मॉंगडाओ: म्यांमार के मॉंगडाओ शहर से रोहिंग्या मुसलमानों को करीब करीब हटा दिया गया है. म्यांमार की सर्वोच्च नेता और शांति का नोबल पुरस्कार पा चुकी सू की ने रोहिंग्या मसले पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि म्यांमार को अंतरराष्ट्रीय छान-बीन या समीक्षा का डर नहीं है, म्यांमार स्थायी समाधान के लिए प्रतिबद्ध है.
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म्यामां में रोहिंग्या संकट पर अपनी पहली टिप्पणी में आंग सान सू ची ने आज कहा कि रखाइन प्रांत में फैले संघर्ष में जिन ‘‘तमाम लोगों’’ को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उनके लिये मैं ‘‘दिल से दुख’’ महसूस कर रही हूं.
सू की ने अपनी टिप्पणी में यह भी उल्लेख किया कि रोहिंग्या मुस्लिमों को हिंसा के जरिए देश से विस्थापित किया गया. टीवी पर प्रसारित अपने संबोधन में सू की ने ऐसे किसी भी ‘मानवाधिकार उल्लंघन’ की निंदा की जिससे संकट में इजाफा हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘हम यह सुनकर चिंतित हैं कि अनेक मुस्लिमों ने पलायन कर बांग्लादेश में शरण ली है.’’
नोबेल पुरस्कार विजेता सू की को रोहिंग्या के मुद्दे पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि 25 अगस्त को रखाइन के उत्तरी इलाके में रोहिंग्या चरमपंथियों ने पुलिस चौकियों को निशाना बनाया. इस हमले में 12 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे.
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इस घटना के बाद से ही वहां हिंसा भड़क गई और रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश की ओर मजबूरन पलायन करना पड़ा.
वहीं, इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि म्यांमार की नेता आंग सान सू की के पास सेना की आक्रामक कार्रवाई को रोकने का 'एक अंतिम अवसर' है, जिसने हजारों रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेश भागने को मजबूर किया है.
क्या है पूरा मामला?
म्यांमार में लंबे अरसे से रोहिंग्या मुसलमान पलायन कर रहे हैं. रोहिंग्या भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड समेत कई दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं. म्यांमार से पलायन करने के बाद रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में पनाह ले रहे हैं. सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं भारत में भी हजारों रोहिंग्या मुसलमानों ने शरण ले रखी है. दरअसल म्यांमार के रखाइन राज्य में सेना और रोहिंग्या चरमपंथियों के बीच संघर्ष चल रहा है. सैकड़ों लोग इसमें मारे जा चुके हैं. दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन म्यांमार में रोहिंग्या पर अत्याचार का आरोप लगा रहे हैं.