राज की बातः 2022 विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही साथ सभी दलों और उनके संगठनों ने सियासी रणनीति के मोहरों को सेट करना शुरु कर दिया है. इसी फेहरिस्त में माइक्रो लेवल तक की प्लानिंग में माहिर बीजेपी और आरएसएस ने एक और रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. राज की बात ये वोटों के गणित का साधने के लिए इस बार वनवासी वोटर्स को लेकर भी आरएसएस और बीजेपी गंभीर हैं. हालांकि अगर आदिवासियों के कल्याण और उनके बीच काम करने की बात करें तो संगठन के स्तर पर संघ और सरकार के स्तर पर बीजेपी काम करती रही है लेकिन राज की बात ये है कि उत्तर प्रदेश के लगभग साढ़े 11 लाख आदिवासियों को साधने के लिए और सुनियोजित ढंग से काम शुरु होने जा रहा है. आदिवासियों के आबादी का ये आकड़ा जनगणना 2011 का है. आदिवासी नेताओओं के मुताबिक वास्तवितकता से ये आंकड़ा काफी दूर है और उनकी माने तो यूपी में आदिवासियों की संख्या 50 लाख के आसपास है.


आदिवासी जनसंख्या की बात करें तो सबसे ज्यादा ये सोनभद्र में हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश ही इनका प्रमुख रूप से निवास स्थल है. ऐसे में पूर्वी यूपी में वोटों को गणित को साधने के लिए ये वर्ग बड़ा महत्वपूर्ण है. हालांकि राज की बात ये भी है कि चाहे वनवासी विद्यालयो की बात करेंग या वनवासियों के बीच सामाजिक कार्यक्रमों की आरएसएस इसमें काफी सक्रिय रहा है और लगभग इन क्षेत्रों में 1200 से ज्यादा कार्यक्रम किए जा चुके हैं लेकिन अब इनका दायरा संघ बढ़ाएगा और बीजेपी भी आदिवासियों के साथ सक्रिय होकर उन्हें साधने की कोशिश करेगी.


दरअसल, सरकार के स्तर पर भी उत्तर प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए काफी काम किए गए हैं. चाहे उन्हें जमीन के पट्टे देने की बात हो, मुफ्त राशन देने की बात हो या फिर अन्य शासकीय योजनाओओं से जोडने की बात हो. इसके साथ ही साथ वनवासी स्वाभिमान के सम्मान के लिए अलग अलग महोत्सवों में आदिवासी कला, परंपरा और संसक्कृति को संजोने का संकल्प भी मंच पर उतारा जाता है. मतलब ये कि आदिवासी समाज से संघ और सरकार का संबध रहा है लेकिन, चुनावी जरूरतों को देखते हुए उसे तरोताजा करने और नए सिरे से संजोने की जरूरत पर काम शुरु किया जाएगा.


चूंकि आदिवासी वोटर्स की भी एक बड़ी संख्या पूर्वी उत्तर प्रदेश में है लिहाज समीकरणों को साधने की फेहरिस्त में वनवासी समीकरण सध गया तो ये एक बड़ी सियासी राहत होगी. राज की बात ये है कि इस क्षेत्र में बीजेपी औऱ संघ के फोकस करने की वजह कांग्रेस की सक्रियता भी है. सोनभद्र के गोलीकांड के बाद से ही कांग्रेस के फोकस में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र आ गया है ऐसे में कोई भी चूक बीजेपी को सियासी झटका चुनाव में पहुंचा सकती है. लिहाजा ये तय कर लिया गया है कि वनवासी समाज को ये यकीन दिलाया जाएगा कि भाजपा उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए गंभीरता से काम कर रही है और ये प्रतिबद्धता भविष्य में भी जारी रहेगी.


Raaj Ki Baat: मंत्रिमंडल विस्तार में साधे जाएंगे कई तरह से समीकरण, क्या चुनावी राज्यों का रखा जाएगा ध्यान