राजस्थान में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस- बीजेपी सहित सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है. इसी क्रम में राज्य के सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश की जनता को बड़ा तोहफा दिया है. दरअसल बीजेपी के तमाम विरोध के बीच राजस्थान विधानसभा में राइट टू हेल्थ (स्वास्थ्य के अधिकार) बिल बीते मंगलवार को पास हो गया. 


यह बिल अशोक गहलोत सरकार का महत्वाकांक्षी बिल है जिसके तहत राज्य के किसी भी मरीज के पास पैसे नहीं होने पर उसके इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता.


इस ऐलान के साथ ही राजस्थान राइट टू हेल्थ बिल पारित करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है. इस राज्य के किसी भी निवासी को सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल इलाज करने से अब मना नहीं कर सकेंगे. 


हालांकि निजी डॉक्टर इस कानून को लेकर राज्य सरकार से उलझे हुए हैं. उनका कहना है कि इस कानून के कारण उनके कामकाज में नौकरशाही का दखल बढ़ेगा. ऐसे में सवाल उठता कि तमाम अड़चनों के बीच इस बिल को पास करने का फायदा क्या कांग्रेस को आने वाले चुनाव में मिल सकता है. क्या कांग्रेस का ये दांव चुनाव में  'नई लहर' की वजह बनेगा?  


पहले जानते हैं कि आखिर ये बिल में है क्या, क्यों हो रहा है विरोध 


मुफ्त इलाज: राइट टू हेल्थ बिल के अनुसार राज्य का कोई भी निवासी आपातकाल के दौरान किसी भी निजी अस्पतालों या सरकारी अस्पताल में निशुल्क इलाज करवा सकता है. वहीं इस नियम पर प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इमरजेंसी कब और कैसे तय की जाएगी इसका कोई दायरा तय नहीं किया गया है. ऐसे में कोई भी मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर मुफ्त में इलाज करवा सकता है. 


एंबुलेंस का खर्चा: इस बिल में एक प्रावधान ये भी कि अगर अस्पताल में इलाज करवा रहा मरीज किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है और आगे के इलाज के लिए इसे दूसरे अस्पताल रेफर करना है तो ऐसी स्थिति में एंबुलेंस का व्यवस्था करना अनिवार्य है. इस प्रावधान पर आपत्ति जताते हुए प्राइवेट डॉक्टरों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो एंबुलेंस के आने जाने का खर्चा कौन उठाएगा और निजी अस्पताल उठाती है तो कितना उठा पाएगी. 


वाहवाही लूटने का आरोप: इस बिल में कहा गया है कि सरकारी योजना के अनुसार प्राइवेट अस्पतालों को भी सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है. ऐसे में बिल का विरोध कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि राज्य सरकार चुनाव को नजदीक देख प्राइवेट अस्पताल पर सरकारी योजनाएं थोप रही है. 


इलाज करने से मना करने पर क्या होगा 


राज्य सरकार के अनुसार इस कानून को सभी सरकारी और निजी अस्पताल को मानना होगा. अगर राइट टू हेल्थ का उल्लंघन होता है और किसी भी अस्पताल में इलाज से मना किया जाता है तो उस अस्पताल को 10 से 25 हजार तक का जुर्माना देना पड़ सकता है. 


नियम के अनुसार पहली बार इलाज से मना करने पर जुर्माना 10 हजार होगा और अगर दूसरी बार इसी अस्पताल से मना किया जाता है तो 25 हजार का जुर्माना लगाया जा सकता है. इस बिल की शिकायत सुनने के लिए जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य स्तर पर राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण बनेगा. बिल के उल्लंघन से जुड़े मामले में प्राधिकरण के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी.


बिल को लेकर सत्ता और विपक्ष में जमकर नोकझोंक 


इस बिल पर मुहर लगाने से पहले सदन में इसे लेकर सत्ता और विपक्ष में जमकर बहस हुई. स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने अपना तर्क रखते हुए कहा कि राज्य में ऐसे कई बड़े अस्पताल हैं जहां इलाज के दौरान किसी की मौत होने पर पूरे पैसे दिए बगैर पार्थिव शरीर नहीं ले जाने दिया जाता. ऐसे में कोई गरीब आदमी कहां से लाखों रुपए लाएगा? जबकि बीजेपी इस बिल को लाने के विरोध में थे. 


राज्य में क्या है कांग्रेस का हाल 


गहलोत सरकार के बनने के बाद से इस राज्य में पिछले 4 साल में कई वजहों के चलते 9 उपचुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस को 66 प्रतिशत सफलता मिली है. जिसका मतलब है कि 9 उपचुनावों में से 6 उपचुनावों के परिणाम को देखें तो कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है.  इन उपचुनावों में बीजेपी ने अन्य दलों के प्रत्याशियों को हरा दिया है. इन उपचुनावों के परिणाम के दम पर ही अशोक गहलोत दावा करते रहे हैं कि राज्य में सरकार विरोधी कोई लहर नहीं है.


इस बिल को पास करने से आम लोगों में होगा फायदा 


नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की कुल आबादी में 29.46 फीसदी प्रदेशवासियों को गरीबी में गुजर बसर करना पड़ रहा है. वहीं इस राज्य के शहरी क्षेत्र में 11.52 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 35.22 प्रतिशत आबादी गरीब है. ऐसे में राज्य की लगभग 29.46 फीसदी जनता कांग्रेस के इस बिल को लाने के फैसले से खुश होंगे. जाहिर है कि गरीबी के कारण उनके पास महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं होंगे और कांग्रेस का ये बिल उनके लिए काफी मददगार साबित होगा. ऐसे में ये आबादी कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में चुन सकती है. 


इस रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा गरीबी में बिहार में यानी 51.91 प्रतिशत, झारखंड में 42.16 प्रतिशत और तीसरे स्थान पर यूपी  है जहां कुल आबादी के 37.79 प्रतिशत लोग गरीबी में जी रहे हैं. वहीं राजस्थान को 8वां स्थान प्राप्त है. 


राजस्थान में शहरी क्षेत्र में 11.52 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 35.22 प्रतिशत आबादी गरीब है. उदयपुर में भी लगभग आधी आबादी गरीब है. और यह प्रदेश में 5वें स्थान पर है. इसके अलावा बाड़मेर की 56.13 फीसदी जनसंख्या गरीब है.


क्या है राजस्थान में विधानसभा का गणित?


मौजूदा समय में इस राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं जिस पर साल 2023 के अंत तक चुनाव होने वाले हैं. यानी राज्य में बहुमत का आंकड़ा 101 विधायकों का है. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त कांग्रेस ने बीजेपी को करारी मात दी थी. 


इस चुनाव में कांग्रेस 99 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थी तो वहीं बीजेपी को 73 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. इसके अलावा बीएसपी को 6, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी को 2, राष्ट्रीय लोक दल को एक, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 3 और निर्दलीयों को 13 सीटों पर जीत मिली थी. 


मूलभूत सुविधाओं पर जोर देने की कोशिश में कांग्रेस


राइट टू हेल्थ बिल के पास करने के साथ ही कांग्रेस जनता के बीच ये संदेश देना चाहती है कि वो इस चुनाव में जनता के मूलभूत सुविधाओं पर जोर दे रहे हैं. और ये बिल इसकी शुरुआत है. 


इसके अलावा फरवरी में पेश किए बजट में पार्टी ने देश के युवाओं, महिलाओं, किसानों और सरकारी कर्मचारियों के लिए तमाम घोषणाएं की थी. कांग्रेस विधायक पुष्पेंद्र भारद्वाज ने बजट पर कहा था कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार रिपीट होती है तो युवाओं, छात्रों, महिलाओं और आम आदमी के लिए कई राहत भरे घोषनाएं किए जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस बजट ने राजस्थान की जनता की झोली में खुशियां भर दी हैं. चिरंजीवी योजना की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 25 लाख कर दी गई है. दुर्घटना बीमा योजना 5 से 10 लाख की गयी है.


राजस्थान में मतदाताओं की स्थिति


राजस्थान में वर्तमान में कुल 5 करोड़ 2 लाख 41 हज़ार 348 वोटर प्रदेश में हैं. राज्य में महिला वोटर्स की बात करें तो इसकी संख्या 2 करोड़ 40 लाख 11 हज़ार 207 है. जबकि पुरुष वोटरों की संख्या 2 करोड़ 62 लाख 30 हजार 141 है. ऐसे में अगर किसी भी पार्टी को आधी आबादी का भी साथ मिलता है तो विधानसभा चुनाव में उस पार्टी को बड़ी बढ़त मिल सकती है. 


यही कारण है कि राहुल गांधी ने अपने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महिलाओं के लिए विशेष तौर पर एक दिन समर्पित कर देने की रणनीति बनाई थी. माना जा रहा है महिलाओं की भारत जोड़ो यात्रा में भागीदारी कांग्रेस को मजबूत करने में भूमिका निभा सकती है. 


तैयारी में जुटी सभी पार्टियां 


साल 2023 के अंत में होने वाला विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहे हैं. इसके साथ ही राजस्थान में राजनीतिक पार्टियों के साथ साथ कई संगठन भी सक्रिय होने लगे हैं. सभी पार्टियों के नेता भी अपने समाज के कार्यक्रमों में पहुंचकर उनसे जुड़ने और अपनी पार्टी के लिए वोट अपील करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.  


बीते कुछ सप्ताह को देखें तो राज्य में जाट और ब्राह्मण समाज ने बड़ी सभाएं कर अपनी ताकत दिखाई है. एक तरफ 5 मार्च को जाट महाकुंभ आयोजित किया गया तो 19 मार्च को जयपुर में ही ब्राह्मण महापंचायत हुई. अब अगले महीने यानी 2 अप्रैल को राजपूतों की बड़ी पंचायत भी होने जा रही है.


बीजेपी का एक्शन प्लान


वहीं भाजपा ने आने वाले चुनाव को लेकर एक्शन प्लान पर काम शुरू कर दिया है. इस बार राजस्थान में जीत पाने के लिए पार्टी छोटे-छोटे प्लान बनाए हैं. पार्टी का सबसे ज्यादा ध्यान ओवरऑल विधानसभा सीट के बजाय एक एक बूथ को मजबूत करने पर है. पार्टी ने सभी बूथ मैनेजमेंट के लिए लगभग 10 लाख कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर सकती है.