रोहिंग्या समस्या के बीच जानें, भारत में किसे मिल सकती है शरण, कितने हैं शरणार्थी
यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन 1951 के अर्टिकल 2 के पारा 1 में रिफ्यूजी (शरणार्थी) को परिभाषित करते हुए लिखा गयाा है "वो व्यक्ति जो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, एक विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या एक राजनीतिक विचार द्वारा सताए जाने के डर अपनी नागरिकता वाले देश से बाहर है और इन ऐसे डर की वजह से खुद अपने देश में सुरक्षा पाने में असक्षम है."
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचसीआर) ने शुक्रवार को सात रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने के भारत के कदम की आलोचना की और कहा कि उन्हें कानूनी सहायता नहीं दी गई. ये भी कहा गया कि शरण लेने की प्रक्रिया तक उनकी पहुंच नहीं होने दी गई. यूएनएचसीआर के प्रवक्ता आंद्रेज मेहेकिक ने एक कहा कि 'एजेंसी म्यांमार के उन सातों नागरिकों की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित है, जिन्हें गुरुवार को वापस म्यांमार भेजा गया.' अब जब रोहिंग्या मामला एक बड़े विवाद में बदल गया है और सात रोहिंग्याओं को उनके देश वापस भेजे जाने की चौतरफा चर्चा हो रही है, तो ऐसे में आईए जानते हैं भारत में कौन होते हैं नागरिक और कौन होते हैं शरणार्थी.
अन्य देशों में अप्रवास का अभिप्राय आम तौर पर नागरिकता या राष्ट्रीयता हासिल करना होता है. भारत में संविधान के प्रावधान मुख्य तौर पर जिस कानून को नियंत्रित करते हैं उनमें नागरिकता और राष्ट्रीयता शामिल हैं. भारत के संविधान के मुताबिक पूरे देश के लिए एक नागरिकता का प्रावधान है. भारत के संविधान के पार्ट- 2 में आर्टिकल 5 से 11 तक नागरिकता से जुड़े प्रावधान मौजूद हैं. नागरिकता का कानून 1955 में बनने के बाद 1986, 1992, 2003 और 2015 में संशोधित किया गया. इसके आर्टिकल 5 के मुताबिक संविधान के जन्म के साथ निम्नलिखित वर्गों जिनके पास भारत के किसी भी हिस्सा में आवास है, भारत का नागरिक होगा:
कौन होता है रिफ्यूजी (शरणार्थी) यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन 1951 के अर्टिकल 2 के पारा 1 में रिफ्यूजी (शरणार्थी) को परिभाषित करते हुए लिखा गयाा है "वो व्यक्ति जो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, एक विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या एक राजनीतिक विचार द्वारा सताए जाने के डर से अपनी नागरिकता वाले देश से बाहर है और ऐसे डर की वजह से खुद अपने देश में सुरक्षा पाने में असक्षम है." ये परिभाषा शरणार्थी के दर्जे से जुड़े प्रोटोकॉल के तहत दी गई है. ये अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून संधि का एक अहम हिस्सा है.
भारत नहीं है इस संधि का हिस्सा ये संधि लगभग आधी सदी पहले 4 अक्टूबर 1967 को लागू की गई और 146 देश इसका हिस्सा है. भारत इसका हिस्सा नहीं है. इसके पीछे संभवत: सुरक्षा कारण है जिसका हवाला देकर कहा जाता रहा है कि भारत की सीमाएं लचीली हैं और ऐसे में यहां प्रवेश करना आसान है जिसकी वजह से अचानक से किसी क्षेत्र की आबादी बढ़ने के बाद वहां कई तरह की मुश्किल परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं. वहीं, भारत में ऐसा कोई कानून भी नहीं है जिससे निर्धारित किया जा सके कि शरणार्थी कौन है या किसे ये दर्जा दिया जाए.
शरणार्थी मामले को भारत प्रशासनिक तौर पर संभालता है. इसके प्रमुख कारक आंतरिक राजनीति, द्विपक्षीय रिश्ते और मानवीय परिस्थितियां होती हैं. यूएनएचआरसी को भारत में कोई औपचारिक दर्जा प्राप्त नहीं है और ये भारत में उन्हीं देशों के शर्णार्थियों के लिए काम कर रहे होते हैं जो ऐसे देशों से आते हैं जो भारत के साथ सीमा साझा नहीं करतीं. आम तौर पर भारत उन लोगों को शरणार्थी का सर्टिफिकेट देता है जिन्हें यूएनएचआरी से पहचान पत्र प्राप्त हो. शर्णार्थियों को ऐसा सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसके समाप्त होने के बाद उसे फिर से प्रमाणिक करवाया जा सके. इसके अलावा भारत किसी तरह के शरणार्थी को हमेशा के लिए अपने यहां नहीं रखता. यूनएनएचआरसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 तक भारत में 204,600 के करीब लोग शरणा और आश्रय की तलाश में थे.
इनमें
- 100,000 लोग तिब्बत से हैं
- 73,000 लोग श्रीलंका से हैं
- 13,200 लोग अफगानिस्तान से हैं
- 16,300 लोग म्यांमार से है
- 2,100 कई अन्य देशों से है
आपको बता दें कि भारत के मामले में विदेशियों को ऐसे चार अलग-अलग समूहों में बांटा गया है जिससे उनके 'शरणार्थियों' होने या नहीं होने का साफ पता चलता है. ये श्रेणियां हैं:
अस्थायी निवासी, पर्यटक या यात्री इस श्रेणी के लोग भारत में किसी विशेष उद्देश्य से आते हैं. उनके यहां रहने की एक तय सीमा होती है जिसके लिए वो पहले से ही भारत सरकार से अनुमति प्राप्त करते हैं. हालांकि, विशेष परिस्थितियों में इनमें से कोई भी शरणार्थियों बन सकता है. जैसे कि इनमें से किसी के भी भारत में रहने के दौरान अगर उनके देश में ऐसी स्थिति उतपन्न हो जाती है जिससे उनके लौटने के बाद उनकी जान और स्वतंत्रता को खतरा हो तो ऐसी संभावनाएं हैं कि उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया जा सकता है.
अवैध आर्थिक प्रवासियों ऐसा कोई व्यक्ति जो अपने देश और जिस देश में वो जा रहा है, दोनों ही देशों के सही प्रक्रिया का पालन नहीं करता और इसके पीछे उसकी मंशा सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने की होती है. ऐसे व्यक्ति को शरणार्थियों का दर्जा नहीं दिया जाता. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसके खिलाफ उसके देश में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं होती है जिसकी वजह से उसके ऊपर कोई खतरा हो और जिसकी वजह से उसे अपना देश छोड़ना पड़े.
आपराधी, जासूस, घुपैठिया, आतंकीवादी आदी इनमें से कोई कभी भी शरणार्थियों का दर्जा नहीं पा सकता है. इनमें से किसी के भारत में होनी की स्थिति में भारत का आपराधिक कानून जो कहता है उसके मुताबिक उससे पेश आएगा या उनके खिलाफ विशेष कानून का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ये उनके पास वाजिब कागजात होने की स्थिति में भी किया जा सकता है.
आंतरिक तौर पर विस्थापित व्यक्ति वो लोग जो अपने देश में खतरे की स्थिति की वजह से भागकर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले गए हैं, ऐसे लोग इस श्रेणी में आते हैं. ऐसे लोगों को शर्णार्थियों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार नहीं किया है. इसके अलावा एक कारण ये भी है कि उन्हें अपनी सरकार का संरक्षण प्राप्त है. इन लोगों को आंतरिक तौर पर विस्थापित व्यक्ति की श्रेणि में रखा जाता है.
भारत में रिफ्यूजियों के आने की बड़ी घटनाएं
- भारत-पाकिस्तान ने रिफ्यूजियों की तमाम स्थितियों को लेकर 8 अप्रील 1950 को एक विशेष करार किया था.
- ऐसी ही एक विशेष परिस्थिति में चीनी हमले के बाद भारत ने दलाई लामा और उनके 13,000 समर्थकों को 1959 आश्रय प्रदान किया था
- 1971 में भारत ने बांग्लादेश-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तब के ईस्ट पाकिस्तान (अब के बांग्लादेश) से आई शरणार्थियों को इस शर्त पर शरण दी कि वो स्थिति सामान्य होने पर लौट जाएंगे. लेकिन बावजूदे इसके एक बड़ी आबादी भारत में रह गई. इसके बाद 1983 से 1986 के बीच भी बांग्लादेश के भारी मात्रा में पलायन हुआ.
भारत में रिफ्यूजी को मिलने वाली सुविधाएं
- रिफ्यूजी स्टेटस मिलने के बाद तय नियमों के आधार पर ऐसा वीजा दिया जाता है तो लंबे समय तक वैद्य रहता है.
- इसके लिए उनकी सुरक्षा जांच सबसे अहम होती है.
- एक बार उन्हें ऐसा वीजा मिल जाने के बाद उन्हें अन्य विदेशी नागरिकों के तर्ज पर सुनविधाएं मिलने लगती हैं.
- इन सुविधाओं में निजी क्षेत्र में नौकरी और किसी भी शैक्षणिक संस्थान में शिक्षा जैसी बातें शामिल होती हैं.
कौन हैं रोहिंग्या और क्या है उनकी समस्या
- म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान अल्पसंख्यक हैं
- म्यांमार में लगभग 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं
- रोहिंग्या को म्यांमार की नागरिकता हासिल नहीं है
- म्यांमार सरकार रोहिंग्या को बांग्लादेश से आया हुआ बंगाली मानती है
- रोहिंग्या का आरोप है कि म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध समाज और सेना उन पर अत्याचार करती है.
म्यांमार में लंबे अरसे से रोहिंग्या मुसलमान पलायन कर रहे हैं. रोहिंग्या भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड समेत कई दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं. म्यांमार से पलायन करने के बाद रोहिग्या मुसलमान बांग्लादेश में पनाह ले रहे हैं. सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं भारत में भी हजारों रोहिंग्या मुसलमानों ने शरण ले रखी है. अब तक करीब 1 लाख 80 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं. भारत में भी 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं. ज्यादातर रोहिंग्या जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली एनसीआर और राजस्थान में मौजूद हैं.