्रदेश अध्यक्ष हैं. उनके द्वारा दिया गया काम ही मेरी प्राथमिकता है'. दूसरी तरफ तत्काल कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए हारून यूसुफ ने कहा कि 'आने वाले दिनों में इस पर बात करेंगे'. सूत्रों के मुताबिक शीला गुट के नेताओं ने राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा है. जाहिर है दिल्ली कांग्रेस का 'गृह-युद्ध' अभी लंबा चलेगा. इसका सबसे बड़ा खामियाजा खुद कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा क्योंकि दिल्ली में छः महीनों के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं.
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