नई दिल्ली: राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा और उनके करीबियों के दफ्तरों में ईडी की छापेमारी को लेकर वाड्रा ने बीजेपी पर पलटवार किया है. वाड्रा का कहना है कि बीडेपी डराने और खौफ पैदा करने के लिए छापेमारी करवा रही है. तहलका मैगजीन को दिए इंटरव्यू में वाड्रा ने गंभीर आरोप लगाए हैं.


इंटरव्यू में वाड्रा ने कहा, ''मैं इस देश का नागरिक राबर्ट वाड्रा हूं, मैं आप लोगों से कुछ बात करना चाहता हूं कि किस तरह से पिछले साढ़े चार साल से बीजेपी सरकार ने हमें और हमारे परिवार को परेशान कर के रखा हुआ है, मुझे, मेरी पत्नी और मेरे बच्चों को दिमागी तौर पर हताश कर रखा है, मैं आप लोगों से कहना चाहता हूं कि बीजेपी सरकार सत्ता का दुरूपयोग कर लगातार मुझे परेशान कर रही है.''


वाड्रा ने कहा, ''मेरा गुनाह सिर्फ इतना सा है कि मैं एक राजनीतिक परिवार का दामाद हूं और इसमें मेरा क्या दोष है ? ये हकीकत है मेरे देश के लोगों बीजेपी के पास अगर एक भी सुबूत मेरे खिलाफ मिल जाता तो बीजेपी मुझे काल कोठरी में भेज देती.''


वाड्रा पर क्या हैं आरोप?
रक्षा सौदा मामले में यह दावा किया जा रहा है कि वाड्रा के संबंध हथियार कारोबारी संजय भंडारी से है. ईडी ने कहा है कि उसे पुख्ता जानकारी मिली है कि डिफेंस डील में मिलने वाली रिश्वत से विदेशों में प्रापर्टी खरीदी गयी थी.


ईडी ने अधिकारिक तौर पर कहा कि इसी सिलसिले में रॉबर्ट वाड्रा के सहयोगियों के यहां छापेमारी की गई औऱ बड़े पैमाने पर दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए गए. यही नहीं ईडी ने रॉबर्ट के करीबी माने जाने वाले जगदीश शर्मा और मनोज को भी पूछताछ के लिए बुलाया.


ईडी सूत्रों के मुताबिक, इस छापेमारी में संजय भंडारी के रिश्तेदार सुमित चड्डा और रॉबर्ट वाड्रा के बीच हुए ईमेल भी अहम कड़ी रहे क्योंकि इनमें से एक ईमेल में पैसों के लिए हुए लेनदेन के जिक्र में खुद रॉबर्ट वाड्रा ने अपने सहयोगी मनोज का नाम भी लिया है.


चुनाव में हार देख प्रतिशोध की राजनीति कर रही बीजेपी- कांग्रेस
वाड्रा और उनके सहयोगियों पर छापेमारी को कांग्रेस भी साजिश करार दे रही है. छापेमारी के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 5 राज्यों में अपनी निश्चित हार से घबराई बीजेपी अब प्रतिशोध की राजनीति पर उतर आई है. नियम कानून और संविधान को ताक पर रखकर मोदी सरकार अपनी हिटलरशाही पर उतारु है. ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसी संस्थाओं का इस प्रकार का राजनीतिक दुरुपयोग भारत के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं देखा गया.