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बंगाल कांग्रेस 'दो फाड़' के कगार पर: जानिए क्या है संकट और क्या कदम उठा रहे हैं राहुल गांधी?

बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ममता के साथ जाने के सख्त खिलाफ हैं. हालांकि उन्होंने यही कहा कि आलाकमान का निर्णय सबको मंजूर होगा. लेकिन वो इससे पहले कई बार लेफ्ट के साथ गठबंधन की अपनी इच्छा बता चुके हैं.

नई दिल्ली: संकट के दौर से गुजर रही बंगाल कांग्रेस को उबारने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में राज्य इकाई के सभी नेताओं के साथ तीन घंटे तक माथापच्ची की. दरअसल इस संकट के पीछे है एक सवाल कि पार्टी आने वाले चुनाव में ममता के साथ गठबंधन करे या लेफ्ट के साथ? इस सवाल ने पार्टी में दो फाड़ जैसी स्थिति पैदा कर दी है.

आने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ देश भर में विपक्षी एकता की कोशिश में जुटी कांग्रेस को बंगाल में खुद की पार्टी यूनिट की एकता बरकरार रखने में मुश्किल आ रही है. दरअसल बंगाल में कई कांग्रेसी विधायक और कुछ सांसद पार्टी आलाकमान पर दबाव बना रहे हैं कि वो ममता बनर्जी के साथ मिल कर चुनाव लड़ें जबकि प्रदेश अध्यक्ष समेत कई नेता इस राय के सख्त खिलाफ हैं. इसी वजह से पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में बंगाल कांग्रेस के सभी अहम नेताओं से मुलाकात की. बैठक के बाद भी नेताओं के अलग-अलग सुर ही सुनने को मिले.

कांग्रेस वॉर रूम के नाम से मशहूर 15 गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर राहुल ने तीन घंटे नेताओं से एक-एक कर मुलाकात की. मीटिंग में शामिल होने कांग्रेस के ज्यादातर विधायक, सांसद और बंगाल कांग्रेस के सभी अहम नेता पहुंचे थे. बैठक में राज्य के नए प्रभारी गौरव गोगोई भी मौजूद रहे. राहुल ने सभी नेताओं से राज्य की राजनीतिक स्थिति के बारे में पूछा और इस बात पर भी मन टटोला कि अगले चुनाव में पार्टी किसके साथ हाथ मिलाए? नेताओं ने अपने मन की बात राहुल को बताई.

दरअसल कांग्रेस नेताओं के तृणमूल समर्थक गुट में ज्यादातर मुस्लिम नेता हैं. इनकी राय है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और टीएमसी के बीच सीधी टक्कर होगी और जमकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होगा. ऐसे में टीएमसी के खिलाफ लड़ने से ना केवल बीजेपी विरोधी वोट बंटेगा बल्कि कांग्रेस नुकसान में रहेगी. इसी खेमे के विधायक और पार्टी के राष्ट्रीय सचिव मोइनुल हक ने मीटिंग से निकल कर फिर दुहराया कि एक साथ चुनाव लड़ना कांग्रेस और टीएमसी दोनों के लिए फायदे का सौदा होगा. ऐसा ना कर अगर पार्टी लेफ्ट यानी सीपीएम के साथ लड़ी तो ये आत्मघाती होगा.

इस राय के कांग्रेस नेता खुल कर ये भी कह रहे हैं कि कांग्रेस ने टीएमसी से गठबंधन नहीं किया तो ये लोग खुद टीएमसी में शामिल हो जाएंगे. 21 जुलाई को तृणमूल की बड़ी रैली है. संभावना जताई जा रही है कि कई कांग्रेस नेता इस रैली में टीएमसी जॉइन करने का एलान कर सकते हैं. हालांकि मोइनुल हक ने कहा कि वो राहुल गांधी के फैसले का इंतजार करेंगे. लेकिन ये भी अहम बात है की बैठक में बागी नेताओं में से एक सांसद शामिल नहीं हुई. दर्जन भर से ज्यादा कांग्रेस विधायक पहले ही परोक्ष रूप से टीएमसी का दामन थाम चुके हैं.

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वहीं बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ममता के साथ जाने के सख्त खिलाफ हैं. हालांकि उन्होंने यही कहा कि आलाकमान का निर्णय सबको मंजूर होगा. लेकिन वो इससे पहले कई बार लेफ्ट के साथ गठबंधन की अपनी इच्छा बता चुके हैं. मीटिंग के बाद दीपा दासमुंशी ने कहा कि किसके साथ जाएंगे ये बाद का सवाल है पहले कांग्रेस को अपने पैर मजबूती से जमाने होंगे. लेकिन वो भी हालिया पंचायत चुनाव में हुई हिंसा का जिक्र करना नहीं भूली. जानकार बताते हैं कि तृणमूल के साथ जाने पर कांग्रेस को चुनावी लाभ तो मिलेगा लेकिन संगठन का काफी नुकसान होगा कि क्योंकि बड़ी संख्या में कार्यकर्ता टूट सकते हैं.

कांग्रेस ने 2011 का विधानसभा चुनाव तृणमूल के साथ लड़ा था तो 2016 का विधानसभा चुनाव लेफ्ट के साथ. राज्य में बीजेपी के तेजी से उभरने से कांग्रेस के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. राहुल ने टीएमसी के साथ नहीं जाने का फैसला किया तो नेता टूटेंगे, गठबंधन किया तो संगठन को नुकसान होगा और कार्यकर्ता टूटेंगे. राहुल के सामने एक बेहद कठिन फैसले की चुनौती है.

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