नई दिल्ली: सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बैंकों से भ्रष्टाचार हटने का नाम नहीं ले रहा है और बैंकों को सैकड़ों करोड़ रुपए का चूना लगाने का काम लगातार जारी है. अब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने साल 2016 -17 में बैंक ऑफ बड़ौदा तथा अन्य बैंकों को लगभग 189 करोड़ों रुपए का चूना लगाने के आरोप में एक प्राइवेट कंपनी, उसके निदेशकों समेत अज्ञात बैंक अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. सीबीआई ने इस मामले में आज आधा दर्जन जगह पर छापेमारी की. इस छापेमारी के दौरान अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज मिलने का दावा किया गया है.
सीबीआई प्रवक्ता आर सी जोशी के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ौदा ने सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को शिकायत की थी कि एक निजी कंपनी रुचि ग्लोबल लिमिटेड ने बैंकों के एक समूह से जिसकी लीडिंग बैंक ऑफ बड़ौदा के पास थी, के साथ करार किए थे और इस करार के तहत उसने बैंकों से अलग-अलग लोन लिए थे.
आरोप है कि बैंकों से जिस काम के लिए पैसा लिया गया था वह काम किया ही नहीं और यह पैसा अन्य कंपनियों को भेज दिया गया. सीबीआई प्रवक्ता के मुताबिक जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उनमें रुचि ग्लोबल लिमिटेड, उसके निदेशक उमेश.. साकेत बरोदिया.. आशुतोष मिश्रा तथा अज्ञात सरकारी अधिकारी तथा अन्य लोग शामिल हैं.
सीबीआई के मुताबिक उक्त कंपनी और उसके निदेशकों ने साजिश कर बैंकों को 188. 35 करोड़ रुपए का चूना लगाया. बैंकों के समूह ने बैंक ऑफ बड़ौदा को इस बात के लिए अधिकृत किया था कि वे इस पूरे मामले की शिकायत केंद्रीय जांच ब्यूरो से करें. शिकायत के आधार पर सीबीआई ने मामले की आरंभिक जांच की और तथ्य पाए जाने पर आज आरोपियों के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की. दिलचस्प यह भी है कि जिस कंपनी ने यह धोखाधड़ी की है उसका रजिस्टर्ड ऑफिस महाराष्ट्र और कारपोरेट ऑफिस मध्यप्रदेश के इंदौर में है. सीबीआई ने आज इस मामले में इंदौर, बैंगलोर और मुंबई में छापेमारी की थी.
दिलचस्प है कि मामला एक बार फिर महाराष्ट्र से ही जुड़ा है जहां बहुचर्चित बैंक ऑफ बड़ौदा का मेहुल चौकसी और नीरव मोदी घोटाला हुआ था. इस बड़े घोटाले के बाद भी अभी बैंक पूरी तरह से सावधान नहीं हुए हैं और आलम यह है कि जहां एक तरफ लोगों को मात्र कुछ लाख रुपए के लोन के लिए बैंक के अधिकारी लगातार दौड़ाते हैं वहीं दूसरी तरफ सैकड़ों करोड़ रुपए लोगों को बिना किसी जांच के अधिकारियों की मिलीभगत से पास कर दिया जाता है. बाद में यह प्राइवेट कंपनियां सैकड़ों करोड़ रुपया लेकर फरार हो जाती हैं और बैंक इन कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए इधर से उधर घूमते हैं. सच्चाई यह है कि यदि बैंक अपना काम ईमानदारी से करें तो संभवत ऐसे बड़े घोटाले हो ही ना.
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