गुवाहाटी: असम पुलिस के जवान सत्यजीत बोरा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 14 साल पहले का मामला खुद उनके लिए भारी पड़ जाएगा. असम मानवाधिकार आयोग ने उन पर दो लाख रुपए की पैनल्टी लगाई है. ये धन राशि मुआवजे के रूप में उस शख्स को दी जाएगी जिसे गलत पहचान के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था.


आयोग ने पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया कि सत्यजीत बोरा के वेतन से मुआवजे की राशि को बीस किश्तों में वसूला जाए. आयोग ने अपने आदेश में कहा, ''मानवधाकिर उल्लंघन के आरोपी के खाते से फरवरी 2020 से हर किश्त में दस हजार रुपये की राशि की कटौती कर पीड़ित को दी जाए.”


क्या था मामला ? 


रमानी कलिता को 2005 में हत्या की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उस वक्त गिरफ्तार करने वाले सत्यजीत बोरा चांदमारी पुलिस स्टेशन में सब इंस्पेक्टर पद पर तैनात थे. बाद में कलिता ने आयोग से अपनी फरियाद में बताया कि पुलिस जवान के पास गिरफ्तारी के लिए अरेस्ट वारंट मुकम्मल नहीं था. अरेस्ट वारंट में उसके पिता का नाम, आयु और पेशे से संबंधित कोई जिक्र नहीं था. उस वक्त उसने पुलिस के सामने स्पष्ट किया कि उसके नाम का दूसरा व्यक्ति उसके ऑफिस में कार्यरत है. लेकिन उसके बताने के बावजूद पुलिस ने ध्यान नहीं दिया और उसे 15 दिनों के जेल रिमांड में भेज दिया गया.


जस्टिस टी वाजपेयी की अध्यक्षता में फुल बेंच ने पुलिस जवान को लापरवाही का दोषी पाया. बेंच का कहना था कि उसने संदिग्ध गिरफ्तारी के वक्त विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और मनमाने तरीके से गलत आदमी को गिरफ्तार कर लिया. आयोग ने अपने आदेश में कहा, ''बोरा शिकायतकर्ता को बिना कोर्ट के सामने पेश किये हिरासत में कुछ समय के लिए ले सकता था.” आयोग ने कहा कि अब राज्य सरकार के ऊपर है कि आरोपी के खिलाफ सजा के लिए विभागीय जांच करती है या नहीं. लेकिन मानवाधिकार का उल्लंघन मामला देखते हुए सजा के तौर पर पीड़ित को मुआवजा देना होगा.