रोडरेज मामले में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की सज़ा बढ़ाने से जुड़ी एक और अर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांगा है. नई अर्ज़ी में मामले का दायरा बढ़ाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि जिस घटना में किसी की मौत हुई हो, उसमें सिर्फ मारपीट की धारा लगाना गलत है. कोर्ट ने सिद्धू से जवाब मांगते हुए सुनवाई 2 हफ्ते टाल दी है.
क्या है मामला?
पंजाब के पटियाला में 1988 में हुई इस घटना में गुरनाम सिंह नाम के शख्स की मौत हो गई थी. सिद्धू और उनके दोस्त कंवर सिंह संधू को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुए 3-3 साल की सजा दी थी. लेकिन जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने संधू को पूरी तरह बरी कर दिया. जबकि सिद्धू को सिर्फ मारपीट का दोषी माना और सिर्फ 1 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा दी.
इसके खिलाफ गुरनाम सिंह के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. परिवार ने फैसले पर पुनर्विचार की मांग की. 13 सितंबर 2018 को कोर्ट ने याचिका को विचार के लिए स्वीकार किया. लेकिन तब कोर्ट यह साफ कर दिया था कि वह सिर्फ सजा बढ़ाने की मांग पर विचार करेगा. इसका मतलब यह था कि सिद्धू पर गैर इरादतन हत्या के आरोप में दोबारा सुनवाई नहीं होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उन्हें सिर्फ मारपीट के मामलों में लगने वाली IPC की धारा 323 के तहत दोषी माना था. इसी धारा में सजा बढ़ाने की मांग पर विचार होगा. इस धारा में अधिकतम 1 साल तक की कैद का प्रावधान है. लेकिन, सिद्धू को सिर्फ जुर्माने पर छोड़ दिया गया था.
संगीन धारा लगाने की मांग
आज मामला जस्टिस ए एम खानविलकर और संजय किशन कौल की विशेष बेंच में लगा. याचिकाकर्ता जसविंदर सिंह (अब उनकी मृत्यु हो चुकी है) के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने जजों के सामने 2 पुराने फैसलों का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि 'विरसा सिंह बनाम पंजाब, 1958' और 'रिछपाल सिंह मीना बनाम घासी, 2014' फैसलों में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि जहां मारपीट के बाद किसी की मौत हुई हो, वहां सिर्फ मारपीट की धारा लगाना गलत है. लूथरा ने मांग की कि कोर्ट मामले का दायरा बढ़ाए.
इसका विरोध करते हुए सिद्धू के लिए पेश वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि पुनर्विचार याचिका में बहुत सीमित बिंदु पर नोटिस जारी हुआ था. घटना के 34 साल बाद और फैसले के 4 साल बाद सज़ा की धारा बदलने पर विचार न्यायसंगत नहीं होगा. इस पर जजों ने उनसे कहा कि जब एक नया आवेदन उनके सामने आया है तो वह बिना उस पर दूसरे पक्ष को सुने निर्णय नहीं लेना चाहते. इसलिए, अच्छा होगा कि चिदंबरम नए आवेदन पर अपना लिखित जवाब दाखिल करें.