भारत दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बुधवार को नई दिल्ली में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस बात की जानकारी दी है. अमेरिका और चीन के बीच पहले से चली आ रही तनातनी के बीच ब्लिंकन का यह ताजा कदम बीजिंग के गुस्से को और भड़का सकता है.
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि ब्लिंकन ने न्योगदुप डोंगचुंग से मुलाकात की, जो सेंट्रल तिब्बतन एमिनिस्ट्रेशन (सीएटी) का प्रतिनिधि के तौर पर कर रहे हैं, जिसे निर्वासित तिब्बत सरकार से भी जाना जाता है.
चीन के सैनिकों ने साल 1950 में तिब्बत पर अपना कब्जा कर लिया था और इसे बीजिंग ने पीसफुल लिबरेशन करार दिया था. इसके बाद चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा साल 1959 में भारत भाग गए थे और तब से वह निर्वासन में हैं.
चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड की बढ़ती आलोचनाओं के बीच, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से हाल के महीनों में सीटीए और तिब्बती वकालत समूहों को अंतरराष्ट्रीय समर्थन में बढ़ावा मिला है.
नवंबर में निर्वासित तिब्बत सरकार के पूर्व अध्यक्ष लोबसांग सेनगेय ने व्हाइट हाउस का दौरा किया था दो छह दशकों में पहला ऐसा दौरा था. इसके एक महीने के बाद यूएस कांग्रेस ने तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम पास किया था, जिसमें दलाई लामा के उत्तराधिकारियों को चुनने के लिए तिब्बतियों के अधिकार और तिब्बत की राजधानी ल्हासा में एक अमेरिकी वाणिज्य दूतावास की स्थापना की मांग करता है.
वाशिंगटन में साल 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ दलाई लामा के साथ हुआ मुलाकात के बाद ब्लिंकन के साथ डोंगचुंग की बैठक तिब्बती नेताओं के लिए काफी अहमियत रखता है. चीन के विदेश मंत्रालय ने इस बारे में पूछे जाने पर फौरन किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. बीजिंग ने कहा कि तिब्बत चीन का हिस्सा है और दलाई लामा का खतरनाक अलगाववादी करार दिया.
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