EAC-PM के संविधान वाले आर्टिकल पर बढ़ा विवाद, विपक्ष ने पूछा- 'क्या ये सब प्रधानमंत्री की मर्जी से हो रहा है', बिबेक देबरॉय ने दी सफाई
बिबेक देबरॉय ने आर्टिकल में लिखा था कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत शासन अधिनियम पर आधारित है. हमें ये विचार करना होगा कि भारत को 2047 के लिए किस संविधान की जरूरत है.
Bibek Debroy Article Row: पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष (EAC-PM) बिबेक देबरॉय के हालिया आर्टिकल के बाद विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार को निशाने पर ले लिया है. कांग्रेस (Congress) ने आरोप लगाया कि बिबेक देबरॉय ने संविधान (Constitution) को बदले जाने पर जोर दिया है. जबकि आरजेडी (RJD) की तरफ से भी इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी गई है. विवाद बढ़ने पर गुरुवार (17 अगस्त) को बिबेक देबरॉय ने भी सफाई दी.
बिबेक देबरॉय ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा कि पहली बात तो यह है कि जब भी कोई कॉलम लिखता है, तो हर कॉलम में हमेशा यह चेतावनी होती है कि यह कॉलम लेखक के निजी विचारों को दर्शाता है. ये उस संगठन के विचार नहीं होते जिससे व्यक्ति जुड़ा हुआ है. दुर्भाग्य से, इस मामले में किसी ने इन विचारों का श्रेय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद को दिया है.
बिबेक देबरॉय ने दी सफाई
उन्होंने आगे कहा कि जब भी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद सार्वजनिक डोमेन में अपने विचार रखती है, तो वह उन्हें वेबसाइट पर डालती है और अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट भी करती है. इस विशेष मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. ये पहली बार नहीं है कि मैंने ऐसे मुद्दे पर लिखा है. मैंने पहले भी ऐसे मुद्दे पर इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए लिखा है.
आर्टिकल में बिबेक देबरॉय ने क्या लिखा?
दरअसल, बिबेक देबरॉय ने आर्टिकल में लिखा था कि 1973 से हमें बताया जा रहा है कि हमारे लोकतंत्र की इच्छा चाहे कुछ भी हो, संसद के जरिए बेसिक ढांचा नहीं बदला जा सकता है. जहां तक मैं समझता हूं कि 1973 का फैसला मौजूदा संविधान में लागू होता है, नए संविधान में नहीं लागू होगा. संविधान जिसे हमने 1950 में अपनाया था, वो अब वैसा नहीं रह गया है. इसमें संशोधन किए गए और संशोधन भी हमेशा अच्छे काम के लिए ही नहीं हुए.
"2047 में भारत को कैसे संविधान की जरूरत है?"
बिबेक देबरॉय ने लिखा था कि हमें बताया जाता रहा है कि इसका बेसिक स्ट्रक्चर नहीं बदला जा सकता. अगर इसके खिलाफ कुछ होगा, तो अदालतें उसकी व्याख्या करेंगी.लिखित संविधानों पर यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो का रिसर्च बताता है कि इसकी औसत आयु सिर्फ 17 साल रही है. ये 2023 है, 1950 के बाद 73 साल बीत चुके हैं. हमारा संविधान काफी हद तक गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पर आधारित है, इस तरह ये भी उपनिवेश के दिनों से जुड़ा है. हमें इस बात पर विचार करना होगा कि 2047 में भारत को कैसे संविधान की जरूरत है.
लालू प्रसाद यादव ने पीएम पर साधा निशाना
उनके इस लेख के बाद राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने इसे संविधान पर हमला करार दिया. लालू यादव ने गुरुवार (17 अगस्त) को ट्वीट किया कि क्या ये सब पीएम की मर्जी से हो रहा है. संवैधानिक संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है. अब तो संविधान पर सीधा हमला हो रहा है.
मनोज झा ने बीजेपी-आरएसएस को घेरा
आरजेडी नेता और प्रोफेसर मनोज झा ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि बिबेक देबरॉय ने ये खुद नहीं बोला बल्कि उनकी जुबान से बुलवाया गया है. इसके पीछे के मंसूबे भी बिल्कुल साफ हैं. उनके इस बयान ने बीजेपी, आरएसएस की घृणित सोच को फिर सामने ला दिया है. भारत का संविधान सर्वश्रेष्ठ संविधान है. ये स्वीकार नहीं है. इनका तरीका है कि ठहरे हुए पानी में कंकड़ डालो और अगर लहर पैदा कर रही तो और डालो, और फिर कहो कि अरे ये मांग उठने लगी है.
"संविधान को बदलने का संकेत दिया"
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बिबेक देबरॉय की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए मंगलवार को कहा कि ये हमेशा संघ परिवार का एजेंडा रहा है. सावधान रहें. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को बदलने का संकेत दिया है, जिसके निर्माता डॉ. आंबेडकर थे. वे चाहते हैं कि देश एक नए संविधान को अंगीकार करे.
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