कश्मीरः उत्तराखंड में आयी भीषण बाढ़ और ग्लेशियर के टूटने के बाद पहाड़ी इलाकों में लोगों के बीच डर बैठ गया है और अब मौसम में आये बदलाव से यह डर और ज्यादा बढ़ गया है. कश्मीर घाटी में पिछेल 48 घंटो में मौसम में बदलाव के कारण अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी हो गयी है जिस से बर्फ के पिघलने और हिमस्खलन का अलर्ट जारी हो गया है. प्रशासन की ओर से लोगो को भी सतर्क रहने को कहा गया है. एक हफ्ते पहले जहां श्रीनगर में हर तरफ बर्फ ही बर्फ थी वहीं कुछ दिनों के बीच ही यह बर्फ पिघल चुकी है.


तापमान में हुई भारी बढ़ोतरी के कारण अधिकतम तापमान में चार-पांच डिग्री तक बढ़ोतरी हुई इस कारण समय से पहले ही गर्मी का एहसास होने लगा है. पिछले हफ्ते जहां तापमान माइनस 8 के आस पास था वहीं आज श्रीनगर में अधिकतम तापमान 14 के पार चला गया. कुपवाड़ा में तो पारा 18 तक जा पहुंचा है. इस कारण पहाड़ी इलाकों में हिमस्खलन का अलर्ट जारी किया गया है.


श्रीनगर सिथित मौसम विभाग के निदेशक डॉ मुख़्तार अहमद के अनुसार अभी तक हिमस्खलन का अलर्ट जारी है और ऐसा नहीं है की उत्तराखंड जैसी घटना हर जगह हो लकिन मौसम में आये बदलाव के चलते हिमस्खलन का खतरा है.


इस बार सर्दियों में कश्मीर घाटी में बारी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड ने तीन दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया. पिछले हफ्ते की शुरुआत में जहां अधिकतम इलाकों में बर्फ गिरी रही थी वहीं एक हफ्ते के भीतर इसमें एक दम बदलाव हो गया.


श्रीनगर के रहने वाले पत्रकार हाय जावेद के अनुसार उत्तराखंड की घटना के बाद लोगो में काफी डर है और इस से पहले भी यहां के लोग प्राकृतिक आपदा का असर को झेल चुके हैं चाहे सर्दी में हुई भीषण बर्फ़बारी या 2014 में यी बाढ़.


जम्मू-कश्मीर के साथ साथ लद्दाख में भी उत्तराखंड जैसी घटना का खतरा इस बार काफी ज्यादा है. कई दशकों के बाद यहां पर भी बारी बर्फ़बारी और कड़ाके की ठंड पड़ी. अब एक साथ काफी गर्मी हो होने लगी है. जिस के चलते लोगो में डर है. लद्दाख में 2010 में बादल फटने से भीषण तबाही हुई थी.


खतरा ऐसे इलाकों में है जहां इंसान की नज़र नहीं पड़ती यह है ऊंचे पहाडों के बीच बने कुदरती झील और ग्लेशियर. तापमान में आयी बढ़ोतरी के बाद इन झीलों में तेज़ी से पानी भरने लगता है. जम्मू-कश्मीर में ऐसे झीलों की संख्या 1200 के करीब है.


विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड की त्रासदी जैसा कोई खतरा कश्मीर घाटी में नहीं है लेकिन हिमस्खलन और फ्लैश फ्लड का खतरा हमेशा ही पहाड़ी इलाकों में बना रहता है. इसलिए ऐसे पहाड़ी नदी नालों के आसपास रहने वाले लोगो में थोड़ा डर बढ़ गया है.


इसलिए प्रशासन ने भी किसी भी तरह के हालात से निपटने के लिए कमर कास ली है. इस काम में स्थानीय प्रशासन की मदद के लिए सेना के जवानों को भी तैयार रहने को कहा गया है. इसके लिए सेना के विशेष ट्रेनिंग स्कूल में जवानो को फिर से ट्रेनिंग दी जा रही है और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है.


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