नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के जीवन को खुशहाल बनाने को लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी बताया. उन्होंने एक ऐसे समाज की वकालत की जहां किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी हम असहमत हो सकते हैं.


राष्ट्रपति पद पर आने के बाद गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में कोविंद ने कहा कि वर्ष 2022 में हमारे गणतन्त्र को 70 वर्ष हो जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘‘साल 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे. ये महत्वपूर्ण अवसर हैं. स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए, हमें एक बेहतर भारत के लिए प्रयास करना है.’’


गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी हम असहमत हो सकते हैं.’’ कोविंद ने कहा, ‘‘हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे. वे ‘कानून का शासन’ और ‘कानून द्वारा शासन’ के महत्त्व और गरिमा को भली-भांति समझते थे. वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के एक अहम दौर के प्रतिनिधि थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने हमें गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत दी है.’’ हमारा संविधान, हमारे नए राष्ट्र के लिए केवल एक बुनियादी कानून ही नहीं है, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज है.


कोविंद ने कहा कि हमें आजादी एक कठिन संघर्ष के बाद मिली थी. इस संग्राम में, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. उन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में, ये महान सेनानी, मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो सकते थे.


भारत एक विकसित देश बने
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम सबका सपना है कि भारत एक विकसित देश बने. उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं. हमारे युवा अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर देश को आगे ले जाएंगे. उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के जीवन को खुशहाल बनाना ही हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है. गरीबी के अभिशाप को, कम-से-कम समय में, जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है. यह कर्तव्य पूरा करके ही हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं .


समता या बराबरी का आदर्श हो
राष्ट्रपति ने कहा कि समता या बराबरी के इस आदर्श ने आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की. एक तीसरा आदर्श हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को और हमारे सपनों के भारत को सार्थक बनाता है. यह भाईचारे का आदर्श है. कोविंद ने कहा कि संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों .


संविधान के मूल्यों में भाइचारे की भावना
उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के मूल्यों में भाइचारे की भावना देखी जा सकती है. हमारा समाज, इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है. और यही आदर्श हम विश्व समुदाय के सामने भी प्रस्तुत करते हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के राष्ट्र निर्माण के अभियान का एक अहम उद्देश्य एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान देना भी है, ऐसा विश्व, जो मेलजोल और आपसी सौहार्द से भरा हो तथा जिसका अपने साथ और प्रकृति के साथ, शांतिपूर्ण सम्बन्ध हो. यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सही अर्थ है. यही आदर्श हजारों वर्षों से हम सबको प्रेरणा देता आया है.


राष्ट्रपति ने ऐसे राष्ट्र पर जोर दिया जहां संपन्न परिवार अपनी इच्छा से सुविधा का त्याग कर देता है. यह सब्सिडी वाली एलपीजी हो, या कल कोई और सुविधा. ताकि इसका लाभ किसी जरूरतमंद परिवार को मिल सके. उन्होंने कहा कि नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही, एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है.


अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से नैतिक राष्ट्र का निर्माण
उन्होंने कहा कि अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है. ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ, अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं. वे अपने कामकाज में ईमानदारी, अनुशासन और मर्यादा बनाए रखती हैं .


उन्होंने कहा कि देश का हर-एक युवा, हर-एक बच्चा देश के लिए नए सपने देख रहा है जिसमे हमारे देश की ऊर्जा, आशाएं, और भविष्य समाए हुए हैं. राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, महिलाओं को न्याय दिलाने की सरकार की पहल का उल्लेख किया .


समान अवसरों वाले परिवार करते हैं राष्ट्र का निर्माण
कोविंद ने कहा कि जहां बेटियों को, बेटों की ही तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं दी जाती हैं, ऐसे समान अवसरों वाले परिवार और समाज ही एक खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करते हैं. उन्होंने कहा कि देशवासियों की सेवा करने वाली हर नर्स, साफ सफाई में लगा हर स्वच्छता कर्मचारी, शिक्षित बनाने वाला हर अध्यापक, नवोन्मेष से जुड़ा हर वैज्ञानिक, देश को नया स्वरूप प्रदान करने वाला हर इंजीनियर, देश की रक्षा में लगा हर सैनिक, देशवासियों की पेट भरने वाला हर किसान, सुरक्षा में लगा हर पुलिस और अर्ध-सैनिक बल, पालन पोषण करने वाली हर मां, उपचार करने वाला हर डाक्टर एवं अन्य लोगों का राष्ट्र निर्माण में योगदान है .


राष्ट्रपति ने कहा कि यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के महान प्रयासों और बलिदान को, आभार के साथ याद करने का दिन है जिन्होंने अपना खून-पसीना एक करके, हमें आज़ादी दिलाई, और हमारे गणतंत्र का निर्माण किया. आज का दिन हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों को नमन करने का भी दिन है.