कानूनी दांवपेंच से बाहर हो मरने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट में याचिका; भारत में इच्छामृत्यु किसे और कब दी जाती है?
इथनेशिया ग्रीक का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इच्छा से मृत्यु. भारत में 2018 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी वैध माना गया. मगर इसकी जटिलताओं की वजह से मरीज आसानी से मर भी नहीं पाते हैं.
जीवन जीने के साथ ही भारत में मरने का अधिकार भी मौलिक अधिकार में शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देते हुए 2018 में एक फैसल सुनाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मरने का अधिकार कानूनी दांवपेंच में फंसा हुआ है.
इच्छामृत्यु को सरल और सहज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता अरविंद दत्तार और प्रशांत भूषण का कहना है कि मरणासन्न की स्थिति में जटिल प्रक्रियाओं को पूरा कर पाना असंभव है, जिस वजह से लोग गरीमापूर्ण तरीके से मर भी नहीं पा रहे हैं.
सुनवाई में क्या हुआ, 2 फैक्टस...
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्धा बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संवैधानिक बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इसे सहज बनाने की जरूरत है. सरकार चाहे तो इस पर रिसर्च कर एक कानून बना सकती है. हम इस मामले में ज्यादा दखल नहीं दे सकते हैं.
इच्छामृत्यु क्या है, कितने प्रकार के होते हैं?
17वीं शताब्दी में अंग्रेजी दार्शनिक फ्रांसिसि बेकन ने यूथेनेशिया शब्द को विस्तार दिया. यह एक ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ होता है इच्छा से मृत्यु. इच्छामृत्यु के बारे में जानकारी वैदिक काल से ही मिलती है. उस वक्त ऋषि मुनि इच्छा से शरीर त्याग करते थे. भारत में इसकी मांग सालों से उठती रही है.
(Source- AFP)
दरअसल, रोगी जब किसी गंभीर बीमारी की वजह से दर्द को सहन नहीं कर पाता है, तो वो इच्छामृत्यु की मांग करता है. कानूनी तौर पर इच्छामृत्यु 2 तरीके से दी जाती है.
1. निष्क्रिय इच्छामृत्यु- इसमें गंभीर रोग से पीड़ित इलाजरत मरीज का डॉक्टर इलाज रोक देते हैं. उदाहरण के लिए कोई मरीज वेंटिलेटर पर है और उसे इच्छामृत्यु दी जानी है, तो डॉक्टर उसका वेंटिलेटर हटा देते हैं.
2. सक्रिय इच्छामृत्यु- इच्छामृत्यु मांगने वाले मरीज को जहरीला इंजेक्शन लगाकर मौत दी जाती है. डॉक्टरों की निगरानी में इसे पूरा किया जाता है.
भारत में अभी इच्छामृत्यु की प्रक्रिया क्या है?
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी अधिकार दिया गया है. इसमें इच्छामृत्यु मांगने वाले व्यक्ति का वसीयतनामा कराया जाता है. इसे लीविंग विल भी कहा जाता है. इसमें इच्छामृत्यु मांगने वाले व्यक्ति से संबंधित 2 गवाह के भी हस्ताक्षर कराए जाते हैं. इसकी 3 प्रक्रिया है.
1. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट- इच्छामृत्यु मांगने के बाद संबंधित व्यक्ति की मेडिकल जांच कराई जाती है. इसके लिए एक मेडिकल बोर्ड बनाया जाता है. विशेषज्ञ डॉक्टर बीमारी की गंभीरता और मरीज के एग्जिस्टेंस लेवल को चेक करता है. इसके बाद एक रिपोर्ट बनाई जाती है.
2. कलेक्टर और कमेटी- मेडिकल बोर्ड की सिफारिश में अगर इच्छामृत्यु की होती है, तो फाइल संबंधित जिला कलेक्टर को भेजा जाता है. जिला कलेक्टर उस फाइल को देखने और सत्यापित करने के लिए एक पैनल या कमेटी बनाती है. कमेटी मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपती है.
3. न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति- दो चरणों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज की रिपोर्ट प्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है. वहां गवाह सत्यापन के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट इच्छामृत्यु की अनुमति देते हैं. तीनों प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज को इच्छामृत्यु देने का प्रावधान है.
किसे दी जा सकती है इच्छामृत्यु?
1. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कोमा में रहे मरीज, जिसके बचने की संभावनाएं शून्य है. उसे इच्छामृत्यु दी जा सकती है. इसके लिए प्रावधान किया गया है.
2. एड्स, कैंसर जैसे गंभीर बीमारी से त्रस्त मरीज, जिनके बचने की संभावनाएं नहीं है, उसे भी इच्छामृत्यु दी जा सकती है. हालांकि कोमा में जाने के बाद ही मेडिकल बोर्ड फैसला करता है.
3. अरूणा शानबाग केस के बाद भारत में पहली बार इच्छामृत्यु पर बहस छिड़ा. शानबाग रेप की शिकार महिला थीं, जो 42 साल तक कोमा में रहीं.
सही या गलत, सालों से चल रही बहस
इच्छा मृत्यु सही या गलत है, इस पर सालों से बहस चल रही है. धार्मिक गुरुओं ने इसे सुसाइड कहकर धर्म के खिलाफ बताया. वहीं इच्छमृत्यु के कानूनी रूप देने पर खतरा भी बढ़ गया है. इसलिए केंद्र ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है. केंद्र पिछले 5 सालों से इस पर कानून बनाने की बात कह रही है.
मुश्किल है मरने के अधिकार को आसान करना
मरने के अधिकार को सहज बनाना भी आसान नहीं है. इसके कई खतरे हैं, जिसमें सबसे पहला गलत तरीके से किसी को इच्छामृत्यु दे देना शामिल है.
न्यायिक मजिस्ट्रेट के नहीं होने से किसी भी यूथेनेशिया की मांग करने वाले को बिना जांच के भी इच्छामृत्यु दी जा सकती है, जिससे मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा. इतना ही नहीं, सुसाइड केस को भी इच्छामृत्यु बताने का खतरा है.
इच्छामृत्यु कहां-कहां कानूनी?
2002 में नीदरलैंड ने इच्छामृत्यु को कानूनी रूप से वैध घोषित किया. वर्तमान में बेल्जियम और लक्ज़मबर्ग में इच्छामृत्यु की अनुमति है. इसके अलावा कोलंबिया में भी इच्छामृत्यु का कानून मौजूद है.
बात अमेरिका की करे तो यहां पर कुछ राज्यों जैसे- ओरेगन, वॉशिंगटन, वेरमॉन्ट, मोंटाना, कैलीफॉर्निया, कोलोराडो और हवाई में इसकी इजाजत है.
वहीं ब्रिटेन, नॉर्वे, स्पेन, रूस, चीन, फ्रांस और इटली जैसे कई बड़े देशों में इच्छामृत्यु गैर-कानूनी घोषित है और यहां इसे वैध करने की मांग लंबे समय से जारी है.
बेल्जियम-नीदरलैंड में नाबालिग को भी अधिकार
दुनिया में 2 देश नीदरलैंड और बेल्जियम में नाबालिग को भी कानूनी तौर पर इच्छामृत्यु का अधिकार है. यहां 18 साल से कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता के हस्ताक्षर से इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकते हैं.
भारत में 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को ही इच्छामृत्यु का अधिकार प्राप्त है.